आइआइटी कानपुर में हुआ टेककृति उत्सव 2022 का आयोजन, देश -विदेश से जुड़े मेहमान, बेहतर दुनिया बनाने पर हुई चर्चा
वर्ष 2006 में नोबल शांति पुरस्कार पाने वाले बांग्लादेशी अर्थशास्त्री प्रो. मो. यूनुस ने टेककृति उत्सव 2022 में हिस्सा लेने कानपुर आइआइटी पहुंचे। यहां उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग को लेकर अपने विचार रखे। वहीं 2002 में नोबल पाने वाले स्विटजरलैंड के रसायनविद् डा. कर्ट ने भी भाग लिया।
कानपुर,जागरण संवाददाता। शून्य कार्बन उत्सर्जन, शून्य धन एकाग्रता व शून्य बेरोजगारी। दुनिया के लिए ये तीन शून्य बेहद जरूरी हैं। प्रकृति जो प्रदान करती है, उसे महत्व देना चाहिए और ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए ठोस उपाय होने चाहिए। वर्तमान आर्थिक प्रणाली ने पूंजी को कुछ लोगों के हाथ में केंद्रित कर दिया है। ऐसे में वर्तमान पीढ़ी को जिम्मेदारी लेनी होगी और नई सभ्यता बनाने के लिए नेतृत्व करना होगा। वर्ष 2006 में नोबेल शांति पुरस्कार पाने वाले बांग्लादेशी अर्थशास्त्री प्रो. मोहम्मद यूनुस ने आइआइटी में शुरू हुए एशिया के सबसे बड़े तकनीक व उद्यमिता उत्सव 'टेककृति 2022Ó के 28वें संस्करण में यह बात कही। वहीं, स्विटजरलैंड के रसायन विज्ञानी और वर्ष 2002 का नोबेल पुरस्कार पाने वाले डा. कर्ट वुदरिक ने डीएनए की अवधारणा समझाई।
टेककृति का 28वां संस्करण वैज्ञानिक ज्ञान और अनंत संभावनाओं के परिवर्तनों में तेजी लाने पर आधारित है। तीन दिनों तक चलने वाले इस वार्षिक उत्सव में देश ही नहीं दुनिया के कई महत्वपूर्ण शिक्षाविद, वैज्ञानिक अपने विचार साझा करेंगे। पहले दिन उत्सव का आगाज 'रोड टू टेककृति' कार्यक्रम से हुआ।
इसमें बांग्लादेशी विचारक, सामाजिक उद्यमी, बैंकर, अर्थशास्त्री प्रो. यूनुस ने विद्यार्थियों को संबोधित किया। मो. यूनुस को ग्रामीण बैंक की स्थापना और माइक्रोक्रेडिट व माइक्रोफाइनेंस की अवधारणा को आगे बढ़ाने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था। उन्होंने कहा कि कोविड के कारण आर्थिक व्यवस्था धीमी हुई है। इसे बढ़ाने की कोशिश करनी होगी।
डा. कर्ट वुदरिक ने 'जीवन के अणु: डीएनए, आरएनए व प्रोटीन' विषय पर व्याख्यान दिया। डा. कर्ट स्विस केमिस्ट होने के साथ बायोफिजिसिस्ट भी हैं। इन्होंने डीएनए, आरएनए और प्रोटीन के बारे में बताया। कहा कि डीएनए आनुवंशिक सामग्री है जो किसी जीव के जैविक गठन को परिभाषित करता है। आरएनए सूचना वाहक या संदेशवाहक के रूप में कार्य करता है और प्रोटीन के संश्लेषण में मदद करता है।
आइआइटी के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. अनिमांगसु घटक ने 'बायोमिमेटिक्स: एन इंजीनियर्स अप्रोच टुवर्डस अनरेवलिंग नेचर्स मार्वल्स' विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि जटिल मानवीय समस्याओं को हल करने के उद्देश्य से यह माडल, सिस्टम और प्रकृति के तत्वों का अनुकरण है। उन्होंने मच्छर और छिपकली का उदाहरण भी दिया।
1936 में शुरू हुआ था प्रोटीन व डीएनए संरचना पर काम
डा. कर्ट ने बताया कि प्रोटीन और डीएनए की संरचना के लिए काम वर्ष 1936 में शुरू हुआ था। कोरी और पालिंग ने अमीनो एसिड और डाइपेप्टाइड्स की उच्च-रिजोल्यूशन क्रिस्टल संरचनाएं पाई थीं। 1944 में ओसवाल्ड एवरी ने डीएनए में आनुवंशिक सामग्री की खोज की। 1953 में जेम्स वाटसन और फ्रांसिस क्रिक ने डबल हेलिक्स के लिए पहली संरचना की खोज की। 1980 में उनकी संरचना को स्वीकृति मिली। इसमें इतना समय इसलिए लगा क्योंकि डीएनए के छोटे रूपों को संश्लेषित करना आसान नहीं था।