कोरोना से उबरे तो पल्मोनरी इबोलिज्म का खतरा, समय पर इलाज न मिलने पर जा सकती है जान
पोस्ट कोविड मरीजों में कोरोना की वजह से हाथ-पैर की नसों में खून के थक्के बन रहे हैं जिससे हार्ट से खून की सप्लाई करने एवं वापस खून लाने वाली रक्त नलिकाओं में रुकावट की समस्या पैदा होने से स्थिति खतरनाक हो रही है।

कानपुर, [ऋषि दीक्षित]। अचानक सांस फूलना, सीने में भीषण दर्द और ब्लड प्रेशर तेजी से कम होने लगता है तो इसे पल्मोनरी इबोलिज्म कहते हैं। समय पर इलाज न मिलने पर भी मौत हो सकती है। कोरोना संक्रमण से उबरने के बाद लोगों में यह दिक्कत आना शुरू हो गई है और वह हृदय रोग संस्थान पहुंच रहे हैं। आइए नीचे दिए दो मामलों से इस समस्या को समझते हैं...।
Case-1 : पनकी निवासी 26 वर्षीय महेश सैनी कोरोना संक्रमित हो गए थे। इससे उबरने के बाद उन्हें हाथ-पैर में दिक्कत होने लगी। हृदय रोग संस्थान में दिखाया। जांच में नसों में खून के थक्के बनने का पता चला। ऑपरेशन कर थक्के निकाले गए। अब उन्हें आराम है।
Case-2 : कन्नौज की 60 वर्षीय विमला देवी कोरोना पॉजिटिव हुईं थीं। कोरोना से राहत के बाद उनके शरीर में असहनीय दर्द होने लगा। जब हृदय रोग संस्थान में दिखाया तो नसों में थक्के बनने की दिक्कत पता लगी। ऑपरेशन कर खून के थक्के निकाले गए हैं। अभी वह अस्पताल में ही हैं।
कोरोना संक्रमण के बाद आ रही समस्या
कोरोना संक्रमण से उबरने के 15-20 दिनों में रक्त नलिकाओं में खून के थक्के बनने की समस्या हो रही है। ऐसे थक्के हार्ट से शरीर को खून पहुंचाने और वापस लाने वाली रक्त नलिकाओं (आर्टरी एवं वेन) में बन रहे हैं। शरीर के विभिन्न हिस्सों में रक्त पहुंचाने वाली नलिका में थक्के बनने पर ऑपरेशन करके निकालते हैैं, जबकि वेन, जो शरीर के दूसरे अंगों से हार्ट में वापस रक्त हार्ट तक लाती है उसमें थक्के बनने पर दवाओं से ही मैनेज किया जाता है। 15 दिन में हृदयरोग संस्थान में आठ पीडि़तों के ऑपरेशन हो चुके हैं।
संक्रमण के बाद नसों में सूजन (इंफ्लामेशन) होने लगती है, जिससे नसों की अंदरूनी दीवारें (इंडोथिलियम) क्षतिग्रस्त हो जाती है। शरीर में खून के थक्के बनने की प्रक्रिया (कोग्लेशन सिस्टम) बिगड़ जाती है। जिससे ऑर्टरी और वेन में खून के छोटे-छोटे थक्के (थम्बस) बनने लगते हैं। इनसे खून का प्रवाह बाधित होता है।
ऐसे होती गंभीर स्थिति
कई बार वेन में बना थक्का टूटकर हार्ट में चला जाता है। जो हार्ट की पल्मोनरी आर्टरी में रक्त प्रवाह में रुकावट कर देता है, जिससे अचानक सांस फूलना, सीने में भीषण दर्द और ब्लड प्रेशर तेजी से कम होने लगता है। इसे पल्मोनरी इबोलिज्म कहते हैं। समय पर इलाज न मिलने पर मौत हो सकती है।
रुकती हाथ-पैर की नसों में खून की आपूर्ति
थक्के खासकर हाथ-पैर को खून पहुंचाने वाली मध्यम आकार की आर्टरी में पहुंच जाते हैं। इसमें प्रमुख रक्त नलिकाओं ब्रेकियल आर्टरी, रेडियल आर्टरी, फिमोरल आर्टरी, पॉपलिटियल आर्टरी एवं टीबियल आर्टरी में रुकावट होती है।
ये लक्षण दिखें तो सावधान हो जाएं
- अचानक हाथ-पैरों में ठंडापन आए।
- हाथ-पैर में भीषण दर्द उठने लगे।
- हाथ-पैर की लालिमा खत्म होकर पीलापन दिखे।
- हाथ-पैर की पल्स में गतिविधि न मिले।
- हाथ-पैर चलाना मुश्किल हो।
- हाथ-पैर काले पडऩे लगें।
इन जांचों से पता चलता
- कलर डॉप्लर स्टडी ऑफ लिम्स
- सीटी पैरिफेरल एंजयोग्राफी
- संक्रमण के 15-20 दिन बाद ऐसे लक्षण उभरते ही डॉक्टर को दिखाएं। जांच में बीमारी पता चलते ही ऑपरेशन जरूरी है। हाथ-पैर की ब्लॉक आर्टरी के थक्के ऑपरेशन कर निकालने को पेरिफेरल इबोलेक्टिमी कहते हैं। वेन के 95 फीसद थक्के दवाओं से खत्म हो जाते हैं और वह दोबारा न बनें, इसके लिए खून पतला करने की दवाएं दी जाती हैं। प्लेटलेट््स काउंट और प्रोथाम्बिक टाइम (पीटी-आइएनआर) जांच भी कराते हैं। इसमें लापरवाही से गैंगरिन हो सकती है। - प्रो. राकेश वर्मा, विभागाध्यक्ष, कार्डियक वैस्कुलर थेरोसिक सर्जरी, लक्ष्मीपत सिंहानिया हृदय रोग संस्थान।
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