जानें घंटाघर का इतिहास, यहां तीन साल से ठहर गया है वक्त
सेंट्रल रेलवे स्टेशन के पास सन् 1932 में कलक्टरगंज चौराहे पर घंटाघर बनाया गया। स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने यहां से गणपति पूजा की शुरुआत कराई थी।
कानपुर (जागरण संवाददाता)। वैसे तो कानपुर में सात घंटाघर हैं, लेकिन सेंट्रल रेलवे स्टेशन के पास स्थित घंटाघर पहला ऐसा घंटाघर है, जिसे सार्वजनिक हित को देखते हुए बनाया गया था। इस स्थान का संबंध केवल घड़ी से ही नहीं है, बल्कि अंग्रेजी शासन काल के दौरान देश में सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाने के उद्देश्य से था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इसी स्थान से गणपति पूजा की शुरुआत की थी।
कब बना घंटाघर
वैसे तो कानपुर का पहला घंटाघर सन् 1880 में लाल इमली में बना था, जिसे मिल मजदूरों के लिए बनाया गया था। इसके बाद किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉल, फूलबाग सन् 1911 में दूसरा घंटाघर स्थापित हुआ और सन् 1929 में कोतवाली और सन् 1931 में बिजली घर में घंटाघर की स्थापना हुई। यह सभी घंटाघर किसी न किसी इमारत के हिस्से थे। कानपुर में असली घंटाघर की नींव सन् 1932 में पड़ी।
यह सेंट्रल रेलवे स्टेशन के पास कलक्टरगंज चौराहे पर बनाया गया। यह घंटाघर सार्वजनिक हित के लिए स्वतंत्र रुप से बनाया गया। इसके निर्माण में जार्ज टी. बुम का योगदान रहा। तब इसे बनाने में करीब एक लाख रुपये का खर्च आया था। जिस स्थान पर घंटाघर का निर्माण हुआ, उससे कुछ दूरी पर ही सन् 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणपति पूजा की शुरुआत की थी। बाद में सन् 1908 में यहां स्थानीय लोगों द्वारा गणपति की प्रतिमा स्थापित की गई।
ठहर गई है घंटे की सुई
घंटाघर के रखरखाव की जिम्मेदारी जिला प्रशासन की है। एक समय इसकी घड़ी से ही आधा शहर समय की जानकारी करता था। मगर मोबाइल के इस जमाने में यह ऐतिहासिक घड़ी पिछले तीन सालों से बंद पड़ी है। इमारत भी धीरे-धीरे कमजोर होती जा रही है। अधिकारी भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे है, शहर की विरासत अब गुमनामी की राह पकड़ रही है। इसे लेकर लोग भी अफसरों को ही जिम्मेदार बता रहे हैं।