Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Malegaon Blast Case: जेल, जमानत और अब निर्दोष, कानपुर के परिवार ने बयां किया 17 साल का बुरा वक्त

    By shiva awasthi Edited By: Anurag Shukla1
    Updated: Fri, 01 Aug 2025 06:21 PM (IST)

    कानपुर से मालेगांव ब्लास्ट केस में सुधाकर द्विवेदी के बरी होने पर उनके परिवार ने 17 साल के संघर्ष को बयां किया। परिवार ने बताया कि कैसे गिरफ्तारी के बाद उन्हें सामाजिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी और आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। अधिवक्ता भाई पुष्कर द्विवेदी ने बताया कि कैसे उन्होंने और उनकी भाभी ने सुधाकर के दिव्यांग बेटे का पालन-पोषण किया।

    Hero Image
    काशी विश्वनाथ में पूजन अर्चन करते सुधाकर धर द्विवेदी (बाएं )। स्वजन

    शिवा अवस्थी, जागरण, कानपुर। अब आपको हम क्या बताएं, दुर्दिन के वह 17 साल कैसे बीते। भले ही उनके जेठ अब निर्दोष साबित हुए हैं, पर संघर्ष के 17 सालों का हिसाब बताइए कौन देगा। चलिए, दाग तो धुल गया पर अब वह दिन तो नहीं ही लौटेंगे न। जिंदगी के स्वर्णिम समय में जब पत्नी-बच्चों व परिवार के साथ समय बिताना था, तब जेल, जमानत, स्वयं को निर्दोष साबित करने के प्रयास में भागदौड़, सबकी नजरों में दोषी के रूप में तनाव भरा वक्त बीता। गुरुवार को मालेगांव विस्फोट कांड में बरी हुए सुधाकर द्विवेदी के घर जब दैनिक जागरण की टीम पहुंची तो अपना नाम बताए बगैर उनकी बहू ने कुछ इस अंदाज में दर्द बयां किया। उनकी आंखें भी भर आईं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अधिवक्ता भाई पुष्कर द्विवेदी ने कहा कि दिव्यांग इंजीनियर बेटा अहमदाबाद में बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत है पर 17 साल तक उसकी मां यानी मेरी भाभी व मैंने उसे कैसे पाला-पोसा व बड़ा किया। क्या-क्या नहीं सुनना व सहना पड़ा। 12 नवंबर, 2008 को एटीएस ने अयोध्या जाते समय उन्हें पकड़ा था, जबकि रावतपुर गांव स्थित घर से गिरफ्तारी बता दी गई। विस्फोट कांड से लगभग कुछ समय पहले ही भाईसाहब की भेंट पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा से काशी व उज्जैन महाकाल मंदिर में कार्यक्रमों के दौरान हुई थी।

    मूलरूप से मिर्जापुर के निवासी सुधाकर द्विवेदी का परिवार रावतपुर गांव में सिद्धेश्वर मंदिर के पास रहता है। परिवार में 84 साल के पिता उदयभान धर द्विवेदी हैं, जो तब उत्तराखंड के धारचूला से निरीक्षक पद से 26 साल पहले सेवानिवृत्त हुए थे। अधिवक्ता भाई पुष्कर व उनकी पत्नी हैं। सुधाकर की ससुराल गोरखपुर में हैं, जहां इन दिनों उनकी पत्नी गई हुई हैं। सुधाकर ने वर्ष 1993 में 32 साल पहले रावतपुर गांव स्थित घर छोड़ दिया था। बीच-बीच में आते-जाते थे। भाई ने बताया कि वह कश्मीर में शारदा सर्वज्ञ पीठ के पीठाधीश्वर थे। बड़े भाई सुधाकर के निर्दोष होने के बावजूद जेल जाने से पूरा परिवार बिखर गया। लोगों ने उन्हें आतंकी के रूप में देखा और उनकी मानों सामाजिक प्रतिष्ठा ही चली गई। पूरा परिवार लंबे समय तक मानसिक तनाव से जूझता रहा। आखिरकार सच जीता।

