आइआइटी में बनी दवा दूर करेगी गठिया का दर्द, महज 14 दिन में उपचार और एक शीशी की कीमत होगी 1 हजार
आइआइटी कानपुर के बायोलाजिकल साइंस एंड बायोइंजीनियरिंग विभाग के वैज्ञानिकों ने आस्टियो आर्थराइटिस के निवारण की दिशा में कामयाबी पाई है । बकरी और गठिया ...और पढ़ें

कानपुर, [चंद्र प्रकाश गुप्ता]। आस्टियोआर्थराइटिस (गठिया) से पीड़ित लोगों के लिए ये बड़ी खुशखबरी है। अब यह बीमारी उम्र बढ़ने के साथ जिंदगी की रफ्तार में अवरोध नहीं डाल पाएगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) के विज्ञानियों ने इससे निजात के लिए दवा पाने की दिशा में सकारात्मक सफलता पा ली है। जी हां, ये खास दवा हड्डियों के जोड़ों के ऊतकों (टिश्यू) को वापस पुरानी स्थिति में लाकर इस रोग को पूरी तरह ठीक कर सकती है और आपरेशन की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। प्रयोगशाला में बकरी और घुटना रिप्लेसमेंट के मरीजों के मृत टिश्यू पर इसके सफल प्रयोग से उम्मीद की किरण जागी है कि इस वर्ष के अंत तक दवा बाजार में उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है। इसे जर्नल में प्रकाशन के लिए भेजा जा रहा है।
शरीर के ऊतकों को कार्टिलेज मजबूत बनाने के साथ ही जोड़ों को लचीला भी बनाते हैं। इसकी मौजूदगी से ही घुटने, कोहनी, कूल्हे आदि अंग सुचारू काम करते हैं। इसकी मदद से हड्डियां बिना आपस में टकराए ही घुमाव बनाती हैं। जब इन हड्डियों के बीच कार्टिलेज की परत कमजोर होती है और हड्डियों के बीच दूरी कम होती है तो जोड़ों में सूजन, दर्द और अकड़न होने लगती है।
कई बार तो हाथ-पैर मोड़ने के दौरान हड्डियां आपस में टकराने पर आवाज करके असहनीय वेदना का कारण बनती हैं। इसे आस्टियोआर्थराइटिस (गठिया) कहते हैं। 40 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में इसका जोखिम ज्यादा होता है। चिकित्सा क्षेत्र में गठिया का सटीक इलाज अब तक नहीं है। डाक्टर दर्द निवारक दवा या व्यायाम की सलाह देते हैं। बीमारी गंभीर हो जाने पर घुटने या कोहनी का ट्रांसप्लांट करते हैं।
आइआइटी के बायोलाजिकल साइंस एंड बायोइंजीनियरिंग विभाग के प्रो. धीरेंद्र बताते हैं कि सहयोगी डा.अर्जित भट्टाचार्य व अन्य शोधार्थियों के साथ मिलकर इस दवा को सल्फेटेड कार्बोक्सी मिथाइल सेलुलोज और टिशू इनबिटर आफ मेटालोप्रोटीज को मिलाकर तैयार किया है। इसमें से सल्फेटेड कार्बोक्सी मिथाइल सेलुलोज को लैब में बनाया जा सकता है और दूसरी दवा के मालीक्यूल शरीर के अंदर ही होते हैं, उनके अंश लेकर दवा तैयार की जाती है। इस दवा को जोड़ों के बीच इंजेक्शन से पहुंचाया जाता है।
यह कार्टिलेज का विकास कर सकती है। इससे गठिया रोग बिना किसी सर्जरी के ही ठीक हो सकता है। इस आविष्कार को इंटेलेक्चुअल प्रापर्टी इंडिया के तहत पेटेंट कराया गया है। जल्द ही तकनीक को फार्मूले में बदलकर उसे हस्तांतरित करने पर विचार किया जा रहा है, ताकि दवा का बड़े पैमाने पर निर्माण हो सके और आम आदमी तक पहुंच सके।
शुरुआती लक्षण होने पर 14 दिन में हो सकेगा उपचार : उनके मुताबिक गठिया के शुरुआती लक्षण पता लगने पर अगर दवा का इस्तेमाल किया जाएगा तो रोग को महज 14 से 20 दिन में ठीक किया जा सकता है। इस दवा को जोड़ों की हड्डियों के बीच मौजूद कार्टिलेज टिश्यू में इंजेक्ट कराया जाएगा। इसके बाद कार्टिलेज फिर से बनने लगेंगे और धीरे-धीरे हड्डियों को घुमाव के लिए जरूरी ऊतकों का स्तर मिल सकेगा।
अधिकतम एक हजार रुपये की हो सकती है दवा की एक शीशी : उन्होंने बताया कि वर्तमान में आस्टियोआर्थराइटिस का एकमात्र इलाज ज्वाइंट रिप्लेसमेंट ही है, जिसमें एक लाख रुपये से भी ज्यादा खर्च आता है। इस दवा की एक वायल अधिकतम एक हजार रुपये तक होगी। शुरुआती स्टेज में पांच से छह वायल दवा के इस्तेमाल से ही उपचार हो सकेगा। बीमारी ज्यादा बढ़ने पर दवा ज्यादा देनी पड़ सकती है।
आंखों की दवा में भी होता इस्तेमाल : उन्होंने बताया कि आंखों की ड्राईनेस (आंसू सूखना) पर दी जाने वाली दवाओं में भी सल्फेटेड कार्बोक्सी मिथाइल सेलुलोज का इस्तेमाल होता है।

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