कानपुर में ऐसे थे एक आइपीएस अफसर जो कैंची से कटवा देते थे मनचलों की पैंट, बोतल से चेक करते थे मोहरी
कानपुर में रहे सेवानिवृत्त आइपीएस अधिकारी की बेटी की पिता पर लिखी पुस्तक ‘ए लाइफ अनकामन - बीएस बेदी का विमोचन हुआ तो उनका कार्यकाल याद आ गया। उन्होंने कानपुर में पहली बार हेलमेट अनिवार्य कराया था ।
कानपुर, जागरण संवाददाता। महिला अपराधों पर लगाम लगाने के लिए इन दिनों खासा जोर है। मगर, 42 साल पहले जब महिलाओं से संबंधित इतने अपराध नहीं थे, इसके बावजूद वह अफसर मनचलों को सबक सिखाने के नए-नए तरीके ईजाद करता था। यही नहीं, उन्होंने ही कानपुर में दोपहिया वाहन चालकों के लिए हेलमेट की अनिवार्यता पहली बार की थी। अपनी कार्यशैली की वजह से दशकों बाद भी लोगों की दिलों में राज करने वाले यह अधिकारी हैं बीएस बेदी।
सेवानिवृत्त भारतीय पुलिस सेवा (आइपीएस) अधिकारी बीएस बेदी की बेटी डा. प्रीति सिंह की पिता पर लिखी पुस्तक ‘ए लाइफ अनकामन -बीएस बेदी (द इंक्रेडिबल जर्नी आफ एन आइपीएस आफिसर) का विमोचन हुआ तो शहर के लोगों को उनका कार्यकाल याद आ गया। वह कानपुर में भी एसएसपी, डीआइजी और आइजी के पद रह चुके हैं। बीएस बेदी 16 जून 1979 से दो दिसंबर 1980 तक कानपुर के एसएसपी रहे। जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई, उस वक्त वह बतौर डीआइजी कानपुर में तैनात थे और बाद में वह कुछ समय तक आइजी कानपुर भी रहे। बतौर कप्तान उनकी कार्यशैली की चर्चा अब तक होती है।
उनके कप्तान रहने के दौरान अंडर ट्रेनी सब इंस्पेक्टर भर्ती हुए रमेश चंद्र शुक्ला बताते हैं, अपनी नौकरी के दौरान उन्होंने बेदी साहब जैसा दूसरा सक्रिय अफसर नहीं देखा। लोग आज महिला अपराध पर अंकुश लगाने की बात करते हैं, लेकिन बेदी साहब के समय मनचले खौफ खाते थे। वह मनचलों का हौसला कैसे तोड़ा जाए, इसके लिए नए-नए तरीके तलाशते थे। उस वक्त पतली मोहरी की पैंट का चलन था। बने-संवरे युवा लड़कियों के स्कूल के बाहर खड़े हो जाते थे। अगर बेदी साहब ने पकड़ लिया तो मोहरी में बोतल डालकर दिखवाते थे कि पैंट कितनी संकरी सिलवाई है। बोतल पार हुई तो माफ, नहीं तो कैंची से पैंट की मोहरी कटवा देते थे। इसी तरह शर्ट के ऊपर बटन खोलकर चलने वाले मनचलों की शर्ट के सारे बटन कटवा देते थे।
वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मदन मोहन शुक्ला बताते हैं, बीएस बेदी के वक्त ही सबसे पहले कानपुर में हेलमेट अनिवार्य हुआ था। वह दोपहिया वाहन पर तीन सवारी के बेहद खिलाफ थे। ऐसा देखकर वह रास्ता चलते अपनी गाड़ी रुकवाकर चालान करवाते थे। लड़कियों के स्कूलों के आगे सुबह और शाम को सादे पकड़ों में महिला पुलिस खड़ा करने की शुरुआत भी उन्होंने ही की थी।
पूर्व विधायक भूधर नारायण मिश्रा ने बताया कि रात को अचानक थाने पहुंच जाना, कार्यालयों के औचक निरीक्षण की वजह से विभाग में बीएस बेदी की हनक थी। अपराधियों के प्रति वह बेहद सख्त थे। अपराधी हो या गलत करने वाला प्रभावशाली, बीएस बेदी से वह भय खाता था। पूर्व विधायक ने बताया कि इंदिरा गांधी की हत्या के समय तत्कालीन डीएम बृजेंद्र यादव ने सुरक्षा कारणों से दो दिनों तक उन्हें घर से नहीं निकलने दिया। तब वह यहां के डीआइजी थे और यह मामला खूब मीडिया में उछला था। हालांकि कप्तान रहते हुए सांप्रदायिक सौहार्द कायम रखने के लिए बीएस बेदी लगातार प्रयास करते रहे।
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