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    Kanpur : अब स्वदेशी सेंसर बताएगा प्रदूषण होने की वजह, यूपी और बिहार में ब्लाॅक स्तर तक शुरू किया गया आंकलन

    By Jagran NewsEdited By: Mohammed Ammar
    Updated: Sun, 04 Jun 2023 06:37 PM (IST)

    केंद्र सरकार की पहल पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) कानपुर ने पर्यावरण की बेहतरी के लिए बड़ी पहल की है। परियोजना में दोनों प्रदेशों के 113 के 1356 ब्लाक में एयर क्वालिटी सेंसर लगाए जाएंगे। ये प्रदूषण के साथ तापमान की भी जानकारी देगा।

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    स्वदेशी सेंसर बताएगा प्रदूषण होने की वजह, उत्तर प्रदेश और बिहार में ब्लाॅक स्तर तक शुरू किया आंकलन

    अनुराग मिश्र, कानपुर : आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत तैयार स्वदेशी सेंसर उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रदूषण के कारण बताएंगे और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) उनके निवारण के सुझाव केंद्र सरकार को भेजकर उनका निदान कराएगा ताकि लोगों को बेहतर सांसें मिल सकें।

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    केंद्र सरकार की पहल पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) कानपुर ने पर्यावरण की बेहतरी के लिए बड़ी पहल की है। परियोजना में दोनों प्रदेशों के 113 के 1356 ब्लाक में एयर क्वालिटी सेंसर लगाए जाएंगे। ये प्रदूषण के साथ तापमान की भी जानकारी देगा।

    अगले माह तक बिहार में परियोजना पूरी करने के बाद उत्तर प्रदेश में काम शुरू किया जाएगा। फिलहाल आइआइटी में विशेष उपकरणों की मदद से इन सेंसर के आंकड़ों का मिलान चल रहा है। सटीक आंकड़े मिलने के बाद इन्हें कैलीब्रेट कराया जाएगा।

    क्यों पड़ी जरूरत

    आइआइटी के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के अध्यक्ष डा. सच्चिदानंद त्रिपाठी बताते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हर एक लाख व्यक्ति पर एक सेंसर होना चाहिए लेकिन वर्तमान में इनकी संख्या प्रति नौ लाख व्यक्ति पर एक है। दरअसल एक मानीटरिंग सिस्टम की कीमत 1.4 करोड़ रुपये तक है।

    आइआइटी के स्टार्टअप एटमास और एयरवेदर द्वारा तैयार सेंसर की कीमत एक से 1.25 लाख रुपये है। 90 प्रतिशत सेंसर यहां बना है और इसका सेमीकंडक्टर यहां बनाने का प्रयास किया जा रहा है और इसके बनने के बाद यह पूरी तरह स्वदेशी होगा।

    आत्मन सेंटर से शुरू किया गया काम

    उनके मुताबिक आइआइटी में आत्मन सेंटर आफ एक्सीलेंस सेंटर यानी एडवांस टेक्नोलाजीज फार मानीटरिंग एयर क्वालिटी इंडीकेशन की स्थापना की गई।

    इसके बाद अमृत यानी एंबिएंट एयर क्वालिटी मानीटरिंग ओवर रूरल एरियाज यूजिंग इंडीजीनस टेक्नोलाजी परियोजना शुरू की गई है। यह योजना वर्ष-2025 तक चलनी है। दोनों प्रदेशों में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, ग्रामीण विकास विभाग सहयोगी है।

    प्रदूषण के साथ बताता तापमान-आर्द्रता भी

    इस सेंसर की खासियत यह है कि ये पीएम-1, 2.5, 10 के साथ तापमान और आर्द्रता समेत छह तरह के आंकड़े देता है। भविष्य में इसकी क्षमता बढ़ाकर गैस मापन की भी व्यवस्था की जाएगी ताकि पता चले कि ओजोन, कार्बन, नाइट्रोजन आदि गैसों का स्तर क्या है।

    दिल्ली की तरह मानीटरिंग

    प्रो. त्रिपाठी बताते हैं कि प्रदूषणकारी तत्वों की वजह से मनुष्य, जीव-जंतु और पेड़-पौधों के साथ भवन, झील, नदियां, मौसम चक्र और दृश्यता सभी कुछ प्रभावित होते हैं। दिल्ली में प्रदूषण कारकों को रोकने के लिए सिर्फ दिल्ली ही नहीं बल्कि हरियाणा और पंजाब तक काम किया गया।

    एक एयरशेड तैयार किया जाता है जिसमें सिर्फ एक नगर या प्रदेश नहीं बल्कि दूसरे प्रदेशों को भी लिया जाता है। वहां आकलन के बाद प्रदूषण की प्रकृति के आधार पर उसकी रोकथाम के उपाय किए जाते हैं। इस परियोजना में चार निजी संस्थाएं भी मददगार रहीं। यह प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद अन्य प्रदेशों में भी इसे संचालित करने का प्रयास रहेगा।

    फिलहाल चल रहा आंकड़ों का मिलान

    आइआइटी में फिलहाल रिफ्रेंस मानीटर ईबैम यानी बीटा एटेचुएशन मानीटर से आंकड़े मिलाए जा रहे हैं और सटीक आने के बाद ही इन सेंसर को ब्लाकों तक भेजा जा रहा है। इनकी आनलाइन मानीटरिंग आत्मन सेंटर पर होगी और उसी आधार पर रिपोर्ट तैयार कर केंद्र सरकार को भेजी जाएगी और राहत व सुधार के उपाय होंगे।