Nasal Vaccine: जिन्होंने लगवा ली सतर्कता डोज, वो भूलकर भी न लगवाएं इंट्रा नेजल वैक्सीन, जानें क्यों?
कोरोना रोधी इंट्रा नेजल वैक्सीन बाजार में आ गई है। बता दें अभी तक जिन्होंने एक भी डोज नहीं लगवाई है उनके लिए यह वैक्सीन सुरक्षित और कारगर है। लेकिन जिन्होंने दोनों के बाद सतर्कता डोज भी लगवा ली वे इंट्रा नेजल वैक्सीन की चौथी डोज भूलकर भी न लगवाएं।

ऋषि दीक्षित, कानपुर: कोरोना रोधी इंट्रा नेजल वैक्सीन बाजार में आ गई है। मूल्य निर्धारण भी हो गया है। फिलहाल इसे निजी क्षेत्र में उपलब्ध कराया जाएगा। अभी तक जिन्होंने वैक्सीन की एक भी डोज नहीं लगवाई है, उनके लिए यह वैक्सीन सुरक्षित और कारगर है। वहीं, जिन्होंने वैक्सीन की दोनों डोज के बाद सतर्कता डोज भी लगवा ली है, वे इंट्रा नेजल वैक्सीन की चौथी डोज भूल कर न लगवाएं। बता दें ऐसा करने पर एंटीजन सिंक फिनोमेना हो सकता है। मतलब यह कि शरीर में अत्यधिक एंटीजन होने से उसके खिलाफ एंटीबाडी नहीं बन पाएगी, कोरोना वायरस हमला करेगा तो एंटीबाडी उस एंटीजन को पहचान भी नहीं पाएगा। ऐसी स्थिति में कोरोना संक्रमण का खतरा होगा।
बूस्टर डोज लगवा चुके लोगों पर हो सकती निष्प्रभावी
जीएसवीएम मेडिकल कालेज के माइक्रोबायोलाजी विभाग के प्रोफेसर डा. विकास मिश्रा ने बताया कि इंट्रा नेजल कोरोना वैक्सीन इनकोवैक चौथी डोज के रूप में किसी को नहीं लगाई जा सकती है। यह कोरोना रोधी वैक्सीन की दोनों डोज के बाद सतर्कता यानी बूस्टर डोज लगवा चुके लोगों पर निष्प्रभावी हो सकती है। उनका कहना है कि वैक्सीन में वायरस के खिलाफ एंटीबाडी बनाने को एंटीजन दिया जाता है। जब शरीर में अधिक मात्रा में एंटीजन चला जाएगा तो एंटीजन सिंक फिनोमेना हो जाएगा। इस वजह से मास्किंग आफ रिसेप्टर यानी भ्रम की स्थिति पैदा हो जाएगी।
ऐसे काम करती है एमआरएनए वैक्सीन
एमआरएनए (मैसेंजर राइबोज न्यूक्लिक एसिड) एक जेनेटिक कोड का छोटा हिस्सा है, जो शरीर की कोशिकाओं में प्रोटीन बनाता है। जब शरीर पर वायरस या बैक्टीरिया हमला करता है तो एमआरएनए कोशिकाओं को उसका प्रतिरोध करने के लिए प्रोटीन बनाने का संदेश देती है। ऐसे में शरीर के प्रतिरक्षण प्रणाली को जरूरी प्रोटीन मिलने को ही एंटीबाडी बनना कहते हैं। डा. विकास का कहना है कि कोरोना रोधी वैक्सीन एमआरएनए वैक्सीन है। इसलिए उसके डोज में अंतराल रखा गया है, जिससे पर्याप्त एंटीबाडी बन सके। पहली और दूसरी डोज के बीच में 28 से 30 दिन का अंतराल है। सतर्कता डोज लगाने में पहले नौ माह, फिर छह माह और अब तीन माह का अंतराल रखा गया है।
जीएसवीएम में पहले हो चुका अध्ययन
जीएसवीएम मेडिकल कालेज में माइक्रोबायोलाजी विभाग के प्रोफेसर डा. विकास मिश्रा कोरोना काल के दौरान मोनोक्लोनल एंटीबाडी को लेकर अध्ययन कर चुके हैं। उसमें यह देखा गया था कि जब अधिक मात्रा में मोनोक्लोनल एंटीबाडी दी गई तो शरीर की एंटीबाडी ने उसके खिलाफ प्रतिक्रिया देना ही बंद कर दिया था। मोनोक्लोनल एंटीबाडी के लिए एंटीजन सिंक फिनोमेना प्रमाणित हो चुका है। यही स्थिति कोरोना रोधी वैक्सीन की चौथी डोज पर लागू होती है।
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