IIT का नवाचार, दिव्यांगों के लिए इशारे से चलने वाली व्हीलचेयर और 23 भाषाओं में अध्ययन सामग्री
कानपुर में आइआइटी द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में वैज्ञानिकों ने दिव्यांगों के लिए नई तकनीकों पर अनुसंधान प्रस्तुत किया। इनमें इशारे से चलने वाली व्हीलचेयर 23 भाषाओं में अध्ययन सामग्री और रोबोटिक एक्सरसाइज शामिल हैं। सीएसआइआर-सीएसआइओ और एलिम्को ने नेत्रहीनों के लिए उपकरण और वेन विजुअलाइजर जैसे उत्पाद बनाने के लिए समझौता किया है। आईआईटी साइबर सुरक्षा को मजबूत करने पर भी काम कर रहा है।
जागरण संवाददाता, कानपुर। आने वाले समय में दिव्यांग के इशारे पर व्हीलचेयर चलने लगे, दिव्यांगों को 23 भारतीय भाषाओं में अध्ययन सामग्री पढ़ने को मिले। रीढ़ की हड्डी के रोग से ग्रस्त मरीजों को रोबोट के जरिये एक्सरसाइज करने की सुविधा मिले तो आप हैरत में मत पड़िएगा क्योंकि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिक ऐसी तकनीकों पर अनुसंधान में जुटे हैं।
आइआइटी की ओर से मंधना-बिठूर रोड स्थित ब्लू वर्ल्ड कैसल में कराए जा रहे ट्रिप्स-2025 (नीति और विज्ञान में अनुवादात्मक अनुसंधान और नवाचार) सम्मेलन में शनिवार को देश भर से आए वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने भविष्य की चुनौतियों से निपटने वाली तकनीक को विकसित कर समाधान देने की दिशा में व्याख्यान दिया।
वैज्ञानिक और औद्योगिक उपकरणों के अनुसंधान, डिजाइन और विकास के लिए समर्पित चंडीगढ़ स्थित सीएसआइआर-सीएसआइओ (वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संगठन) के निदेशक प्रो. शांतनु भट्टाचार्य ने बताया कि कानपुर स्थित एलिम्को के साथ दिव्यांगों के लिए आठ प्रोडक्ट बनाने का एमओयू किया है। इसमें नेत्र दिव्यांग बच्चों के लिए लो विजन एड, दिव्य नैन स्कैनर, जेस्चर माउंटेड व्हीलचेयर, वेन विजुलाइजर सहित अन्य उत्पाद शामिल हैं।
आयुर्वेद के क्षेत्र में नाड़ी शोधन यंत्र, रक्षा क्षेत्र में लाइट काम्बैट एयरक्राफ्ट मार्क दो उड़ाने वाले पायलटों की सहूलियत के लिए हेडअप डिस्प्ले जैसे उपकरणों के लिए अनुसंधान एवं विकास पर काम चल रहा है। प्रो. शांतनु ने बताया कि देश भर में पांच लाख बच्चे ऐसे हैं जो नेत्र दिव्यांग हैं। लो विजन की समस्या से पीड़ित बच्चों में अंधता की समस्या पर अंकुश लगाने के लिए उच्च शक्ति का लेंस बनाया है। अब ग्लास की बजाय पालीमर मैटेरियल से लेंस तैयार किए हैं, जो कम कीमत में उपलब्ध होंगे।
प्रो. शांतनु ने बताया कि शारीरिक रूप से असमर्थ दिव्यांगों के लिए एआइ और मशीन लर्निंग से लैस जेस्चर माउंटेड व्हील चेयर तकनीक विकसित की है। इसमें दिव्यांग अंगुली से टच करते ही व्हील चेयर चला सकेंगे। दिव्यांगों को 23 भारतीय भाषाओं में अध्ययन सामग्री पढ़ने के लिए दिव्य नैन स्कैनर डिवाइस बनाई है। इसमें पेज को स्कैन करके आसानी जिस भाषा में चाहेंगे, उसे पढ़ सकेंगे। वेन विजुलाइजर डिवाइस से मरीज को इंजेक्शन लगाने के लिए एक बार में ही नस का आसानी से पता लगाया जा सकेगा। उन्होंने बताया कि रीढ़ की हड्डी की बीमारी के वजह से मरीज चलने फिरने में असमर्थ हो जाता है।
