कारगिल युद्ध के रणबांकुरे, 5 किस्से रोंगटे खड़े करने वाले, अकेले मशीनगन लेकर घुस गए दुश्मनों के बीच
Kargil Vijay Diwas कारगिल युद्ध में दुश्मन के खदेड़ने में कानपुर देहात और औरैया के रणबांकुरे भी शामिल थे। आज भी जब कारगिल विजय दिवस की तिथि आती है तो उस युद्ध के किस्से सुनाने पर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। हिंदुस्तानी जज्बा और देशभक्ति का जोश आज भी उनके स्वर से साफ झलकता है।

जागरण संवाददाता, कानपुर। Kargil Vijay Diwas: आज कारगिल विजय दिवस है। लगभग 60 दिनों तक चले इस युद्ध का अंत 26 जुलाई को विजय के साथ हुआ था। इस युद्ध में भारत के कई सपूतों का बलिदान हुआ। आज का दिन याद करके भले ही आंखें नम हो जाती हैं, लेकिन सीना भी गर्व से चौड़ा हो जाता है। जो इस युद्ध में शामिल हुए और जीवित है वो उसके किस्से बताते हैं रोंगटे खड़े हो जाते हैं। न माइनस तापमान का असर था न पहाड़ की सीधी चढ़ाई का डर। मौका मिला, मशीनगन लेकर दुश्मनों के बीच पहुंच गए। पढ़ें, औरैया से अशोक त्रिवेदी और कानपुर देहात से चारुतोष जायसवाल की ये रिपोर्ट...।
तोलोलिंग पर कब्जा करने का आदेश मिला: कैप्टन रामस्वरूप पाल
अकबरपुर के रिटायर्ड कैप्टन रामस्वरूप पाल 1999 में पैरा कमांडो यूनिट में शामिल थे। उस समय वह हवलदार एक प्लाटून लीडर थे। उनकी तैनाती उस समय आगरा में थी, रात में ही जहाज से कश्मीर पहुंचाया गया। वह बताते हैं कि हम लोगों को बटालिक सेक्टर द्रास की तरफ जाने का आदेश मिला, कठिन परिस्थितियों में दुर्गम क्षेत्र आक्सीजन की कमी, माइनस तापमान लेकिन दिल में जज्बा हिंदुस्तानी था दुश्मन हमारी सीमा में घुसा इस बात पर खून गर्म था। भारत मां के जयकारे संग पहाड़ियों पर चढ़ते गए हमारे साथ और भी सैनिकों की टुकड़ियां मिली। हमें तोलोलिंग पर कब्जा करने का आदेश मिला लेकिन दुश्मन चोटी पर था ऐसे में उसकी फायरिंग के बीच गोला बारूद नहीं पहुंच पा रहा था।
आंखों के सामने बिहार के दो साथी हो गए थे बलिदान
आर्टिलरी की बोफोर्स तोपों से गोले बरसाए गए तब हमारी टुकड़ी को ऊपर चढ़ने का मौका मिला और दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए। 13 जून 1999 को हमारी टुकड़ी ने तोलोलिंग की पहाड़ी पर कब्जा कर तिरंगा फहराया। इसी तरह से उसी समय यहां भोगनीपुर के प्रबल सिंह वहां पर तैनात थे जो कि तोप रेजीमेंट में थे। उन्होंने अदम्य साहस का परिचय दिया था और डटे रहे थे इस दौरान उनके दो साथी बिहार के जवान बलिदान हो गए थे। लेकिन इसके बाद भी वह हिम्मत नहीं हारे थे और साथियों संग वहां ताकत से डटे रहे। टाइगर हिल पर परचम के साथ ही विजय पताका फहराई थी। आज भी जब कारगिल दिवस आता है युद्ध का मंजर सामने आ जाता है। साथियों की याद आती है पर गर्व होता है कि उनका जीवन देश के लिए रहा।
मशीनगन लेकर अकेले टूट पड़े थे चंद्रिका प्रसाद
