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    यात्रीगण कृपया ध्यान दें.., यहां पढ़ें टिकट में लिखा CNB का रोचक इतिहास और इसके पीछे छिपी 162 साल पुरानी कहानी

    कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन से अक्सर सफर करते समय टिकट पर स्टेशन वाले कामल में सीएनबी लिखा जरूर देखा होगा और निश्चित ही इसके बारे में जिज्ञास बनी रही होगी। इसके पीछे एक रोचक इतिहास है जो इस खास आलेख में है।

    By Abhishek AgnihotriEdited By: Updated: Sat, 09 Jul 2022 12:55 PM (IST)
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    कानपोर से कानपुर तक का 162 साल का रेल सफर।

    सीएनबी... पहले पुराना कानपुर रेलवे स्टेशन और फिर कानपुर सेंट्रल स्टेशन से ट्रेन पर सवार होकर यात्रा करने वालों के लिए 162 साल से यह जाना-पहचाना तीन अक्षरों का वह शब्द है, जो टिकट लेने के बाद से सफर पूरा करने तक कई बार दिल-दिमाग में कौंधता है। फिर यह कानपुर सेंट्रल से संबंधित ही कुछ संक्षेप में होगा, यह मानते हुए सफर पूरा भी हो जाता है। नतीजा, ये जानने की जिज्ञासा अधूरी ही रह जाती है। आपने भी कानपुर सेंट्रल से कहीं न कहीं के लिए ट्रेन से सफर जरूर किया होगा या किसी दूसरे शहर से यहां आए होंगे। टिकट पर यह सीएनबी लिखा देखा और पढ़ा होगा। कई बार ट्रेन यात्रा में लंबा समय गुजरा होगा, लेकिन इस शब्द का सच शायद कौतूहल होगा। संभव है, चंद लोग इसका मतलब जान भी गए हों पर दूसरे को नहीं बता पाए। आइए आज हम आपको बताते हैं कि सीएनबी का आशय क्या है। इसके लिए पढ़िये शिवा अवस्थी की ये खास रिपोर्ट...

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    दरअसल, रेल टिकट में कहां से कहां तक कालम में कानपुर सेंट्रल (सीएनबी) और जहां जा रहे हैं, उस जगह के रेलवे स्टेशन के नाम के बाद उसका संक्षिप्त नाम मसलन लखनऊ जा रहे हैं तो लखनऊ (एलकेओ) लिखा रहता है। रेलवे की भाषा अंग्रेजी शासनकाल की है। इसके पीछे रोचक कहानी है। जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी जड़ें तब के कानपोर (अब कानपुर) में जमाईं तो यहां से रेल के सफर की शुरुआत भी की थी। वर्ष 1855 में देश की चौथी और कानपुर यानी उत्तर (नार्थ) क्षेत्र की पहली रेल लाइन कानपोर नार्थ बैरक्स (सीएनबी) से इलाहाबाद (एएलडी) के बीच बिछाने की शुरुआत की थी। अब जान लीजिए वही सीएनबी अभी तक कानपुर से रेल का सफर करने वालों की टिकट पर अंकित हो रहा है।

    कहां है सीएनबी :  कानपोर नार्थ बैरक्स को अंग्रेजी में (Cawnpore North Barracks) लिखते हैं, जिसके आधार पर संक्षिप्त नाम सीएनबी हुआ। यही अब कानपुर के पुराने रेलवे स्टेशन के रूप में पहचाना जाता है। वैसे, युवा पीढ़ी में से ज्यादातर को ये भी नहीं पता कि पुराना रेलवे स्टेशन है कहां पर। तो आपको बता दें, जीटी रोड पर टाटमिल चौराहा से रामादेवी की तरफ कुछ दूर चलने के बाद दाहिनी ओर रेलवे अधिकारियों के आवास और रखरखाव के अभाव में जर्जर हो चुका रेलवे का स्टेडियम है। स्टेडियम के बगल से होकर आगे पहुंचने पर बायीं ओर पुराने रेलवे स्टेशन का भवन है, जिसकी भव्यता आज भी देखते ही बनती है। यहीं से सबसे पहले मालगाड़ी का संचालन शुरू हुआ था। तब के कानपोर (अब पुराना कानपुर रेलवे स्टेशन) से कोलकाता 632 मील और बांबे 962 मील की दूरी पर था, जो अब भी स्टेशन पर अंकित है। अभियांत्रिक प्रशिक्षण अकादमी (सीटा) के मुख्य अनुदेशक आरपी सिंह व जेपी सिंह बताते हैं, तब सीएनबी समेत सभी एक से दूसरे स्टेशन की दूरी को मील में ही लिखा जाता था।

