मंदी में फंसा कानपुर का कपड़ा बाजार, 14 हजार करोड़ रुपये की लगी चपत Kanpur News
पूरब के मैनचेस्टर में रोज होता था 100 करोड़ रुपये का कारोबार अब 40 फीसद हो गया कम।
कानपुर, [राजीव सक्सेना]। पूरब के मैनचेस्टर कहे गए कानपुर के कपड़ा करोबार पर मंदी ने 14 हजार करोड़ रुपये की चपत लगाई है। रोजाना 100 करोड़ रुपये का यह कारोबार 40 फीसद लुढ़क गया है। उप्र में नंबर-वन कपड़ा कारोबार के विकट हाल की तस्दीक कानपुर कपड़ा कमेटी के अध्यक्ष काशी प्रसाद शर्मा भी करते हैैं। वह कहते हैैं कि 54 साल के कारोबारी जीवन में इतना सन्नाटा नहीं देखा। आज कमाना तो दूर, रोज का खर्च निकालना मुश्किल है। अरबों रुपये जीएसटी रिफंड में फंसे हुए हैैं। काम न होने से पल्लेदार भी घट गए हैैं।
रिफंड में अरबों फंसे
कपड़ा कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्रीकृष्ण गुप्ता के मुताबिक मंदी की मूल वजह जीएसटी और महंगाई है। कपड़े पर जीएसटी पहली बार लगा है। कारोबारी का रिफंड में अरबों रुपये फंसा है। जब पैसा नहीं तो कारोबार कहां से करें?
टैक्स स्लैब भी उलझाऊ
कपड़ा कमेटी के प्रधान सचिव लक्ष्मण सहगल के मुताबिक 1000 रुपये तक के कपड़े पर पांच फीसद जीएसटी है। जैसे ही दुकानदार लाभ जोड़कर 1000 के ऊपर बेचता है तो उस पर 12 फीसद टैक्स लग जाता है। इस सात फीसद अंतर ने ही कपड़ा बाजार की कमर तोड़ी है।
धागे और कपड़े के टैक्स ने रुलाया
सिंथेटिक धागे व इससे बने कपड़े के टैक्स में भी बड़ा अंतर है। धागे पर 12 फीसद टैक्स है और इसी से बने कपड़े पर पांच फीसद।
बाजार में फंसा पैसा, मांगने की नहीं हो रही हिम्मत
कानपुर में सूरत, अहमदाबाद, दिल्ली, राजस्थान के पाली, बालोत्रा व भीलवाड़ा, तमिलनाडु के ईरोड, महाराष्ट्र के मुंबई, भिवंडी व इचलकरंजी और हरियाणा के भिवानी से कपड़ा आता है। यहां उप्र के साथ उत्तराखंड व बिहार के तमाम कारोबारी आते हैैं। पर, कुछ महीनों से बाजार इतना सुस्त है कि बकाया पैसा मांगने से लोग हिचक रहे हैैं। नौघड़ा कपड़ा कमेटी अध्यक्ष शेष नारायण त्रिवेदी बताते हैैं कि हर कोई सन्नाटे में है। जिसे भुगतान लेना है, वह भी जानता है कि बाजार ठंडा पड़ा है। यही नहीं, सूरत के तमाम फैक्ट्री मालिक दीवाली या सहालग के लिए नई डिजाइन भी नहीं बना रहे। असर ट्रांसपोर्ट और पल्लेदारों पर भी है। उप्र युवा ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष श्याम शुक्ला बताते हैैं कि बाहर के पल्लेदार कुछ पैसे बचाकर घर भेजते हैैं। काम नहीं मिलने से घर गए पल्लेदार अभी तक नहीं लौटे हैैं। जीएसटी अफसर यह कहकर बच रहे हैैं कि उद्योगवार उनका डाटा नहीं बनता। वे टैक्स रिफंड की सुस्त गति की बात मानते हैैं।
कभी था स्वर्णिम युग
एनटीसी की लक्ष्मी रतन कॉटन मिल, अथर्टन वेस्ट, विक्टोरिया, स्वदेशी, म्योर मिल थीं। बीआइसी लाल इमली, एल्गिन नंबर 1, एल्गिन नंबर 2, कानपुर टेक्सटाइल, जेके समूह की जेके कॉटन, जेके सिंथेटिक, जेके रेयॉन आदि कपड़ा मिलें कानपुर की शान थीं। यह स्वर्णकाल 1950 से 1970 तक रहा। वक्त बदला और इतिहास बनाने वाली मिलें खुद इतिहास हो गईं। फिर भी, सौ साल से ज्यादा पुराने जनरलगंज, काहूकोठी व नौघड़ा के पांच हजार से अधिक थोक कपड़ा कारोबारियों ने व्यवसाय बचाया।
होजरी गारमेंट पर भी बुरा असर
कानपुर में सालाना तीन हजार करोड़ रुपये के होजरी गारमेंट कारोबार पर भी मंदी का साया है। देश में त्रिपुर, कोलकाता व लुधियाना के बाद कानपुर चौथे नंबर पर है। यहां 1000 दुकानदार हैैं। यहां भी 20 फीसद तक कारोबारी गिरावट आई है।
कानपुर का उद्योग
- 65,500 करोड़ रुपये का औद्योगिक कारोबार।
- 10 लाख से अधिक को रोजगार।
- 10,000 करोड़ का राजस्व जीएसटी, आयकर व अन्य करों से।
- 14,000 सूक्ष्म व लघु उद्योग।
- 950 मध्यम उद्योग।
- 105 लार्ज कैप उद्योग।
- 1.60 लाख करोड़ रुपये की जीडीपी।
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