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    भारत को श्रेष्ठ बनाएंगे तीन स्वप्न.., वो भाषण जब डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने बताई थीं करियर की चार उपलब्धियां

    By Abhishek AgnihotriEdited By:
    Updated: Sat, 20 Aug 2022 02:43 PM (IST)

    आइआइटी हैदराबाद में 25 मई 2011 में मिसाइलमैन पूर्व राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने जो भाषण दिया था उससे पता चलता है कि वो विनम्र व्यक्तित्व और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के धनी थे। उनके भाषण के संपादित अंश पढ़िये।

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    पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम विनम्र व्यक्तित्व के धनी थे।

    विनम्र व्यक्तित्व और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के धनी थे पूर्व राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम। विज्ञान जगत में देश का नाम रोशन करने वाले मिसाइलमैन डा. अब्दुल कलाम के समस्त कार्य व शब्द प्रेरक थे। पढ़िए भारत के प्रति उनके दृष्टिकोण को व्यक्त करते भाषण के संपादित अंश...

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    भारत के संदर्भ में मेरे तीन स्वप्न हैं। हमारे इतिहास के 3,000 साल में समस्त विश्व से लोग यहां आए, हमारे ऊपर आक्रमण किया, हम पर आधिपत्य स्थापित किया और हमारे मस्तिष्क को गुलाम बनाया। अलेक्जेंडर से लेकर तुर्क, मुगल, पुर्तगाली, ब्रिटिश, फ्रांसीसी, डच- ये सभी यहां आए, हमें लूटा और जो कुछ हमारा था, उस पर कब्जा कर लिया, लेकिन हमने किसी अन्य राष्ट्र के साथ ऐसा कभी नहीं किया।

    हमने किसी को जीतकर गुलाम नहीं बनाया। हमने उसकी जमीन पर अपना कब्जा नहीं किया, उनकी संस्कृति और इतिहास को नष्ट नहीं किया और न ही अपनी जीवनशैली को उन पर थोपने का प्रयास किया। क्योंकि हम दूसरों की स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं, इसीलिए मेरा पहला स्वप्न स्वतंत्रता का है। मेरा मानना है कि भारत ने स्वतंत्रता का पहला स्वप्न वर्ष 1857 में देखा। हमें हर हाल में इस स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए, उसकी जड़ों को मजबूत बनाना चाहिए। यदि हम स्वतंत्र नहीं रहेंगे तो कोई भी हमारा सम्मान नहीं करेगा।

    भारत के संदर्भ में मेरा दूसरा स्वप्न विकास का है। हम 50 साल तक विकासशील राष्ट्र रहे हैं। अब वक्त आ गया है कि हम खुद को विकसित राष्ट्र के रूप में देखें। हम सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी के मामले में विश्व के पांच शीर्ष राष्ट्रों में आते हैं।

    हमारे अधिकतर क्षेत्रों में विकास दर 10 फीसद है। हमारी निर्धनता का स्तर गिर रहा है। हमारी उपलब्धियों को आज विश्व में मान्यता मिल रही है। इसके बावजूद हम आत्मविश्वास की कमी के कारण खुद को विकसित, आत्मनिर्भर और आत्म-आश्वस्त राष्ट्र के रूप में नहीं देख रहे हैं।

    मेरा तीसरा स्वप्न है कि भारत विश्व की बराबरी में खड़ा हो सके। मेरा मानना है कि जब तक भारत विश्व की बराबरी में खड़ा नहीं होगा, कोई भी हमारा सम्मान नहीं करेगा। केवल शक्ति ही शक्ति का सम्मान करती है। हमें सैन्य शक्ति के साथ-साथ आर्थिक शक्ति भी बनना होगा।

    मुझे तीन महान लोगों- डा. विक्रम साराभाई, उनके उत्तराधिकारी प्रो. सतीश धवन और परमाणु मैटीरियल के जनक डा. ब्रह्म प्रकाश के साथ काम करने का सौभाग्य मिला। मैं इसे जीवन का महान अवसर मानता हूं। मेरे करियर में चार उपलब्धियां रही हैं।