    एक साल ठप रहा था काम, 1858 से दोबारा बिछाने की शुरुआत : रेलवे के इतिहास में दर्ज जानकारी के मुताबिक, 1857 की क्रांति में बिठूर के नाना साहब की फौज ने सभी पुल तोड़कर बिछाई जा रही पटरियां उखाड़ दी थीं। उस समय ब्रिटिश हुकूमत को करीब 40 लाख पौंड का नुकसान हुआ था। अंग्रेजों ने 1858 में फिर से रेल लाइन बिछाने का काम शुरू कराया। एएलडी से सीएनबी तक यह रेल लाइन बिछाने का काम 1859 में पूरा कर लिया गया।

    तीन मार्च, 1859 को दौड़ी पहली मालगाड़ी : कानपोर नार्थ बैरक्स (सीएनबी) से इलाहाबाद (एएलडी) के लिए पहली मालगाड़ी 10 वैगन में ईंट, पत्थर लादकर पहली बार चली। इस मालगाड़ी की रफ्तार 10 किलोमीटर प्रतिघंटा थी। इसके सफल संचालन के बाद फिर कानपुर में रेलवे का सफर धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया।

    बांबे, दिल्ली-हावड़ा व लखनऊ समेत कई रूट जुड़े : वर्ष 1860 में सीएनबी से बांबे, 1865 में दिल्ली-हावड़ा, 1875 में लखनऊ और 1886 में झांसी (अब बुंदेलखंड) का रेल रूट जोड़ा गया। इन मार्गों के माध्यम से रुई, कपास, कांच और अनाज मालगाड़ियों से भेजा जाता था। दूसरे देशों से आयात-निर्यात में भी यहां के माध्यम से माल जाता था।

    पास ही थी अंग्रेजों की छावनी : कानपोर नार्थ बैरक्स के पास ही अंग्रेजों की छावनी थी, जिसकी स्थापना 1778 में उन्होंने की थी। सीएनबी से माल यहां पर भी भेजा और ले जाया जाता था। इसीलिए अंग्रेजों ने पुराना रेलवे स्टेशन इस जगह बनाना मुफीद समझा था। बाद में मौजूदा कानपुर सेंट्रल बनने पर वहां से ट्रेनों का संचालन होने लगा। ट्रेनों और मालगाड़ियों की संख्या भी बढ़ती गई।

    कान्हपुर से कानपोर और कानपुर तक : कानपुर- स्थापना का इतिहास (पुस्तक) के मुताबिक, वर्तमान कानपुर का उद्भव इस क्षेत्र में ईस्ट इंडिया कंपनी की फौज की पहली छावनी की स्थापना से संबद्ध है। गंगा के दक्षिणी तट पर जाजमऊ और बिठूर के बीच स्थित कान्हपुर गांव की पूर्वी सीमा से पहले ही पास में कंपनी की फौज की पहली छावनी 1778 में स्थापित हुई थी। राजा कान्हदेव सिंह ने 1217 ईस्वी में कान्हपुर की स्थापना की थी। अंग्रेजों ने उसी कान्हपुर को अंग्रेजी में कानपोर (CAWNPORE) लिखना शुरू किया। कई बार इसकी स्पेलिंग बदलती रही। यही कानपोर कानपुर कोतवाली और पुराना कानपुर रेलवे स्टेशन पर भी अंकित है। वर्ष 1857 में कानपुर के एक वकील नान चंद ने अपनी डायरी लेखन में कान्हपुर को अंग्रेजी में KANHPUR लिखा है। यही आगे चलकर कानपुर (KANPUR) लिखा जाने लगा।