3 हफ्ते बाद शुरू होगा माघ मेला, गंगा में गिर रहा गंदा पानी, बायोरेमिडेशन करने वाली कंपनी ने नहीं शुरू किया काम
तीन जनवरी से शुरू होने वाले माघ मेला से पहले गंगा में गिर रहे नालों के दूषित पानी के शोधन की कोई प्रभावी व्यवस्था अब तक नहीं हो सकी है। नालों क ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, कानपुर। तीन जनवरी से माघ मेला शुरू होने जा रहा है लेकिन अभी तक गंगा में गिर रहे नालों के दूषित पानी को शोधित करने के लिए कोई कारगर व्यवस्था नहीं की गई है। नालों को बंद करने के लिए 139 करोड़ का प्रोजेक्ट स्वीकृत हो गया है और कंपनी भी फाइनल हो गई है। हालांकि नालों को बंद होने का कार्य शरू होने के बाद 18 माह लगेंगे। ऐसे में बायोरेमिडेशन (जैविक उपचार) के माध्यम से नालों के दूषित पानी को शोधित किया जाना है। इसको लेकर नगर निगम अफसरों ने कंपनी को नोटिस दी है।
गंगा में वर्तमान में छह नाले सीधे गिर रहे है। इन नालों को शोधित करने के लिए नगर निगम ने एक माह पहले आर्गेनिक साइंटिफिक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी चिह्नित की थी लेकिन अभी केवल नालों के दूषित पानी को शोधित करने के नाम पर खानापूरी हो रही है। करीब पांच करोड़ लीटर दूषित पानी रोज गंगा व पांडु नदी में जा रहा है। गंगा रानी घाट, डबका नाला, सत्तीचौरा नाला, गोलाघाट, रामेश्वरम घाट और गुप्तार घाट नाला से दूषित पानी गंगा में जा रहा है।
ये होता है बायोरेमिडेशन
बायोरेमिडेशन में जैविक विधि से नाले के दूषित पानी को शोधित करके गंगा में डाला जाता है। इसमें कुछ ऐसे घास और पौधे होते हैं, जिनकी जड़ों में बैक्टीरिया पैदा होते हैं। बायोरेमिडेशन तकनीक में केना घास समेत अन्य घास को नालों में लगाया जाता है। इसमें पनपने वाले बैक्टीरिया नालों में बहने वाली गंदगी को खाते हैं। इनके बीच में दूषित पानी निकालकर शोधित करके गंगा में डाला जाता है।
कंपनी को दी गई नोटिस
नगर निगम की सहायक अभियंता मीनाक्षी अग्रवाल ने बताया कि लापरवाही बरतने में कंपनी को नोटिस दी है। साथ ही आदेश दिए है कि हर हाल में नालों के दूषित पानी को शोधित करके गंगा में डाला जाए। कार्य ठीक से न करने पर जुर्माना लगेगा।

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