    न्यायालय से उन्हें निर्दोष मानते हुए बरी कर दिया गया। अब परिवार खुश है, लेकिन संघर्ष के उन 17 सालों की काली रातें याद करके तन-मन सिहर उठता है। पहले जुगल देवी व फिर वीएसएसडी कालेज से भइया ने पढ़ाई की। एमए, पीएचडी करने के बाद उनका मन आध्यात्म की ओर बढ़ा व मानव शरीर लेकर मोक्ष प्राप्ति व दुनिया भर में घूमकर लोगों को सही राह दिखाने की इच्छा प्रबल हुई। साध्वी प्रज्ञा से मिलने के एक माह बाद ही घटना हुई और उन्हें जेल जाना पड़ा। इससे उनके दिव्यांग बेटे व भाभी को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं, लेकिन उन्होंने संघर्ष से हार नहीं मानी। भइया के साथ उस समय तत्कालीन आइपीएस अधिकारी दिनेश एमएन भी जेल में बंद थे। उन्हें भी फर्जी मुठभेड़ मामलों का आरोपित बनाया गया था, जो अब एक साजिश रचने के रूप में सबके सामने अदालत के इस निर्णय से आ गया है।

    वहीं, भाजपा के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष व बजरंग दल के तत्कालीन राष्ट्रीय संयोजक प्रकाश शर्मा ने कहा कि मालेगांव बम विस्फोट के सभी आरोपितों को निर्दोष मानकर बरी करने का अदालत का कदम स्वागत योग्य है। यह निर्णय बताता है कि किस तरह से तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति को धार देने के लिए हिंदू संगठनों, हिंदू नेतृत्व व भारत की संत शक्ति को अपनी राजनीति का माेहरा बनाने का प्रयास किया था। बम विस्फोट में पकड़े गए इस्लामिक जेहादियों को बचाने के लिए भगवा आतंकवाद का रूप देने का प्रयास किया गया था। पूरे हिंदू समाज को ही जेहादी आतंकियों जैसा बताकर बदनाम करने व फंसाने का षड्यंत्र रचा था। अब सत्य सामने आ गया है। किसी स्तर पर कोई भी आरोप सिद्ध नहीं हो सका। सभी लोग सम्मानजनक ढंग से न्यायालय के आदेश पर मुक्त हो गए हैं। कांग्रेस की हिंदू विरोधी स्क्रिप्ट की जितनी भी निंदा की जाए कम है। अदालत के इस निर्णय से साफ है कि कांग्रेस हिंदू विरोधी राजनीति को हमेशा बढ़ावा देती रही।

    घर के आसपास सन्नाटा, लोग बोले-सच सामने आया

    रावतपुर गांव में सुधाकर द्विवेदी के घर के आसपास गुरुवार रात सन्नाटा पसरा रहा। पिता उदयभान धर द्विवेदी लालबंगला में अपने दामाद के निधन की घटना के कारण वहां गए थे, जबकि भाई पुष्कर भी घर से बाहर थे। मुहल्ले के लोग भी जागरण टीम के पहुंचने पर विस्मृत निगाहों से देखते रहे। उन्हें भी सुधाकर के निर्दोष होने की जानकारी मिली तो कहा कि अक्सर यही बातें होती थीं कि उन्हें फंसाया गया है। आखिर में सच सामने आ ही गया।

    मुंबई और यूपी एटीएस ने की थी गिरफ्तारी

    सुधाकर की गिरफ्तारी मुंबई व यूपी एटीएस की संयुक्त टीम ने की थी। मुंबई एटीएस के एसीपी मोहन कुलकर्णी ने यूपी के तत्कालीन डीजीपी बृजलाल व तत्कालीन डीआइजी एटीएस राजीव कृष्ण के साथ मिलकर रणनीति बनाई थी। सुधाकर को हिरासत में लेकर रात भर पूछताछ हुई थी। तब एटीएस ने मिर्जापुर में दयानंद द्विवेदी के कानपुर में उदयभान द्विवेदी के नाम से आकर बसने व 2003 में सुधाकर के जम्मू-कश्मीर में शारदा सर्वज्ञ पीठ के पीठाधीश्वर के रूप में मकान नंबर 248, सेक्टर-1ए त्रिकुटानगर में रहने की बात कही थी। सुधाकर को वहां लोग स्वामी अमृतानंद, दयानंद के नाम से भी संबोधित करते थे। बाकी किसी विस्फोट या आतंकी घटना में उस समय भी जुड़ाव नहीं होने की बात कही गई थी।