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    Kanpur News: कानपुर में रात सन्नाटे में बाहर निकलना मुश्किल, कुत्तों के आतंक से लोगों में डर

    By rahul shukla Edited By: Anurag Shukla1
    Updated: Wed, 13 Aug 2025 06:22 PM (IST)

    Kanpur News कुत्तों की समस्या से निपटना निगम के सामने चुनौतियां हैं। अंधेरे में लोगों का बाहर निकलना मुश्किल होता जा रहा है। हर गली मुहल्ले में कुत्तों का आतंक है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद कुत्ते की समस्या दूर करना निगम के लिए किसी चुनौती से कम नहीं। हालांकि लंदन की तर्ज पर समाधान हो सकता है।

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    कानपुर में अभी तक 75 प्रतिशत ही कुत्तों का बंध्याकरण हुआ है।

    राहुल शुक्ल, जागरण, कानपुर। कोई ऐसी गली नहीं है जहां आवारा कुत्तों का आतंक न हो। दिन प्रतिदिन इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। इससे यह समस्या और भी विकराल होती जा रही है। इसकी वजह बंध्याकरण की धीमी रफ्तार है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस समस्या का निदान होने की आस जगी है। लेकिन, नगर निगम के सामने कई चुनौतियां भी हैं, इसमें आश्रय स्थल, भोजन, साफ-सफाई की व्यवस्था प्रमुख हैं।

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    कानपुर: नगर निगम के आंकड़ों की मानें तो वर्तमान में 1.3 लाख आवारा कुत्ते सड़कों पर विकराल समस्या बने हुए है। इनके आंतक के चलते लोग देर रात और दोपहर के समय सन्नाटे में अकेले घर से बाहर निकलने में कतराते हैं। कई इलाकों में तो लोग बच्चों और बुजुर्गों इनके डर से घर से अकेले बाहर नहीं भेजते हैं। इन समस्याओं के बावजूद नगर निगम अभी तक सिर्फ 25 फीसदी कुत्तों का ही बंध्याकरण कर पाया है। वहीं 75 फीसदी कुत्ते लगातार अपनी संख्या बढ़ा रहे हैं। वहीं, अब इनको आश्रय देना नगर निगम के लिए और भी चुनौती पूर्ण साबित होगा।

    इस रफ्तार से तो बंध्याकरण में ही लग जाएंगे 10 साल

    कुत्तों पर अंकुश लगाने के लिए नगर निगम ने फूलबाग और जाना गांव जाजमऊ में एनीमल कंट्रोल बर्थ सेंटर का निर्माण किया है। रोज पांच वाहन कुत्तों को पकड़ने के लिए लगाए है। इनके जरिये लाए जाने वाले 60 कुत्तों का रोजना बंध्याकरण किया जाता है। यह प्रक्रिया बीते पांच साल से चल रही है। ऐसे में नगर निगम की ओर से दावा किया जा रहा है कि अब तक 35 हजार कुत्तों का बंध्याकरण किया जा चुका है। इस हिसाब से नगर निगम को करीब कुल 1.3 लाख कुत्तों का बंध्याकरण करने में अभी 10 साल और लग जाएगे और इस दौरान कुत्तों की संख्या भी लगातार बढ़ती रहेगी।

    70 हजार हेक्टेयर अलग-अलग जगह चिह्नित करनी होगी

    नगर निगम के मुताबिकएक कुत्ते को रखने के लिए चार वर्ग मीटर जगह की जरूरत होती है। ऐसे में सभी कुत्तों का आश्रय स्थल बनाने के लिए करीब 70 हेक्टेयर जमीन की जरूरत है। ये जमीन भी एक स्थान पर नहीं बल्कि अलग-अलग हिस्सों में चिह्नित करनी होगी, जो सबसे बड़ी चुनौती साबित होगा। पशु चिकित्सकों की मानें तो सभी आवारा कुत्तों को एक साथ नहीं रखा जा सकता। वे खुद ही अपना झुं तय करते हैं। एक साथ रखने पर वे आपस में ही लड़ जाएंगे। इसमें कई कुत्तों की मौत हो सकती है और कई गंभीर रूप से घायल भी हो सकते हैं।

    भोजन का प्रबंध करने में रोज खर्च होंगे 52 लाख

    आवार कुत्तों आश्रय स्थल में रखने के बाद उनके भोजन, साफ-सफाई और रखरखाव का प्रबंध भी करना होगा। नगर निगम के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही साबित होगी। अगर आवारा गाय के चारे और रखरखाव के हिसाब से प्रतिदिन 40 रुपये का ही खर्च मान लिया जाए तो सभी कुत्तों को भोजन कराने में नगर निगम को रोजना 52 लाख रुपये खर्च आएगा। वहीं, हर महीने 15.6 करोड़ रुपये इसके लिए खर्च करने होंगे।

    लंदन की तर्ज पर हो सकता है समाधान

    इस समस्या से निपटने के लिए नगर निगम को लंदन से प्रेरणा लेनी होगी। वहां भी एक समय लोग आवारा कुत्तों के आतंक से परेशान थे। इनसे निजात पाने के लिए स्थानीय निकाय ने ग्रीन बेल्ट और मुहल्लों में खाली जगहों पर छोटे-छोटे आश्रय स्थलों का निर्माण कराया। इससे जगह की कमी नहीं रही। सफाई कर्मचारियों के जरिये इन आश्रय स्थलों को आसानी से सफाई की जा रही है। वहीं, कुत्तों को भोजन देने के लिए लिए सामाजिक संस्थाओं और लोगों का सहयोग लिया जा रहा है। इन सबसे पहले नगर निगम को बंध्याकरण की रफ्तार तेज करनी होगी। इसके लिए कम से कम पांच और एनीमल बर्थ कंट्रोल सेंटर खोलने की जरूरत है।

    गोवा से भी लें सीख

    गोवा देश का एकलौता रैबीज मुक्त राज्य है। गोवा में इस प्रोजेक्ट की अगुवाई मिशन रैबीज नाम के एनजीओ ने की। एनजीओ के अभियान के तहत कुत्तों को टीका लगाने के लिए दूरदराज तक टीमें बनाई गई। ये दल व्यवस्थित तरीके से कस्बों, शहरों और गांवों में जाकर कुत्तों को टीका लगाते हैं। आवारा कुत्तों को बड़े बड़े जालों की मदद से पकड़ा जाता है। पहचान के लिए उनके शरीर पर गैर-टॉक्सिक हरे पेंट से निशान बना दिया जाता है। और टीका लगाकर उन्हें छोड़ दिया जाता है। ये पूरा ब्योरा एक स्मार्टफोन एप में दर्ज किया जाता है। इस एप में कुत्तों से जुड़ा तमाम डाटा रहता है कि कुत्ते किन इलाकों में दिखे, टीमों ने किन किन इलाकों का दौरा किया और कितने कुत्तों को टीका लगा।

    कुत्तों का बंध्याकरण कराया जा रहा है। दो सेंटर खोले गए है। वर्तमान समय में रोज 60 कुत्तों का बंध्याकरण हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शासन से दिशा निर्देश मिलने पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।

    सुधीर कुमार, नगर आयुक्त