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    माता सीता के अस्तित्व का साक्षी है कानपुर का बिठूर धाम, जानिए क्या कहती है पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट

    By Akash DwivediEdited By:
    Updated: Fri, 08 Jan 2021 05:32 PM (IST)

    शहर से सटा बिठूर धाम लव-कुश की जन्म स्थली है। रामायण में उल्लेख है कि भगवान राम ने राज्याभिषेक के बाद प्रभु ने देवी सीता को अपने से अलग कर दिया था और ...और पढ़ें

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    भविष्य में पर्यटक स्थल के रूप में पहचान बड़े स्तर पर मिलने की संभावना बढ़ेगी

    कानपुर, जेएनएन। ऐतिहासिक प्रभु श्रीराम मंदिर के शिलान्यास का गवाह पांच अगस्त को भले ही अयोध्या नगरी बनी। परंतु उसके पुराणिक महत्व का साक्षी कानपुर का बिठूर धाम पुरातन काल से ही रहा है। यहां सीता रसोई, लवकुश आश्रम, सीता कुंड, स्वर्ण सीढ़ी सहित कई ऐसी प्राचीन स्मृतियां आज भी मौजूद हैं, जो उस प्रभु श्रीराम के परित्याग के बाद माता सीता के अस्तित्व को दर्शाती हैं। अयोध्या नगरी के उत्थान के बाद बिठूर धाम का महत्व अब और भी बढ़ जाएंगा। भविष्य में पर्यटक स्थल के रूप में पहचान बड़े स्तर पर मिलने की संभावना बढ़ेगी।

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    शहर से सटा बिठूर धाम लव-कुश की जन्म स्थली है। रामायण में उल्लेख है कि भगवान राम ने राज्याभिषेक के बाद प्रभु ने देवी सीता को अपने से अलग कर दिया था और देवी सीता को वन में रहना पड़ा था। कहते हैं जिस समय भगवान राम ने देवी सीता को वन में भेजा उस दौरान वह गर्भवती थीं। उन्होंने वन में ही देवी सीता ने अपने दोनों पुत्रों लव और कुश को जन्म दिया था यहां माता सीता का एक मंदिर भी है। मंदिर के पुजारी अवधेश तिवारी ने बताया कि प्रभु श्रीराम और माता सीता के पुत्र लव-कुश का बचपन यही व्यतीत हुआ। लवकुश आश्रम में उन्होंने शिक्षा ग्रहण की। बिठूर धाम वो पावन धाम हैं जहां वीर हनुमान को लव-कुश ने बंधक बनाया था। उनका मंदिर आज भी मौजूद है।

    सीता रसोई भी मौजूद

    गंगा नदी के किनारे बसे लवकुश आश्रम के एक ओर सीता रसोई भी बनी हुई है। जहां माता सीता लव-कुश संग ब्रह्माण देवताओं को भोजन बनाकर खिलाती थीं। आज भी उस स्थान पर उस समय उपयोग किए गए बर्तन मौजूद हैं। पुराणों के मुताबिक इसी स्थान पर लव-कुश बाण व धनु विद्या सीखीं थी।

    जब पकड़ा था अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा

    भगवान राम ने जब अश्वमेघ यज्ञ कराया था। उस अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को बिठूर में वीर लव-कुश ने बांध लिया था। जिसको छुड़ाने के लिए रामभक्त हनुमान आएं थे जो युद्ध में पराजित होकर बंधक बना लिए गए थे। रामायण में उल्लेख है कि हनुमान के बाद लक्ष्मण से भी लव-कुश ने युद्ध किया था।

    पाताल में समाई थीं माता सीता

    इसी पावन स्थान पर माता सीता पाताल में समाई थीं। हनुमान और लक्ष्मण की कोई खबर न मिलने पर भगवान राम स्वयं युद्ध के लिए यहां पहुंचे थे। युद्ध के बीच में ही उन्हेंं पता चला था कि जिन लव-कुश से वे युद्ध कर रहे हैं। वे उनके ही पुत्र हैं। इसके बाद माता सीता से राम की मुलाकात की। जब राम ने माता सीता को स्पर्श करने की कोशिश की तो वे धरती में समा गईं। आज भी सीता कुंड के नाम से उस स्थान पर श्रद्धालु पूजन करते हैं।

    स्वर्ग सीढ़ी

    वाल्मीकि आश्रम में बनी स्वर्ग सीढ़ी को स्थानीय लोग सरग नशेनी भी कहते हैं। इस सीढ़ी से पूरे बिठूर का मनोहारी नजारा भी देखा जाता है। स्वर्ण सीढ़ी में 65 सीढ़यिां बनी हुई हैं। पहले यहां पर दीपक जलाएं जाते थे इसलिए इसे दीप मालिका भी कहा जाता है।

    इनका ये है कहना

    स्वदेश दर्शन योजना के तहत वाल्मीकि आश्रम में कई कार्य कराएं जा चुके हैं। बेंच, पाथवे, लाइटिंग, टर्फ ग्रास आदि कार्य हुए हैं। रामायण सर्किट में आने से बिठूर धाम में कई कार्य होने की संभावना बनेगी। भविष्य में रामलला स्मृतियों से जुड़ा यह पावन धाम पूरे विश्व में आकर्षण का केंद्र बनेगा।

                                                                                                  अर्चिता ओझा, जिला पर्यटक अधिकारी।