कम होती ऑक्सीजन से बढ़ रहा जीवन को खतरा, जानें- कैसे सांसें कम कर रहा कोयले का धुआं
कानपुर शहर में वातावरण में प्रदूषण के बीच धुंध के काले बादल छा जाने से ऑक्सीजन की मात्रा घट रही है इसकी मुख्य वजह धधकती भट्टियों में जलने वाले कोयले से उठ रहा धुआं है रोजाना सुबह मिठाई नमकीन चाय व खान-पान की दुकानों में कोयला जलाया जाता है।
कानपुर, जेएनएन। त्यौहार का सीजन आने के साथ ही मिठाई, नमकीन व खान-पान की दुकानें सजने लगी हैं। इन दुकानों में सुबह से ही उत्पाद बनने का सिलसिला शुरू हो जाता है। शहर में कई दुकानें ऐसी हैं, जिनमें यह सब चीजें बनाने के लिए कोयले का इस्तेमाल हो रहा है। दिनभर कोयला जलने से आसपास का वातावरण तो प्रदूषित होता ही है, राहगीरों व वहां पर रहने वालों के लिए भी यह नासूर बन रहा है।
सुबह से बढ़ने लगती पीएम-2.5 की मात्रा
शहर में प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है। रविवार को पीएम-2.5 की मात्रा सुबह से ही बढऩी शुरू हो गई। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण विभाग ने मात्रा 447 माइक्रोग्राम प्रतिमीटर क्यूब दर्ज की, शनिवार को यह 407 माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब थी। अचानक यह बढ़त इस बात का संकेत है कि ऐसे प्रदूषण के बीच स्वस्थ मनुष्य के फेफड़े भी संक्रमित हो सकते हैं।
पर्यावरणविद बताते हैं कि प्रदूषण की स्थिति इसलिए इतनी भयावह होती जा रही है, क्योंकि वाहनों के धुएं के साथ जगह-जगह घास-फूस, पराली और कोयला भी जलाया जा रहा है। कोयला जलाने से कार्बन डाई ऑक्साइड समेत कई नुकसानदेह गैसें पैदा होती हैं। कोयले में 60 से 80 फीसद कार्बन होता है। इसे जलाने से ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में जमा हो जाती हैं। पारा गिरने के कारण आसमान में इनकी परत इस तरह जम जाती है कि सूर्य की किरणों को भी नीचे आने से रोकती हैं।
वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा हो रही कम
डीएवी डिग्री कॉलेज के प्राचार्य व भौतिकविद डॉ. अमित कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि कोयला, कृषि अवशेष व हाईड्रो कार्बन ईंधन जलने से कार्बन के बारीक कण वातावरण में शामिल होकर उड़ते रहते हैं। जाड़े में ये कण ऊपर नहीं जा पाते और निचली सतह पर घूमते रहते हैं। हवा से भारी होने के कारण कार्बन डाई ऑक्साइड व कार्बन मोनो ऑक्साइड नीचे रह जाती है, जिससे ऑक्सीजन की मात्रा वातावरण में कम हो जाती है।
कोयले के धुएं से नुकसान
- -अस्थमा, दमा, ब्रोंकाइटिस, सिरदर्द, फेफड़े का कैंसर, खांसी, आंखों में जलन, गर्दन में दर्द, निमोनिया, हृदय रोग, उल्टी, जुकाम, एलर्जी जैसी बीमारियों का खतरा।
- -कोयले की राख के असर से धुंध पैदा होती है। हवा में कोयले का धुआं व राख पारा गिरने पर वाष्प के साथ हवा में लटके रहते हैं
- -दूर तक देखने में दिक्कत आती है और सांस के जरिए यह महीन कण फेफड़ों में चले जाते हैं।
- -कोयला, लकड़ी व गोबर के उपले जलाने से कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड व अन्य जहरीले गैसें निकलती हैं।
-कोयला जलने पर कार्बन के साथ नाइट्रोजन व सल्फर के तत्व निकलते हैं। नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड व हैवी मेटल फेफड़ों की क्षमता कम कर सकते हैं। - डॉ. संगीता अवस्थी, विभागाध्यक्ष जंतु विज्ञान व पर्यावरण विज्ञान विभाग एएनडी कॉलेज
आइआइटी में पीएम-2.5 पहुंचा 300 पार
आइआइटी में पीएम-2.5 की मात्रा बढ़कर 300 के पार पहुंचना पर्यावरण के लिए खतरे की घंटी है। सिविल इंजीनियरिंग विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर प्रो. सच्चिदानंद त्रिपाठी ने बताया कि परिसर में प्रदूषण मापने के लिए 25 सेंसर लगाए गए हैं। आइआइटी मुख्य गेट व जीटी रोड के समीप लगे सेंसर में पीएम-2.5 की मात्रा सुबह के वक्त 420 माइक्रोग्राम प्रतिमीटर क्यूब दर्ज की गई, जबकि दूसरे गेट पर यह 371 रही। आइआइटी परिसर में पीएम-2.5 की मात्रा 300 से अधिक रही।
पारा गिरने के साथ प्रदूषण बहुत अधिक बढऩे पर यह मात्रा डेढ़ सौ से दो सौ के बीच हुआ करती थी, लेकिन 300 के पार होना चिंता का विषय है। अगस्त की बात करें तो पीएम-2.5 की मात्रा 25 से 30 माइक्रोग्राम दर्ज की गई थी। उन्होंने बताया कि कच्चा कोयला सुलगता है, इसलिए उससे प्रदूषण के कण बारीक व अधिक मात्रा में निकलते हैं। एक साथ कोई भी चीज जल जाने पर इतना प्रदूषण नहीं होता है।
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