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    मैं आपसे जो कुछ भी कहूंगा वो आपके लिए हमेशा प्रेरणादायक होगा.., लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का क्रांतिकारी भाषण

    By Abhishek AgnihotriEdited By:
    Updated: Sun, 17 Jul 2022 10:51 AM (IST)

    लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक 1908 में अग्निधर्मा लेखन की वजह से जेल गए और लौटने के बाद होमरूल लीग की स्थापना की जिसे एक साल के अंदर पुरजोर समर्थन मिला। उन्होंने ही जन्मसिद्ध अधिकार है स्वराज का नारा दिया।

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    लोकमान्य गंगाधर तिलक ने होमरूल लीग की स्थापना की।

    अग्निधर्मा लेखन की वजह से 1908 में जेल गए लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक 1914 में लौटे। राजनीति पर नरम दल के बढ़ते वर्चस्व और दम तोड़ते स्वदेशी आंदोलन को देखकर परेशान तिलक ने राष्ट्रवादी आंदोलनों की चिंगारी फिर से जलाने के लिए एनी बेसेंट के साथ मिलकर होमरूल लीग की स्थापना की। इस अभियान को सालभर के अंदर ही पूरे देश में पुरजोर समर्थन मिला। होमरूल मूवमेंट ने राष्ट्रवाद को नई दिशा दी और लोकमान्य तिलक नायक बनकर उभरे। उनकी जन्मजयंती (23 जुलाई) पर पढ़िए वह क्रांतिकारी भाषण, जिसमें उन्होंने अपना विश्वप्रसिद्ध नारा दिया...

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    नासिक

    17 मई, 1917

    मेरी उम्र बहुत जवां नहीं है, लेकिन मेरे जज्बे में आज भी वही आग है। आज मैं आपसे जो कुछ भी कहूंगा वो आपके लिए हमेशा प्रेरणादायक होगा। ये शरीर भले ही ढल जाए, बूढ़ा हो जाए, जर्जर हो जाए, लेकिन हमारी प्रतिज्ञा अमर होती है। ठीक उसी तरह, हो सकता है हमारे स्वराज अभियान में थोड़ी शिथिलता आ जाए, लेकिन इसके पीछे की सोच और उद्देश्य शाश्वत हैं, जो कभी खत्म नहीं होंगे और हम स्वतंत्रता हासिल करके रहेंगे।

    स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। मेरा स्वराज जब तक मेरे अंदर जिंदा है, मैं कमजोर या बूढ़ा नहीं हो सकता। कोई भी हथियार इस हौसले को पस्त नहीं कर सकता, कोई आग इसे जला नहीं सकती, पानी की धारा इसे भिगो नहीं सकती, हवा के तेज झोंके भी इसे सुखा नहीं सकते। हम स्वराज की मांग करते हैं और हम इसे लेकर ही रहेंगे।

    जो विज्ञान स्वराज पर खत्म होती है, वही राजनीति की भी विज्ञान होनी चाहिए, वो नहीं जो गुलामी की ओर ले जाए। राजनीति का विज्ञान ही देश का वेद है।

    मैं आपकी अंतरआत्मा को जगाने आया हूं। मैं आप सबको झूठे, मक्कारों और ठगों के झांसे से बाहर निकालने आया हूं। स्वराज का मतलब कौन नहीं जानता? स्वराज कौन नहीं चाहता?

    अगर मैं आपके घर जबरन घुस आऊं और आपके किचन को कब्जे में ले लूं तो क्या आप इसकी इजाजत देंगे? नहीं न, मेरे घर के तमाम मसलों पर मेरा अधिकार होना चाहिए। एक सदी गुजर गई, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत अब भी हमें स्वराज के काबिल नहीं मानती, लेकिन अब हम अपनी लड़ाई खुद लड़ेंगे।

    जब इंग्लैंड भारत का इस्तेमाल कर बेल्जियम जैसे छोटे राष्ट्र को बचाना चाहता है फिर वो हमें किस मुंह से स्वराज के काबिल नहीं मानता? जो लोग हमें गलत ठहरा रहे हैं वो लालची और हमारे विरोधी हैं, लेकिन इससे विचलित होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि बहुत से लोग ईश्वर के निर्णय में भी खोट निकालते हैं।

    हमें इस वक्त बिना कुछ और सोचते हुए देश की आत्मा की रक्षा में जुटना होगा। हमारे देश का भविष्य और समृद्धि अपने जन्मसिद्ध अधिकार यानी स्वराज में निहित है।

    आपको बता दूं कि कांग्रेस ने स्वराज का प्रस्ताव पास कर दिया है। वैसे देखा जाए तो हमारे स्वराज अभियान के रास्ते में अब भी कई अड़चनें खड़ी हैं या खड़ी की जा रही हैं। बड़े स्तर पर अशिक्षा ऐसी ही एक बड़ी अड़चन है, लेकिन हम इस अड़चन को बहुत दिनों तक नहीं सह सकते। अगर हमारे देश के अशिक्षित लोगों को स्वराज की थोड़ी जानकारी भी हो, तब भी बहुत बड़ा मसला हल हो सकता है, ठीक वैसे ही जैसे ईश्वर का पूरा सत्य शायद ही हममें से कोई जानता है फिर भी उसमें अटूट आस्था रखता है।

    मेरा मानना है कि जो अपना काम खुद कर सकते हैं वो अशिक्षित जरूर हो सकते हैं, लेकिन मूर्ख नहीं। वो किसी भी पढ़े-लिखे इंसान जैसे ही विद्वान हैं और अगर वो अपनी जरूरतों और परेशानियों का फर्क समझ लें तो उन्हें स्वराज के मूल्यों को समझने में भी कोई दिक्कत नहीं होगी।

    हमें समझना होगा कि अनपढ़ लोग भी इसी समाज का हिस्सा हैं और हममें से ही हैं। उनको भी समाज में समान अधिकार है। इसलिए जनमानस को जागृत करना हमारा कर्तव्य है।

    परिस्थितियां बदली हैं और हमारे लिए ये बिल्कुल सही मौका है। इस वक्त हम सबकी एक ही आवाज है- ‘अभी नहीं तो कभी नहीं।’

    आइए हम सब इंसाफ और संवैधानिक क्रांति की राह पर चलें। संकल्प करिए और पीछे मुड़कर मत देखिए। अंत परिणाम ऊपर वाले के हाथों पर छोड़ दीजिए।