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    IIT Kanpur ने खोजे दो हजार वर्ष पुराने बौद्ध स्तूप के अवशेष, जीपीआर सर्वे से हरियाणा में मिले निशान

    By vivek mishra Edited By: Anurag Shukla1
    Updated: Wed, 16 Jul 2025 10:16 PM (IST)

    आइआइटी कानपुर की टीम के सर्वेक्षण के दौरान हरियाणा के यमुनानगर में मिट्टी के नीचे बौद्ध स्तूपों के अवशेष दबे मिले। अवशेष दो हजार वर्ष पुराने होने का अनुमान है। बिना खोदाई किए ज़मीन के नीचे देखने को जीपीआर का इस्तेमाल किया गया। कई वर्षों से इस पर टीम काम कर रही है।

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    हरियाणा के पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग में उप निदेशक डा. बनानी भट्टाचार्य सर्वे का निरीक्षण करती हुई। जागरण अर्काइव

    जागरण संवाददाता, कानपुर। हरियाणा के यमुनानगर जिले में आइआइटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) कानपुर की टीम ने मिट्टी के नीचे दबे प्राचीन बौद्ध स्तूपों और संरचनात्मक अवशेषों का पता लगाया है। शोधकर्ताओं ने उन्नत ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) तकनीक का उपयोग करते हुए करीब छह से सात फीट की गहराई पर गोलाकार संरचनाओं, पुरानी दीवारों और कक्ष जैसे कमरों का पता लगाने में सफलता हासिल की है। विशेषज्ञों की टीम ने बौद्ध स्थल दो हजार वर्ष पुराने होने का अनुमान जताया है।

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    हरियाणा राज्य पुरातत्व विभाग और आइआइटी कानपुर के सिविल इंजीनियरिंग विभाग की संयुक्त टीम ने टोपरा कलां गांव व सतह पर बिखरी पुरानी ईंटों के लिए पहचाने जाने वाले अन्य गांवों सहित कई स्थलों पर संभावित ऐतिहासिक संरचनाओं का पता लगाने के लिए सर्वे किया।

    आइआइटी के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर जावेद मलिक ने कहा कि कई वर्षों से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के साथ ऐसे प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। हमारा लक्ष्य सतह पर पाई जाने वाली प्राचीन निर्माण सामग्री के वास्तविक साक्ष्यों की पुष्टि करना है। सर्वे के दौरान शोधकर्ताओं ने बिना खोदाई किए ज़मीन के नीचे देखने के लिए जीपीआर का इस्तेमाल किया।

    उन्होंने कहा कि यमुनानगर के टोपरा कलां गांव एक प्रमुख टीले पर स्थित एक प्राचीन मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। हालांकि टीम मंदिर के अंदर जीपीआर स्कैन नहीं कर सकी लेकिन वे इसकी दीवारों के ठीक बाहर के क्षेत्र का सर्वे करने में सफल रहीं। टीम ने टीले के बाहरी हिस्से का सर्वेक्षण किया तो हमें भू-रडार से मजबूत प्रतिबिंब मिले, नीचे एक अर्धवृत्ताकार संरचना दिखाई दी।

    पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने पास में एक स्तूप की मौजूदगी की पुष्टि की। टीम ने एक दूसरे स्थान का भी दौरा किया, जिसे स्थानीय ग्रामीण 'जरासंध का किला' कहते हैं, जिसका नाम महाभारत महाकाव्य के पौराणिक पात्र के नाम पर रखा गया है। महाभारत से जुड़ों ग्रंथों के अनुसार जरासंध मगध का राजा था, जिसका वध महाबली पांडव भीम ने किया था। पुरातत्व विभाग से औपचारिक स्वीकृति मिलने के बाद ही उत्खनन कार्य शुरू किया जा सकता है।

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