Kanpur literature Festival : रसिका, सूर्यबाला और मालिनी अवस्थी ने कुछ यूं बयां किए स्त्री के अक्स Kanpur News
केएलएफ के समापन पर निर्देशक व अभिनेत्री ने रसिका अगाशे लेखिका सूर्यबाला और लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने विमर्श किया। ...और पढ़ें

कानपुर, जेएनएन। कानपुर लिटरेचर फेस्टिवल (केएलएफ) का दूसरा दिन नारी विमर्श के नाम रहा। दिन की शुरुआत भले ही राजनीति से रही हो, लेकिन तीन सत्रों में नारी के विविध अक्स देखने को मिले। मुंबई से आईं निर्देशक व अभिनेत्री रसिका अगाशे ने प्रख्यात लेखिका अमृता प्रीतम को किस्सागोई के जरिए श्रद्धांजलि दी, वहीं लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने लोक संगीत में स्त्री की मौजूदगी का वर्णन किया। लेखिका सूर्यबाला ने स्त्री के हर पक्ष की विस्तार से विवेचना की।
डॉ. गौर हरि सिंहानिया इंस्ट्रीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च में कानपुर लिटरेचर फेस्टिवल का रविवार को समापन हुआ। दूसरे सत्र में रसिका अगाशे ने अमृता प्रीतम की कहानियां, खत और कविताओं की किस्सागोई की। अमृता प्रीतम की कथा की पात्र अंगूरी की कम उम्र में बड़े शख्स से ब्याह की कहानी को उन्होंने रोचक अंदाज में बताया और आखिर में अंगूरी के मौन प्रेम को परिभाषित किया।
स्त्री की पीड़ा को स्वर देते हैं लोकगीत
तीसरे सत्र में लेखक, कवि एवं समीक्षक यतींद्र मिश्र ने 'लोक गीत-संगीत में स्त्री का स्थान, बयान व अभिदानÓ विषय पर चर्चा की। सुप्रसिद्ध लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने बताया कि घर के भीतर लोक लाज में सिमटी महिलाओं की वेदना और पीड़ा को लोकगीत स्वर देते थे। इनके जरिये अपनी आवाज को मुखर करती थीं। इससे उनका प्रतिरोध और समाज सुधार प्रतिध्वनित होता है। कानपुर में नौटंकी की बेहतरीन गायिका गुलाबबाई अपने गायन से महिला सशक्तीकरण की प्रतीक बन गईं। लोकगीत को जाहिलों, गंवारों व अनपढ़ों की विधा माना जाता है, लेकिन इन गीतों से समाज का उद्धार और सुधार हुआ है। कहा कि परिवार में ताई, चाची, काकी और दादी सोहर गाती थीं। यहीं से उनका रुझान इस दिशा में बढ़ा। उन्होंने कई लोकगीतों की प्रस्तुति देकर मौजूद लोगों की तालियां बटोरीं।
मेरी नारी विद्रोही नहीं
पांचवें सत्र में हिंदी की प्रख्यात लेखिका सूर्यबाला से अनीता मिश्रा ने बात की। सूर्यबाला ने अपने नए उपन्यास 'कौन देस को वासी' की चर्चा की। प्रवासी भारतीय के जीवन पर आधारित इस उपन्यास में सांस्कृतिक और भावनात्मक द्वंद्व को उकेरा गया है। उन्होंने कहा कि स्त्री विमर्श सिर्फ देह तक सीमित नहीं है। स्त्री परिवार व समाज को साथ लेकर भी अपने मुताबिक जीवन जी सकती है। उन्होंने बीएचयू से पीएचडी करने के बाद ग्रामीण परिवेश में विवाह से उत्पन्न स्थितियों का जिक्र करते हुए बताया कि किस तरह उन्होंने खुद को पारिवारिक और ग्रामीण परिवेश में ढाला। साथ ही अपने भीतर के लेखक को भी जीवंत रखा। उनकी कथाओं की नारी विद्रोह नहीं करती के सवाल पर उन्होंने कहा कि उनकी नारी सबको साथ लेकर चलती है, विद्रोह तो नहीं करती किंतु वह गलत को स्वीकार भी नहीं करती।

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