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    हैरत में डाल देगी गंगा को लेकर की गई विज्ञानियों की रिसर्च, जानिए- क्या कहती है IISC और IIT की रिपोर्ट

    By Shaswat GuptaEdited By:
    Updated: Sun, 21 Nov 2021 10:17 AM (IST)

    IIT and IISC study अध्ययनकर्ता और आइआइटी के भू विज्ञान विभाग में प्रोफेसर डा.राजीव सिन्हा ने बताया कि डा. प्रदीप मजूमदार सोमिल स्वर्णकार के साथ एक सा ...और पढ़ें

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    IIT and IISC study: गंगा के स्वरूप की खबर से संबंधित प्रतीकात्मक फोटो।

    कानपुर, [चंद्रप्रकाश गुप्ता]। IIT and IISC study जलवायु परिवर्तन और बांध-बैराजों की संख्या बढऩे से गंगा का प्रवाह और बाढ़ क्षेत्र तेजी से बदल रहा है। ऐसा ही रहा तो भविष्य में गंगा का रौद्र रूप दिख सकता है। भारतीय विज्ञान संस्थान (IISC) बेंगलुरु और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) कानपुर के विज्ञानियों ने यह आशंका जताई है। उनके शोध को नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट ने भी प्रकाशित किया है। अब यह रिपोर्ट जलशक्ति मंत्रालय को भेजी जाएगी। 

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    बाढ़ के पूर्वानुमान के लिए दोनों संस्थानों ने गंगोत्री ग्लेशियर से ऋषिकेश तक 21 हजार वर्ग किमी क्षेत्र का अध्ययन किया। अध्ययनकर्ता और आइआइटी के भू विज्ञान विभाग में प्रोफेसर डा.राजीव सिन्हा ने बताया कि डा. प्रदीप मजूमदार, सोमिल स्वर्णकार के साथ एक साल तक वर्षा, बाढ़, बैराज-बांध निर्माण, गाद के 50 साल के आंकड़ों का विश्लेषण किया। इसमें पता चला कि गंगोत्री ग्लेशियर से निकलने वाली भागीरथी नदी और सतोपंथ ग्लेशियर से शुरू होने वाली अलकनंदा नदी के प्रवाह और बेसिन में काफी बदलाव हुआ है। अध्ययन में यह भी पता लगा है कि अलकनंदा बेसिन में वर्ष 1995 से वर्ष 2005 तक पानी का प्रवाह दोगुना हो चुका है। इसे चरम प्रवाह माना गया है। हालांकि, भागीरथी बेसिन में अभी इतना परिवर्तन नहीं हुआ है, लेकिन आने वाले वर्षों में इसमें भी चरम प्रवाह का अनुमान लगाया जा रहा है। माना जा रहा है कि नदियों के स्वरूप में बदलाव से भविष्य में चरम प्रवाह में वृद्धि होगी और गंगा बेसिन में बाढ़ का क्षेत्र विस्तारित हो सकता है। डा. राजीव सिन्हा के मुताबिक, इससे जल विज्ञान माडल की मदद से बाढ़ का सटीक पूर्वानुमान देने में आसानी होगी और बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों का भी पहले से पता लगाया जा सकेगा। यही नहीं इस डाटा से नदियों के उच्च प्रवाह को कम करने के लिए तकनीक का इस्तेमाल करके संरचनात्मक प्रक्रिया भी तैयार की जा सकती है।

    यह है जल विज्ञान माडल: इसमें सामान्य प्रवाह, गाद बढऩे के बाद बढ़े जलस्तर और पानी के वेग के आधार पर आकलन किया जाता है कि बाढ़ का स्वरूप कैसा होगा। इसमें यह भी देखा जाता है कि कितने समय में कितना प्रवाह बढ़ा।

    इन प्रयासों से हो सकता सुधार : प्रो. राजीव सिन्हा कहते हैैं कि बांध और बैराज बनाना जरूरी है, लेकिन उससे ज्यादा साफ-सफाई और गाद प्रबंध जरूरी है। इसके सुझाव जलशक्ति मंत्रालय को भेजेंगे। इसके जरिये बाढ़ आदि त्रासदी पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकेगा।

     ये है बांध और बैराज में अंतर : सिंचाई विभाग के अभियंताओं ने बताया कि बांध पक्का निर्माण होता है। इसमें एक बड़ा रिजर्व वायर (भंडारण क्षेत्र)  होता है। इसमें पानी का स्तर तय होता है। इससे समय-समय पर जलविद्युत उत्पादन, सिंचाई, पेयजल आदि के लिए आपूर्ति किया जाता है जबकि बैराज नदी के बीचोंबीच गेट का स्ट्रक्चर होता है। इसमें पानी भंडारण की व्यवस्था नहीं होती है। इसमें पीछे से आ रहे पानी को प्रवाह बनाते हुए जरूरत के अनुसार आगे बढ़ाया जाता है। जरूरत के हिसाब से ही गेट खोले जाते हैं।