जन्मस्थली पर ही बिसरा दिए गए महाकवि भूषण
वीर रस से ओतप्रोत कुछ ऐसी ही रचनाओं के जरिए रीति काल में विशिष्ट पहचान बनाने वाले महाकवि भूषण अपनी जन्मस्थली टिकवांपुर में ही बिसरा दिए गए। वर्ल्ड काइंडनेस संस्था से जुड़कर भारत भ्रमण पर निकली अमेरिकी पत्रकार जॉय रीड ने उनकी जन्मस्थली टिकवांपुर में दुर्दशा देखी।
घूटत कमान अरू तीर गोली बानन के मुसकिल होति मुरचान हू की ओट में।
ताहि समै सिवराज हुकम के हल्ल कियो दावा बाधि पर हल्ला वीर भट जोट में॥
संवाद सहयोगी, घाटमपुर (कानपुर): वीर रस से ओतप्रोत कुछ ऐसी ही रचनाओं के जरिए रीति काल में विशिष्ट पहचान बनाने वाले महाकवि भूषण अपनी जन्मस्थली टिकवांपुर में ही बिसरा दिए गए। वर्ल्ड काइंडनेस संस्था से जुड़कर भारत भ्रमण पर निकली अमेरिकी पत्रकार जॉय रीड ने उनकी जन्मस्थली टिकवांपुर में दुर्दशा देखी। वहां कोई स्मृति स्थल न होने पर हैरानी जताई और कटु स्मृति लेकर वह गांव से रवाना हुई।
सामाजिक कार्यकर्ता केएम भाई द्वारा आरटीआइ टी स्टाल के माध्यम से शुरु की गई सूचना के अधिकार के प्रचार-प्रसार की मुहिम में भाग लेने के लिए अमेरिकी पत्रकार जॉय रीड मंगलवार को गांव टिकवांपुर पहुंची थी। वहां मौजूद लोगों ने उन्हें महाकवि भूषण की जन्मस्थली की जानकारी दी और ¨हदी साहित्य में उनके योगदान पर चर्चा शुरू हुई, तो उन्होंने गांव के भ्रमण की इच्छा जताई। केएम भाई व आयोजन से जुड़े राज बहादुर सचान, मनोज, कैलाश, शैलेंद्र, गो¨वद, पुनीत, रमेश, जमुना, अंकित व अजीत आदि के साथ गांव की गलियों में घूम टूटी सड़कें व बजबजाती नालियां देख असहज महसूस कर रही जॉय ने महाकवि के स्मृति स्थल के बाबत पूछा। गांव में ऐसा कोई स्थान न होने की जानकारी पाकर अचंभित दिखी। इस दौरान रास्ते में मिली ग्रामीण महिलाओं से गले मिल उन्होने आत्मीयता दर्शाते हुए फोटो भी ¨खचवाई। हालांकि गांव के कुछ लोगों ने क्षेत्रीय सांसद देवेंद्र ¨सह भोले द्वारा गांव टिकवांपुर को 2014 में गोद लेने और जल्द ही महाकवि भूषण की प्रतिमा स्थापित कराने की योजना की जानकारी दी। इसके बाद आरटीआइ टी स्टाल में जॉय ने लोगों को अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम ¨लकन व बराक ओबामा का उदाहरण देकर उनके जीवन दर्शन से सीख लेने को कहा। जॉय के अंग्रेजी में दिए गए भाषण का केएम भाई अनुवाद कर लोगों को बता रहे थे।
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रीतिकाल में रचनाओं में उतारा वीर रस
महाकवि भूषण रीतिकाल के तीन प्रमुख कवियों में से एक हैं, उनके बाद बिहारी तथा केशव हैं। रीति काल में जब सब कवि श्रृंगार रस में रचना कर रहे थे, उस वक्त वीर रस में प्रमुखता से रचना कर भूषण ने खुद को सबसे अलग साबित किया। 'भूषण' की उपाधि उन्हें चित्रकूट के युवराज ने दी थी। ये मोरंग, कुमायूँ, श्रीनगर, जयपुर, जोधपुर, रीवाँ, शिवाजी और छत्रसाल आदि के आश्रय में रहे, परन्तु इनके पसंदीदा नरेश शिवाजी और बुंदेला राजा छत्रसाल थे। अभी तक उनकी छह रचनाएं मिली हैं लेकिन शिवा बावनी, शिवराज भूषण और छत्रसाल दशक उनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। माना जाता है, सर्वप्रथम उन्होंने ही बृज भाषा में वीर रस का प्रयोग किया।
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