33 साल कचहरी के चक्कर लगा पति-पत्नी ने किया समझौता, अब कोर्ट ने खारिज किया मुकदमा
कानपुर में एक अनोखे मामले में 33 साल तक पति-पत्नी के बीच मुकदमा चलने के बाद अंततः समझौता हो गया। 1992 में शुरू हुए इस मुकदमे में पत्नी ने भरण-पोषण की मांग की थी। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद दोनों पक्ष 3.25 लाख रुपये के एकमुश्त भुगतान पर सहमत हुए। परिणामस्वरूप अदालत ने मुकदमे को खारिज कर दिया।

जागरण संवाददाता, कानपुर। 33 साल तक पति और पत्नी के बीच मुकदमा चलता रहा। मुकदमा दाखिल करने के समय पत्नी की उम्र महज 17 साल और पति की उम्र 20 साल रही। अब पति 53 साल का हो गया है और पत्नी 50 साल की। कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाते हुए लंबी उम्र बीत गई। आखिर में दोनों ने समझौते की राह चुनी।
दोनों ने भरण-पोषण की एकमुश्त राशि 3.25 लाख रुपये देने पर समझौता कर लिया। इसके बाद अदालत ने मुकदमा खारिज कर दिया।
फजलगंज निवासी एक युवती ने ग्राम सिंहपुर चकरपुर सचेंडी निवासी अपने पति के खिलाफ भरण-पोषण दिलाने का मुकदमा वर्ष 1992 में दाखिल किया था। इसमें अदालत ने पांच मार्च 1994 फैसला सुनाते हुए पत्नी को 250 रुपये और उसकी बेटी को 200 रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। बाद में उसने गुजारा भत्ता बढ़ाने का मुकदमा कर दिया। एक बार फिर पत्नी ने गुजारा भत्ता बढ़ाने के लिए मुकदमा दाखिल कर दिया।
इसमें कहा कि पति के पास 20 बीघा कृषि भूमि है। खुद का ट्रैक्टर है। ट्रैक्टर आढ़त की दुकान में अटैच कर दिया है। गांव में तीन मकान है। इस तरह पति की हर माह 50 हजार रुपये आय है। उसका गुजारा भत्ता बढ़वाया जाए। अदालत ने हर माह तीन हजार रुपये पत्नी को देने का आदेश दिया। बेटी का विवाह हो चुका था।
अधिवक्ता अनूप शुक्ला ने बताया कि अब फिर पत्नी की तरफ से गुजारा भत्ता बढ़ाने का मुकदमा दाखिल किया गया था। इस पर समझौते का प्रयास किया गया। 33 साल से कचहरी के चक्कर लगाने वाले पति और पत्नी ने आखिर समझौते का राह चुनने का फैसला लिया। दोनों के बीच तीन लाख 25 हजार भरणपोषण भत्ता देने पर समझौता हो गया।
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