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    नरम दल के गणेश शंकर विद्यार्थी क्रांतिकारियों के भी थे समर्थक, अखबार से अंग्रेजी हुकूमत को हिलाया

    By Abhishek VermaEdited By:
    Updated: Fri, 25 Mar 2022 01:38 PM (IST)

    प्रताप नामक अखबार के जरिए गणेश शंकर विद्यार्थी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हुंकार भरते थे। वह चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों को शरण भी देते थे। उनके बलिदानी दिवस पर हम आज आपको रूबरू करा रहे हैं।

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    गणेश शंकर विद्यार्थी के पौत्र अशोक विद्यार्थी ।स्वयं

    कानपुर, जागरण संवाददाता। अखबार के जरिए अंग्रेजी हुकूमत को ललकारने वाले गणेश शंकर विद्यार्थी यूं तो नरम दल से जुड़े थे लेकिन वह क्रांतिकारियों के भी उतने ही बड़े समर्थक थे। वह उन्हें आर्थिक सहयोग के साथ ही अपने यहां शरण भी देते थे। बलिदानी क्रांतिकारियों के स्वजन को भी मदद करते रहते थे। वे अंग्रेजों से लड़ाई में हिंदू-मुस्लिम सभी वर्ग को एक साथ रखना चाहते थे। 1931 में कानपुर में हुए दंगे में सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए उन्होंने भरसक प्रयास किया और इस बीच 25 मार्च को उन्हें अपने प्राण गंवाने पड़े।

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    ग्वालियर निवासी जयनारायण श्रीवास्तव के पुत्र गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म 26 अक्टूबर 1890 को इलाहाबाद (वर्तमान प्रयागराज) में हुआ था। वहां से वह फतेहपुर पहुंचे और अंत में कानपुर को अपनी कर्मभूमि बनाया। मात्र 21 वर्ष की आयु में वह महावीर प्रसाद द्विवेदी की पत्रिका सरस्वती से जुड़े। इसके बाद 23 वर्ष की आयु में ही उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रताप समाचार पत्र का संपादन शुरू किया। इस समाचार पत्र में प्रकाशित लेख अंग्रेजों के खिलाफ होते थे। इसके लिए उन्हें आठ वर्ष की जेल भी हुई। प्रताप को शुरू करने के पहले ही वह कांग्रेस से जुड़ चुके थे। 1925 में कानपुर में कांग्रेस के हुए अखिल भारतीय अधिवेशन में वह स्वागताध्यक्ष थे। 1925 में विधान परिषद सदस्य भी बने और 1929 तक इस पद पर रहे। वह प्रदेश कांग्रेस कमेटी के चेयरमैन भी रहे। कांग्रेस के नरम दल से जुड़े हुए थे लेकिन क्रांतिकारियों के बड़े समर्थक थे।

    अंग्रेज उठा ले गए थे सारा सामान

    प्रताप प्रेस से होने वाली आय का बड़ा हिस्सा क्रांतिकारियों की आर्थिक मदद में खर्च करते थे। 1928-29 में अमर बलिदानी चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह छह-छह माह तक उनके पास आकर रुके थे। अंग्रेजों को इसकी जानकारी हो गई थी इसीलिए उनके यहां से एक कुर्सी को छोड़ सारा फर्नीचर उठा ले गए थे। इसके बाद भी विद्यार्थी पीछे नहीं हटे। कई बलिदानी क्रांतिकारियों की बेटियों की शादी भी कराई।

    फिर शुरू करना चाहते प्रताप प्रेस

    गणेश शंकर विद्यार्थी के पौत्र अशोक विद्यार्थी और प्रपौत्र आशीष विद्यार्थी के मुताबिक वह एक बार फिर प्रताप प्रेस को शुरू करना चाहते हैं ताकि इसके जरिए बाबा की नीतियों पर काम किया जा सके।

    जेल में फ्रेंच उपन्यास का किया था अनुवाद

    विद्यार्थी ने जेल में रहने के दौरान फ्रेंच उपान्यास ला मिजरेबल का अनुवाद किया था। इस उपन्यास का नाम उन्होंने बलिदान रखा था। हालांकि, यह प्रकाशित नहीं हो सका।