विजयी विश्व तिरंगा प्यारा... लिखकर श्याम लाल गुप्त ने भरा था आजादी के मतवालों में जोश, जानिए- संक्षिप्त परिचय
कानपुर के नर्वल के रहने वाले श्याम लाल गुप्त पार्षद जी ने झंडागीत विजयी विश्व तिरंगा प्यारा लिखकर से आजादी के मतवालों में जोश भरा था आज उनकी 125वीं जयंती मनाई जा रही है। महात्मा गांधी भी उनसे मिलने सेवा आश्रम आए थे।
कानपुर, शैलेन्द्र त्रिपाठी। कानपुर का नर्वल कस्बा झंडागीत के रचनाकार श्याम लाल गुप्त 'पार्षद की ऐतिहासिक स्मृतियों की सुगंध से आज भी महक रहा है। पार्षद जी द्वारा रचित 'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा... झंडागीत भारत माता की गौरव गाथा को अविस्मरणीय बना रहा है। पद्मश्री से सम्मानित मां भारती के इस अमर सपूत को श्रद्धांजलि देने राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द खुद नर्वल आए थे। उन्होंने सेवा आश्रम के बाहर लगी पार्षद जी की प्रतिमा का अनावरण किया था।
बचपन से ही देशभक्ति की भावनाएं मारने लगी थीं उफान
नर्वल में 9 सितंबर 1896 को एक वैश्य परिवार झंडागीत के रचनाकार श्याम लाल गुप्त का जन्म हुआ था। विश्वेश्वर प्रसाद व कौशल्या देवी के पांच बेटों में श्याम लाल सबसे छोटे थे। बचपन से ही उनके मन में देशभक्ति की भावनाएं उफान पर थीं। अंग्रेजी हुकूमत की पराधीनता से वह व्यथित रहते थे। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। मिडिल की परीक्षा पास कर उन्होंने विशारद की उपाधि प्राप्त की। नगर पालिका व जिला परिषद में अध्यापक की नौकरी की, लेकिन तीन साल की बाध्यता की अनिवार्यता पर उन्होंने नौकरी छोड़ दी। 1921 में श्याम लाल गुप्त की मुलाकात गणेश शंकर विद्यार्थी से हुई।
विद्यार्थी जी के संपर्क में आने के बाद वह आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। कानपुर के साथ-साथ श्याम लाल गुप्त ने फतेहपुर को भी अपना कर्म क्षेत्र बनाया। 21 अगस्त 1921 को फतेहपुर में असहयोग आंदोलन शुरू करने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। श्याम लाल गुप्त को आठ बार जेल भेजकर प्रताडि़त भी किया गया, लेकिन वह विचलित नहीं हुए। भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्ति दिलाने के लिए जी-जान से जुटे रहे।
नंगे पैर रहने का लिया था व्रत
1921 में श्याम लाल गुप्त ने संकल्प लिया था कि जब तक देश आजाद नहीं हो जाएगा, तब तक वह जूते चप्पल नहीं पहनेंगे। धूप व बारिश में छाता भी नहीं लगाएंगेे। आजादी मिलने के बाद भी वह नंगे पांव ही रहे। 10 अगस्त 1977 को उन्होंने अंतिम सांस ली।
देश को झंडागीत समर्पित कर पद्मश्री से हुए सम्मानित
1924 में महात्मा गांधी की प्रेरणा से श्याम लाल गुप्त ने 'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा' गीत की रचना की। 23 दिसंबर 1925 को गांधी जी की मौजूदगी में ही इसे झंडागीत की मान्यता दी गई। कानपुर में कांग्रेस के सम्मेलन में पहली बार इसका गान हुआ। 15 अगस्त 1952 को उन्होंने लालकिले में झंडागीत का गान कर इसे देश को समर्पित कर दिया। 26 जनवरी 1973 को उन्हें पद्मश्री दिया गया।
बा ने दी थी पार्षद की उपाधि
नर्वल स्थित सेवा आश्रम में महात्मा गांधी दो बार गणेश शंकर विद्यार्थी के साथ आए थे। दूसरी बार उनके साथ बा (कस्तूरबा गांधी) भी थीं। विद्यार्थी जी ने श्याम लाल गुप्त को महात्मा गांधी की सेवा में नियुक्त किया था। बापू के प्रधान सेवक होने के चलते बा ने उन्हे पार्षद ( सेवक) की उपाधि दी थी।