नाना साहब पेशवा और तात्या टोपे ने अंग्रेजों काे दो बार कानपुर से खदेड़ा था, यहां पढ़ें युद्ध का रोमांचक इतिहास
Independence Day 2022 देश की स्वतंत्रता के इतिहास में कानपुर के क्रांतिकारियों की भी विशेष भूमिका रही है। इनमें बिठूर के नाना साहब पेशवा और तात्या टोपे ने अंग्रेजों काे शहर से दो बार खदेड़कर बाहर कर दिया था।

कानपुर, [राजीव सक्सेना] l Independence Day 2022 : 15 अगस्त 1947 को देश पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त होकर स्वतंत्रता के स्वर्णिम काल में प्रवेश कर चुका था और अंग्रेज हार मानकर अपने देश को लौट चुके थे। इसके लिए स्वाभिमानी भारतीयों ने लंबी लड़ाई लड़ी और इसमें एक लड़ाई आजादी से 90 वर्ष पहले कानपुर में भी लड़ी गई और महान क्रांतिकारी नाना साहब पेशवा Nana Rao Peshwa और तात्या टोपे Tatya Tope ने अंग्रेजों को दो बार खदेड़कर बाहर किया था।
वर्ष 1857 को स्वतंत्रता आंदोलन Indian Freedom Movement का सबसे महत्वपूर्ण वर्ष माना जाता है। कानपुर में अंग्रेजों ने अपनी छावनी बना रखी थी। 10 मई 1857 को मेरठ में जो चिंगारी भड़की, उसका प्रभाव यहां की छावनी में भी पड़ा। कुछ सिपाहियों ने विद्रोह किया लेकिन 21 मई 1857 को उन्हें फांसी दे दी गई। सिपाहियों में गुस्सा भरा हुआ था।
इस बीच, 26 मई 1857 को उस समय के मजिस्ट्रेट हिल्डर्सन ने नाना साहब Nana Sahab Peshva से नवाबगंज स्थित खजाने की सुरक्षा मांगी। नाना साहब ने तात्या टोपे के नेतृत्व में इसके लिए अपने सैनिक भेजे। इससे नाना साहब ने अंग्रेजों का विश्वास तो जीता लेकिन उन्होंने सैनिकों को विद्रोह के लिए प्रोत्साहित भी करना शुरू कर दिया।
चार जून 1857 की रात पहले से तय समय पर विद्रोह कर दिया गया। सैनिकों ने नवाबगंज स्थित खजाना लूट लिया। छह जून को नाना साहब के नेतृत्व में नवाबगंज के अस्थाई किले पर धावा बोला गया। 21 दिन नाना साहब की तोपें किले पर गोले बरसाती रहीं।
सात जून को नाना साहब ने शहर के नागरिक प्रशासन को चलाने की व्यवस्था की और हुलास सिंह को शहर कोतवाल व चीफ मजिस्ट्रेट बनाया गया। इसके साथ ही दीवानी न्यायालय बनाए गए। 25 जून को जनरल ह्वीलर ने आत्मसमर्पण के लिए झंडा फहराया।
27 जून को अंग्रेजों के सत्ती चौरा घाट से शहर से जाने की व्यवस्था की गई लेकिन वहीं कुछ सैनिकों ने फायरिंग कर दी। इस पर अंग्रेजों ने नाव चला रहे मल्लाहों पर गोलियां चला दीं। 15 जुलाई को जनरल हैवलाक दोबारा पांडु नदी पार कर आ गया। उसी दिन बीबीघर में बंद सभी महिलाओं, बच्चों को मारकर कुएं में डाल दिया गया।
औंग में ज्वाला प्रसाद, टिक्का सिंह, लियाकत अली ने अंग्रेजों का सामना किया। 16 जुलाई को नाना साहब के नेतृत्व में अहिरवां के पास सैनिक पहुंचे। भीषण युद्ध के बीच 17 जुलाई को शहर पर फिर अंग्रेजों का कब्जा हो गया।
दूसरी बार तात्या टोपे शिवली, शिवराजपुर होते हुए शहर आ गए। 16 नवंबर 1857 को उन्होंने अंग्रेजों से मोर्चा लिया। 27 नवंबर की सुबह उन्होंने अंग्रेजों को पछाड़ दिया। 29 नवंबर को शहर फिर अंग्रेजों से मुक्त हो गया।
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