सीता बन महिलाएं कर रहीं अजन्मी बेटियों का तर्पण, गंगा नदी के किनारे किया पिंडदान
कानपुर में गयाजी की तरह सैकड़ों महिलाएं अजन्मी बेटियों का पिंडदान करती हैं जो 2011 से जारी है। यह अभियान समाज को बेटियों का महत्व समझाता है और महिलाओं को पिंडदान के लिए प्रेरित करता है। युग दधीचि देहदान अभियान अजन्मी बेटियों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण कर रहा है। 14 सितंबर को सरसैया घाट पर महातर्पण पूजन होगा।

जागरण संवाददाता, कानपुर । महा तर्पण धाम गयाजी की तरह ही शहर की सैकड़ों सीता हर वर्ष अजन्मी बेटियों का पिंडदान कर तर्पण पूजन करती हैं। वर्ष 2011 में शुरू हुआ यह अभियान आज भी जारी है। जो समाज को बेटियों का महत्व समझाने और महिलाओं के हाथों पिंडदान करने के लिए जागरूक करती हैं। पितृपक्ष के दौरान पितरों के लिए पिंडदान की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। शहर में इसके महत्व को दर्शाती अंकुश शुक्ल की रिपोर्ट...
गर्भ में जिनको मार दिया है, उनके लिए लड़ेगा कौन, गूंज रही अब तक कानों में गूंगी चीख सुनेगा कौन, हृदय मिला है मानव का तो जागो फिर यह उत्तर दो, गर्भपात में मृत बच्चों का तर्पण कार्य करेगा कौन। इस यक्ष प्रश्न का उत्तर युग दधीचि देहदान अभियान की पहल से समाज को दिया जा रहा है।
बेटियों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान
जो ऐसे बेटियों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए पिंडदान, जलदान और तर्पण कर रही हैं। जिन्होंने दुनिया में कदम भी नहीं रखा और उनको गर्भ में ही मार दिया गया। वहीं, कई ऐसे परिवार हैं, जिनकी बेटियों वर्षों से अपने पुरखों का तर्पण करना चाहती थी, लेकिन समाज में व्याप्त कुरीतियों के कारण वे ऐसा नहीं कर पा रही थीं। अभियान प्रमुख मनोज सेंगर और माधवी सेंगर के प्रयास से ही अजन्मी बेटियों का महिलाओं द्वारा महा तर्पण कराया जा रहा है।
वर्ष 2011 से अनवरत संचालित इस परंपरा में महिलाएं सीता मां बनकर पितृ पक्ष में गंगा नदी के किनारे परंपरागत रूप से महातर्पण करती हैं। मनोज सेंगर बताते हैं कि गायत्री परिवार की ओर से वर्ष 2010 में जाजमऊ में विराट गायत्री महायज्ञ कराया गया।
इसमें एक हजार लोगों ने सामूहिक कन्या भ्रूण हत्या रोकने की शपथ ली। उसी समय अजन्मी बेटियों की शांति और मुक्ति का प्रश्न मन में उठा। उसी दिन महिलाओं से अजन्मी बेटियों का तर्पण कराने का प्रण लिया। इसमें किन्नर समाज के साथ हर वर्ग की महिलाएं हिस्सा लेकर बेटी बचाने का संदेश देती हैं। जिसे परंपरागत रूप से मंत्रोच्चारण के बीच कराया जाता है। इस बार 14 सितंबर को सरसैया घाट पर महातर्पण पूजन किया जाएगा।
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