परमट आनंदेश्वर मंदिर के महंत स्वामी रमेश पुरी ब्रह्मलीन, बाबा घाट पर दी जा सकती है समाधि
जून 2011 में पंचदशनाम जूना अखाड़ा ने परमट मंदिर का महंत बनाया था अखाड़ा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और संत आ रहे हैं।
कानपुर, जेएनएन। आनंदेश्वर मंदिर परमट के महंत स्वामी रमेश पुरी बुधवार रात करीब साढ़े नौ बजे ब्रह्मलीन हो गए। वे कैंसर से पीडि़त थे, शहर के एक निजी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। गुरुवार को बाबा घाट स्थित गोशाला परिसर में उन्हें समाधि दी जा सकती है। सुबह पंचदशनाम जूना अखाड़ा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रेम गिरि, राष्ट्रीय महामंत्री हरि गिरि के साथ ही महंत, श्री महंत व महामंडलेश्वर मंदिर पहुंचेंगे।
23/24 मई 2011 की रात आनंदेश्वर मंदिर में विवाद हो गया था। इस मामले में तत्कालीन महंत एवं महामंडलेश्वर श्याम गिरि महाराज के विरुद्ध उनके शिष्य रामदास ने जान से मारने की कोशिश का मुकदमा दर्ज कराया था। इसे मामले में महंत श्याम गिरि की गिरफ्तारी के बाद जूना अखाड़ा के अध्यक्ष गिरिजा दत्त ने मंदिर संचालन के लिए पांच संतों की कमेटी बनाई थी। इनमें से चार सदस्यों की सहमति के बाद ही स्वामी रमेश पुरी को जून माह में महंत घोषित कर दिया गया था। तभी से वे महंत पद पर आसीन थे।
मूलरूप से शामली निवासी महंत रमेश पुरी ने मंदिर में चांदी का छत्र, अरघा आदि लगवाया और यहां की व्यवस्था को सुचारु बनाया। बाबा घाट स्थित गोशाला का सुंदरीकरण भी उनके द्वारा कराया गया। उन्होंने मंदिर के चढ़ावे से ही कई गरीब बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था की। वे कई सालों से कैंसर से पीडि़त थे। तीन माह से तबियत ज्यादा खराब होने पर जूना अखाड़ा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रेम गिरि ने पांच संतों की कमेटी बनाई जो मंदिर का संचालन देख रही है। मंदिर के मीडिया प्रभारी अजय पुजारी का कहना है कि बाबा घाट में उन्हें समाधि दी जा सकती है, लेकिन अंतिम निर्णय अखाड़ा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व संत लेंगे। उनके निधन पर महंत श्याम गिरि, स्वामी प्रकाशानंद सरस्वती, स्वामी उदितानंद ब्रह्माचारी ने शोक व्यक्त किया।
- महंत रमेश पुरी ने सांप्रदायिक सौहार्द के लिए आजीवन संघर्ष किया। उनके ब्रह्मलीन होने से जो स्थान रिक्त हुआ है, उसकी भरपाई कभी नहीं की जा सकती है।- महामंडलेश्वर स्वामी विनय स्वरूपानंद सरस्वती
- महंत रमेश पुरी के निधन से मन व्यथित है। वे पर्यावरण संरक्षण, गो संरक्षण और समाज में भाईचारा कायम करने के लिए सदैव प्रयासरत रहे। उनका निधन बड़ी क्षति है। -महंत श्रीकृष्ण दास, पंचमुखी हनुमान मंदिर पनकी।
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