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    Positive India: राम रोटी अब अन्नपूर्णा बनकर लॉकडाउन में भर रहा गरीबों का पेट

    By Abhishek AgnihotriEdited By:
    Updated: Wed, 29 Apr 2020 11:40 AM (IST)

    कैंसर अस्पताल में पांच साल पहले शुरू हुई निश्शुल्क भोजन की परंपरा आज भी अनवरत जारी है।

    Positive India: राम रोटी अब अन्नपूर्णा बनकर लॉकडाउन में भर रहा गरीबों का पेट

    कानपुर, जेएनएन। लॉकडाउन के दौरान लगातार कई संस्थाएं जरूरतमंदों का पेट भर रही हैं लेकिन इस परंपरा की शुरुआत कैंसर अस्पताल में वर्ष 2015 में हुई थी। इसका नाम राम रोटी भोजनालय रखा गया था। बुधवार को इसके पांच वर्ष पूरे हो रहे हैं। लॉकडाउन में मरीज आ नहीं रहे तो भोजनालय का संचालन करने वाली समन्वय सेवा समिति ने एक्सप्रेस रोड पर अन्नपूर्णा रसोई शुरू कर दी है, ताकि निश्शुल्क रसोई की परंपरा न टूटे।

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    भारत माता मंदिर के संस्थापक ने किया था शुभारंभ

    कैंसर अस्पताल में मरीजों और उनके स्वजनों के लिए भोजन की व्यवस्था नहीं थी। परिसर में ही स्वजन ईंटों का चूल्हा बनाकर भोजन पकाते थे। समिति के पदाधिकारियों ने यह हालात देखे तो तत्कालीन निदेशक से अनुमति लेकर परिसर में ही रसोई स्थापित कर दी। हरिद्वार के भारत माता मंदिर के संस्थापक स्वामी सत्यमित्रनंद गिरि ने रसोई का शुभारंभ किया। तब से प्रतिदिन ढाई सौ मरीजों के लिए सुबह का नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का खाना बन रहा है।

    मरीजों को फ्री और स्वजनों से न्यूनतम मूल्य

    मरीजों को निश्शुल्क भोजन मिलता है, जबकि उनके स्वजन के लिए 10 रुपये मूल्य रखा गया है। एक साथ बड़ी संख्या में रोटियां बनाना कठिन था, इसलिए रोटी बनाने की मशीन खरीदी गई जो एक घंटे में 900 रोटी तक बना देती है। समिति के संयोजक संतोष कुमार अग्रवाल, महामंत्री सुरेंद्र गुप्ता गोल्डी, कोषाध्यक्ष सत्य नारायण नेवटिया, सह संयोजक मनोज सेंगर आदि पदाधिकारी इस रसोई को संचालित कर रहे हैं।

    इनका कहना है

    • भोजन को लेकर कैंसर अस्पताल के मरीजों और तीमारदारों की समस्याओं को देखते हुए इस अभियान को शुरू किया गया था जो आज भी जारी है।-संतोष कुमार अग्रवाल, संयोजक
    • कैंसर अस्पताल को क्वारंटाइन वार्ड बनाया गया है, इसलिए वहां मरीज नहीं है। अस्पताल के बजाय एक्सप्रेस रोड पर अन्नपूर्णा रसोई से जरूरतमंदों को भोजन दिया जा रहा है। जैसे ही लॉकडाउन खत्म होगा और मरीज अस्पताल आएंगे, रसोई फिर शुरू हो जाएगी।-मनोज सेंगर, सह संयोजक