ऐसे लोगों के लिए एआइ और मशीन लर्निंग से लैस गेट : रिहैबिलिटेशन सिस्टम उपकरण बनाया गया है। ये रोबोटिक सिस्टम मरीज को कमर से पकड़ कर खड़ा करके उसे जरूरी एक्सरसाइज करा सकेंगे। प्रो. शांतनु ने बताया कि डिफेंस सेक्टर में लाइट काम्बैट एयरक्राफ्ट यानी एलसीए मार्क 2 के पायलटों के लिए हेडअप डिस्पले बनाने का काम चल रहा है। रक्षा क्षेत्र की इंडस्ट्री इसका उत्पादन करेगी। अभी तक इस तकनीक के लिए इजरायल के लिए निर्भर रहना पड़ता था।
आइआइटी के निदेशक प्रो. मणीन्द्र अग्रवाल ने कहा कि साइबर हमलों के तरीके बदल रहे हैं। ऐसे में आइआइटी कानपुर साइबर सुरक्षा को और मजबूत करने की दिशा में काम रहा है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के जनरल सेक्रेटरी और सीईओ, जेएनसीएएसआर के पूर्व अध्यक्ष प्रो. जीयू कुलकर्णी, आइआइटी मद्रास के प्रोफेसर टी प्रदीप, आइआइटी रुड़की के प्रोफेसर कमल के पंत, आइआइटी गुवाहाटी के पूर्व निदेशक प्रो. गौतम बिस्वास, आइआइटी इंदौर के निदेशक प्रो. सुहास जोशी, गति शक्ति विश्वविद्यालय वड़ोदरा के वाइस चांसलर प्रो. मनोज चौधरी ने भी व्याख्यान दिया। यहां देश के विभिन्न संस्थानों के 120 विशेषज्ञ शामिल हुए हैं।
70-70 किलो की चार भेड़ों पर होगा हृदयंत्र का ट्रायल
आइआइटी के गंगवाल स्कूल आफ मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलाजी के प्रभारी प्रोफेसर डा. संदीप वर्मा ने बताया कि हृदयंत्र के अनुसंधान पर तेजी से काम चल रहा है। हाल ही में हृदयंत्र का ट्रायल भेड़ों में करने का फैसला लिया गया है। तीन से चार प्रोटोटाइप बन रहे हैं जिनका ट्रायल 70-70 किग्रा वजन की चार भेड़ों पर होगा। उन्होंने बताया कि गंगवाल स्कूल आफ मेडिकल साइंसेज ने पोस्ट ग्रेजुएट शैक्षणिक डिग्री और बायोमेडिकल अनुसंधान कार्यों को पूरा करने पर फोकस बढ़ाया गया है। यहां 500 बेड का सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल बनाया जाएगा। जुलाई 2027 तक गंगवाल स्कूल पूरी तरह से संचालित हो जाएगा।
प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट को प्राथमिकता, पर्यावरण सुरक्षित रहेगा
केंद्रीय पेट्रोरसायन इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (सीआइपीईटी) के महानिदेशक प्रो. शिशिर सिन्हा ने बताया कि प्लास्टिक पर्यावरण के लिए नुकसानदेह है। इसके बावजूद, रोजमर्रा के जीवन में प्लास्टिक का हर जगह प्रयोग हो रहा है। इसे अगर प्रतिबंधित कर दिया गया तो इसका विकल्प क्या होगा, इसका समाधान खोजना जरूरी है। ऐसे में जरूरत है प्लास्टिक को रीसाइकिल करने की। यदि रोजाना उपयोग होने वाली प्लास्टिक को रीसाइकिल करना शुरू कर दिया जाए तो पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचेगा। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट पर जोर दिया है। जब हर नागरिक जागरूक बनेगा और प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट सीख जाएगा तभी पर्यावरण सुरक्षित रहेगा। केमिकल आयात पर निर्भरता कम करने के लिए केमिकल इंडस्ट्री के लिए लगातार अनुसंधान एवं विकास व नवाचार के लिए काम चल रहा है।
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