कानपुर की बेटी भारतीय महिला हैंडबाल टीम में कप्तान, लेकिन उन्हीं के शहर को मैदान की दरकार
कानपुर की तीन बेटियां भारतीय हैंडबाल टीम का हिस्सा हैं । लेकिन कानपुर में इस खेल के लिए इनडोर मैदान सपना बना हुआ है। कानपुर की ज्योति ने भारतीय महिला हैंडबाल टीम में कप्तानी हासिल की है ।

कानपुर, जागरण संवाददाता। जकार्ता में हुए एशियन गेम्स में शहर से पहली बार खेलने वाली हैंडबाल खिलाड़ी ज्योति शुक्ला की उपलब्धि ने देश-दुनिया में शहर का नाम रोशन किया है। जिस खेल के बदौलत ज्योति ने भारतीय महिला हैंडबाल टीम में कप्तानी हासिल की। उस खेल के लिए शहर में एक भी मानक का मैदान नहीं है। मूलभूत सुविधाओं के बीच अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा हैंडबाल खिलाड़ियों की जिद के चलते फलक तक पहुंच रहा है। ज्योति शुक्ला के साथ आकांक्षा वर्मा और सपना कश्यप राष्ट्रीय टीम का अहम हिस्सा बनीं हुईं हैं पेश है अंकुश शुक्ल की रिपोर्ट...
हैंडबाल खिलाड़ी शहर से प्रतिवर्ष कई ऐसे खिलाड़ी जूनियर और सीनियर वर्ग में निकलते हैं जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक पर चमक बिखरते हैं। उन्हें मानक का मैदान और मूलभूत संसाधन की कमी के चलते संघर्ष करना पड़ रहा है। दूसरे खेलों के मैदान और आपसी सहयोग से जुटाए संसाधन ही इन खिलाड़ियों के सफर के साथी बनते हैं। कई बार जिम्मेदारों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया गया। परंतु हर बार आश्वासन ही मिला। किसी ने हैंडबाल की दशा को सुधारने के लिए हाथ नहीं बढ़ाए। इनडोर का सपना छोड़िए खिलाड़ियों को खुले मैदान के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। हालांकि ग्रीनपार्क का हैंडबाल मैदान खिलाड़ियों की आखिरी उम्मीद बना हुआ है। फिलहाल अव्यवस्था के फेर में खिलाड़ियों को वहां भी मूलभूत सुविधाओं से जूझना पड़ता है। मजबूरन खिलाड़ियों को लखनऊ, फैजाबाद, वाराणसी, मेरठ और गोरखपुर जैसे शहराें में पलायन करना पड़ता है जहां पर हैंडबाल के लिए कई बेहतर मैदान बने है।
वर्जन : शहर में सीनियर व जूनियर की राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं कई बार हो चुकी है। दर्जनों राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के शहर में एक भी मानक का मैदान नहीं होने से प्रतिभावान खिलाड़ियों को भटकना पड़ता है। खेल विभाग और प्रशासन को इस ओर सोचना चाहिए। - रजत आदित्य दीक्षित, संयुक्त सचिव, भारतीय हैंडबाल संघ।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।