फुलवा का ऐसा स्वाद कि हर जुबां बोले- वाह.., 17वीं शताब्दी में पुर्तगाली व्यापारी लाए थे भारत
फर्रुखाबाद को आलू की पैदावार की बेल्ट कहा जाता है यहां फुलवा आलू की पैदावार करीब पांच सौ साल से निरंतर की जा रही है। अच्छे स्वाद के कारण शौकीन खासा पसंद करते हैं और दूसरों से यह दोगुना दाम पर बिकता है।

फर्रुखाबाद, [विजय प्रताप सिंह]। आलू के बगैर सब्जी में तो स्वाद अधूरा ही रहता है, इसके इतर बच्चे और बड़ों की पसंद चिप्स हो या फ्रेंच फाइज या फिर नमकीन भुजिया ही क्यों न हो। लजीज स्वाद के चलते हर जुबां चटकारा लेकर पसंद करती है, लेकिन क्या आपको पता है कि भारत में आलू कब आया था। इसकी सबसे प्राचीन प्रजाति कौन सी है और क्यों ज्यादा पसंद की जाती है। पांच सौ साल पुरानी आलू की प्रजाति 'फुलवा' का जलवा अब भी कायम है। वजह, इसे दम आलू और होली पर स्वादिष्ट पापड़ बनाने में बहुतायत में इस्तेमाल किया जाता है। इसीलिए सामान्य आलू से दोगुनी कीमत के बाद भी स्वाद के शौकीन इसे खरीदते हैं। उत्पादक किसान प्रदेश के साथ ही दूसरे प्रांतों तक इसकी आपूर्ति करते हैं। कम उत्पादन और ज्यादा दिन में फसल होने के कारण कुछ ही किसान इसकी पैदावार वर्तमान में कर रहे हैं।
सामान्य से दोगुना होते हैं दाम
जानकार बताते हैं, करीब 500 वर्ष पुरानी नॉन हाइब्रिड आलू की प्रजाति फुलवा की फसल 150 दिनों में होती है। कुछ बड़े किसान अपने इस्तेमाल के साथ ही बाजार में भी यह आलू उपलब्ध करा रहे हैं। फुटकर बाजार में सामान्य आलू आठ से 10 रुपये प्रति किलो है, जबकि फुलवा की बिक्री 20 रुपये और उससे अधिक में हो रही है।
शुगर की मात्रा कम, सेहत के लिए फायदेमंद
फुलवा प्रजाति की आलू के कंद में लज्जत अधिक होती है, जबकि शुगर की मात्रा कम रहती है। इसलिए यह सेहत के लिए भी फायदेमंद है। इससे बनी दम आलू की सब्जी का स्वाद एकदम अलग होता है। पापड़ भी बेहतर होते हैं।
दूसरी किस्मों से आधी पैदावार, भून कर खाने में स्वादिष्ट
हरकमपुर निवासी आलू किसान संतोष दुबे बताते हैं कि फुलवा आलू का उत्पादन अन्य हाइब्रिड आलू की फसलों से आधा यानी 20 से 25 पैकेट प्रति बीघा होता है। फुलवा आलू की फसल पांच माह में तैयार होती है। छोटा आलू निकलता है। शौकीन किसान अब भी खाने के लिए फुलवा आलू ही बोते हैं। घर की खपत के साथ मंडियों में भी भेजते हैं। सलेमपुर निवासी नीशू अग्निहोत्री ने बताया कि फुलवा आलू भूनकर खाने में बहुत स्वादिष्ट होता है।
17वीं शताब्दी में पुर्तगाली व्यापारी भारत लाए थे आलू
पिछले वर्ष जनवरी में केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला की ओर से जारी मैग्जीन के मुताबिक, आलू का उद्गम स्थल दक्षिणी अमेरिका के पेरू व बोलीविया के पास लेक टिटिकाका के समीप एंडीज पर्वत में माना जाता है। भारत में आलू 17वीं शताब्दी के शुरू में पुर्तगाली व्यापारी लाए थे। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के आलू प्रजनन केंद्रों में अब तक 66 उन्नतशील किस्मों का विकास किया गया है। आलू की फुलवा प्रजाति देसी है।
- शौकीन लोग ही फुलवा आलू पसंद करते हैं। इसका स्वाद सामान्य आलू से काफी बेहतर होता है। उत्पादन कम होने के कारण किसान इसे कम बोते हैं। उनके शीतगृह में किसान फुलवा आलू का भंडारण करते हैं। - मोहन अग्रवाल, शीतगृह स्वामी।
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