26 जुलाई को कारगिल दिवस है। देश की सीमा में घुसने की कोशिस करने वाले दुश्मनों को धूल चटाने में औरैया के आधा सैकड़ा रणबांकुरों ने युद्ध कौशल को आज भी याद किया जाता है। उनमें से एक सहायल निवासी चंद्रिका प्रसाद भी हैं जो अकेले मशीनगन लेकर आपरेशन विजय में कूद पड़े थे। उनके कई साथी बलिदान हो गए। बम के टुकड़ों से चंद्रिका भी जख्मी हो गए। आज भी वह देश के जांबाज साथियों के कौशल का आंखों देखा हाल बयां करते नहीं थकते। बताते हैं कि उस दिन की याद करके उनकी भुजाएं फड़क उठती हैं। आज भी दुश्मनों से बदला लेने की तमन्ना दिल में रखते हैं।
छह साथी बलिदान हो गए थे, खून खौल उठा था
गांव सहायल के रहने वाले चंद्रिका प्रसाद 1980 में देश सेवा के लिए थल सेना के गार्ड रेजिमेंट में तैनात हुए। जुलाई 1999 में कारगिल के विजय आपरेशन में अपने रेजीमेंट के साथ युद्ध के मैदान में उतरे। बताते हैं कि युद्ध में चारों तरफ गोलियों और बमों के धुएं छाई रहती थी। रेजिमेंट की सैन्य टुकड़ी सियाचिन ग्लेशियर पर तैनात थी। किसकी गोली किस दुश्मन का सीना छलनी करेगी, पता ही नहीं चलता। सामने था तो केवल भारत माता के लिए आपरेशन विजय की सफलता का संकल्प। बताते हैं कि 18 व 19 जुलाई के बीच उनके रेजिमेंट के छह साथी बलिदान हो गए। युद्ध समाप्त तक संख्या नौ हो गई थी। दुश्मनों के सामने डटे उनके हमजोली गाजीपुर के हरवंश सिंह व फिरोजाबाद के अमर सिंह ने जब अंतिम सांस ली तो उनका खून खौल उठा।
टाइगर हिल में तिरंगा फहराया तो मिला सुकून
फिर क्या था 20 जुलाई की रात नाइट विजन की कैप लगाकर बकरबाल(बकरी, भेंड़ आदि चराने वाले) के भेष में आए दुश्मनों से मशीनगन लेकर अकेले मोर्चा लेने को निकल पड़े। जबकि अन्य लोग बंकर में थे। वह जब दुश्मनों से मोर्चा ले रहे थे। उसी समय बम गिरा जिसके टुकड़े हाथों में आ लगे और वह घायल होकर गिर पड़े। साथी बंकर में ले गए और सहायता टीम ने लेह पहुंचाया। वहां प्राथमिक उपचार के बाद चंडीगढ़ में भर्ती कराया। जहां हाथ में प्लास्टिक सर्जरी की गई। 26 जुलाई को टाइगर हिल पर तिरंगा फहराने की खबर से उन्हें सुकून मिला। अस्पताल में ही भारत माता की जय के नारे लगाए।
तीन सितंबर 1987 में आर्मी में भर्ती हुए अनिल चौबे ने राजपूत रेजिमेंट सेंटर फतेहगढ़ में ट्रेनिंग ली। 1988 में श्रीलंका राजपूत रेजिमेंट की एक बटालियन में तैनात हुए। 13 महीने तक शांति सेना में हिस्सा लिया। कारगिल के आपरेशन विजय का गुरेज सेक्टर में कंजाल वन पोस्ट का दृश्य आज भी मेरे आंखों के सामने है। 26 जुलाई 1999 में टाइगर हेल्पर कब्जा हुआ कारगिल हिल से मैं थोड़ा दूरी पर था।
-अनिल चौबे, तिलक नगर
कारगिल युद्ध के दौरान ड्यूटी पर वायु सेना में फाइटर प्लेन फिट करने वाली टीम के तकनीकी सुपरवाइजर थे। फ्रंट लाइन फाइटर मिराज 2000 को फिट रखने के लिए तकनीकी अनुभव युद्ध के दौरान साझा किए। आने वाली कमियों को दूर करने के लिए पूरा स्टाफ दिन रात सक्रिय रहता था।
-सलिल सक्सेना, पूर्व सैनिक, आवास विकास कालोनी
कारगिल युद्ध में हिस्सा लेने का अवसर प्राप्त हुआ था। भारतीय सेना के जवाब से दुश्मन अपनी पोस्टें छोड़कर भागे थे। निश्चित तौर पर पाकिस्तान को कारगिल की हार आज भी सता रही होगी। जिन विषम परिस्थितियों में साथी सैनिकों ने आपरेशन विजय की सफलता हासिल की थी। उससे भारत का गौरव वैश्विक पटल पर बहुत ऊंचा हुआ है।
-अविनाश अग्निहोत्री, पूर्व सैनिक
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