    पहली, मैंने 20 वर्ष इसरो में व्यतीत किए। मुझे भारत के पहले उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी-3 का परियोजना निदेशक बनने का मौका दिया गया। एसएलवी-3 द्वारा ही ‘रोहिणी’ का प्रक्षेपण हुआ था। मेरे वैज्ञानिक जीवन में इन वर्षों ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

    दूसरी, इसरो के पश्चात मैं डीआरडीओ में गया। वहां मुझे भारत के मिसाइल कार्यक्रम का हिस्सा बनने का अवसर मिला। वर्ष 1994 में जब ‘अग्नि मिशन’ की सारी आवश्यकताएं पूरी हो गईं तो मेरी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। यह मेरी दूसरी उपलब्धि थी।

    तीसरी, परमाणु ऊर्जा विभाग और डीआरडीओ की शानदार साझेदारी में 11 और 13 मई को परमाणु परीक्षण हुए। इन परीक्षणों में अपनी टीम के साथ भाग लेने की मुझे बहुत खुशी थी। हमने विश्व के समक्ष साबित कर दिया कि भारत न केवल परमाणु परीक्षण कर सकता है अपितु वह विकसित देशों की पंक्ति में भी आ गया है। मुझे इस उपलब्धि से भारतीय के रूप में अपने ऊपर बहुत गर्व हुआ।

    इस प्रकार की लाखों उपलब्धियां हैं, लेकिन हमारा मीडिया बुरी खबरों विफलताओं और आपदाओं के ही पीछे पड़ा रहता है। आखिर हम इतने निगेटिव क्यों हैं? एक अन्य प्रश्न है कि एक राष्ट्र के रूप में हम विदेशी वस्तुओं के प्रति इतने आसक्त क्यों हैं? हम विदेशी टेलीविजन चाहते हैं, विदेशी कमीज चाहते हैं, विदेशी टेक्नोलाजी चाहते हैं। हम प्रत्येक आयातित वस्तु के प्रति इतना प्रेम क्यों रखते हैं? क्या हम इस बात को महसूस नहीं करते कि आत्मनिर्भरता से आत्मसम्मान आता है?

    एक बार मैं हैदराबाद में व्याख्यान दे रहा था तो एक 14 वर्ष की लड़की ने मेरे आटोग्राफ के लिए कहा। मैंने उससे पूछा कि जीवन में उसका लक्ष्य क्या है? उसने जवाब दिया, ‘मैं विकसित भारत में रहना चाहती हूं।’ उस लड़की के लिए आपको और मुझे विकसित भारत का निर्माण करना होगा।

    आपको घोषणा करनी चाहिए कि भारत अल्प विकसित राष्ट्र नहीं है, अपितु विकसित राष्ट्र है। क्या अपने देश के विषय में सोचने के लिए आपके पास 10 मिनट का भी समय है? आप कहते हैं कि हमारी सरकार अशक्त या असमर्थ है।

    आप कहते हैं और बस कहते ही रहते हैं, लेकिन आप इन सबके बारे में क्या करते हैं? आप दूसरे देश में वहां की व्यवस्था का सम्मान करते हैं, उसके नियम-कानून का पालन करते हैं, लेकिन अपने देश में नहीं। जिस क्षण आप भारत की धरती पर उतरते हैं, सड़कों पर कागज और सिगरेट के टुकड़े फेंकना आरंभ कर देते हैं। हम स्वयं कुछ न करते हुए सरकार से प्रत्येक कार्य करने की आशा करते हैं।

    कोई भी व्यक्ति व्यवस्था को पुष्ट बनाने के विषय में विचार नहीं करता। हमारी चेतना पैसे की गुलाम बन गई है। प्रिय भारतीयों! मैं यहां जे. एफ. केनेडी के शब्दों को भारत के संदर्भ में प्रस्तुत कर रहा हूं: खुद से पूछिए कि आप भारत के लिए क्या कर सकते हैं? भारत को आज का अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश जैसे सफल बनाने के लिए जो भी करने की आवश्यकता है, वह करिए!

    (डा. कलाम ने यह भाषण 25 मई, 2011 को आइआइटी, हैदराबाद में दिया था)