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    कानपुर में कैसे पड़ा 'सीसामऊ' इलाके का नाम, रोचक है कहानी; राजा-रजवाड़े से लेकर पढ़ें अब तक पूरा इतिहास

    Updated: Sun, 17 Nov 2024 03:12 PM (IST)

    कानपुर का सीसामऊ इलाका अपने समृद्ध इतिहास के लिए जाना जाता है। यह शहर का सबसे पुराना बसा हुआ क्षेत्र है जिसका उल्लेख 1120 ईस्वी के एक दान पत्र में मिलता है। सीसामऊ में कभी शीशम के पेड़ों का जंगल हुआ करता था जिसे काटकर यह ग्राम आबाद हुआ। इसीलिए इसे सीसामऊ कहा गया। आइए सीसामऊ क्षेत्र के बारे में विस्तार से जानते हैं...

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    प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल किया गया ग्राफिक

    जागरण संवाददाता, कानपुर। शहर में इस वक्त सीसामऊ विधानसभा उपचुनाव का शोर है। 20 नवंबर को यहां पर मतदान होना है। इतिहासकारों की मानें तो सीसामऊ कानपुर का सबसे पुराना क्षेत्र है। करीब 904 साल पहले यहां पर शीशम का जंगल था, जिसे राजा कन्नौज जयचंद्र के पितामह ने एक ब्राह्मण को दान दिया था।

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    पहले गांव बसा, फिर कस्बा और बाद में शहर। अंग्रेजों के शासनकाल में भी जाजमऊ परगना का सीसामऊ राजस्व ग्राम था और आज भी राजस्व अभिलेखों में सीसामऊ ही दर्ज है। कानपुर इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट तथा डेवलपमेंट बोर्ड ने बाद में अनेक आसपास के गावों को इसकी परिधि में लाकर शहरीकरण किया गया और वर्तमान में यह इलाका शहर का केंद्र बिंदु बन गया है। सीसामऊ के इतिहास के लेकर पेश है हमारे संवाददाता गौरव दीक्षित की रिपोर्ट....।

    कभी हुआ करता था शीशम के पेड़ों के जंगल

    कानपुर का इतिहास भाग एक के दस्तावेजों के मुताबिक आधुनिक कानपुर का आधा भाग पटकापुर, कुरसवां, जुही, सीसामऊ आदि कई गावों से मिल कर बना है। ससईमऊ या सीसामऊ के बारे मे कहा जाता है कि यहां ससई (सिरसई) अर्थात शीशम के पेड़ो का जंगल था, जिसको काटकर यह ग्राम आबाद हुआ। इसीलिए इसे सीसामऊ कहा गया।

    सीसामऊ विधानसभा सीट का पूरा इतिहास, कैसे पड़ा नाम; कौन था यहां का राजा

    कानपुर में कैसे पड़ा 'सीसामऊ' इलाके का नाम, रोचक है कहानी; साल 1120 में राजा से लेकर विधायक तक पढ़ें पूरा इतिहास

    राजा जयचंद्र ने दिया था दान

    यह भी हो सकता है कि यह नाम शीशम के जंगल से जुड़े नामों के अपभ्रंश के बाद प्रचलन में आया। ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक सीसामऊ वर्तमान कानपुर का सबसे प्राचीन बसाव वाला क्षेत्र है। कन्नौज के राजा जयचंद्र के पितामह महाराजा गोविन्दचंद्र ने पंडित साहुल शर्मा नाम के ब्राह्मण को ससईमऊ (वर्तमान सीसामऊ) नाम से ख्यातिप्राप्त यह गांव दान में दिया था। यह बात गोविन्दचंद्र के उस दान-पत्र से सिद्ध होती है, जो काकूपुर के पास स्थित छत्रपुर गांव में आज से लगभग 78 वर्ष पूर्व प्राप्त हुए थे।

    इस दान पत्र में तिथि संवत 1177 अर्थात सन् 1120 का जिक्र है। इस लिहाज से देखें तो सीसामऊ की बसावट कम से कम 904 साल से भी अधिक प्राचीन है। अंग्रेजों के शासनकाल में भी जाजमऊ परगना का सीसामऊ राजस्व ग्राम बना रहा और आज भी राजस्व अभिलेखों में सीसामऊ ही दर्ज है।

    सीसामऊ से अलग होकर बसा पटकापुर

    सीसामऊ का एक बड़ा मोहल्ला है पटकापुर। पटका का एक अर्थ बटवारा होता है। सीसामऊ के पूर्वी भाग का बंटवारा कर पटकापुर पृथक कर बसाया गया था। कानपुर इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट तथा डेवलपमेंट बोर्ड ने बाद में अनेक आसपास के गावों को इसकी परिधि में लाकर शहरीकरण करके इसे विकसित किया।

    पौने दो सौ साल पहले क्षेत्रफल था 40 एकड़, कस्बे की जनसंख्या 3513

    कानपुर जिले की सांख्यिकीय रिपोर्ट, 1848 के मुताबिक जाजमऊ परगने के प्रमुख कस्बों में सीसामऊ का नाम था। जब तक यह क्षेत्र कस्बे के रूप में विकासित हो चुका था। उस वक्त सीसामऊ कस्बे का क्षेत्रफल 40 एकड़ और जनसंख्या 3513 थी । इसी रिपोर्ट के मौजा रजिस्टर के मुताबिक तब यह क्षेत्र कस्बे के अलावा आठ अन्य राजस्व भागों में बंटा हुआ था। यह राजस्व भाग 50 से 52 एकड़ क्षेत्रफलों में बांटे गए थे, जिनके जमींदारों को 159 रुपये और 160 रुपये का लगान देना होता था। प्रत्येक राजस्व भाग की जनसंख्या 1847 दर्ज है।

    वर्तमान सीसामऊ के प्रमुख मोहल्ले

    रायपुरवा, गांधीनगर, भन्नानपुरवा, कौशलपुर, जवाहरनगर, सीसामऊ उत्तरी, सीसामऊ दक्षिणी, मैकरावर्टगंज, बेकनगंज, चमनगंज, चुन्नीगंज, सूटरगंज, कर्नलगंज और ग्वालटोली।

    वर्तमान सीसामऊ एक नजर में

    मतदाता: 2.71 लाख

    जनसंख्या: लगभग छह लाख

    सीसामऊ विधानसभा सीट का इतिहास

    सपा नेता व पूर्व विधायक इरफान सोलंकी को पिछले दिनों एक प्लाट पर आगजनी और कब्जे की कोशिश में सात साल की सजा हुई थी।इरफान के सजायाफ्ता होने की वजह से यह सीट रिक्त हो गई थी। भले ही सीसामऊ क्षेत्र बेहद पुराना है, लेकिन इस नाम से सीट का गठन 1974 में हुआ, तब यह सीट सुरक्षित थी।

    2012 में जब परिसीमन हुआ तब यह सामान्य हुई। पहली बार यहां से कांग्रेस के शिवलाल जीते थे, लेकिन 1977 के चुनाव में जनता पार्टी यहां से जीत गई थी। हालांकि जनता पार्टी से यह सीट 1980 के चुनाव में कांग्रेस की कमला दरियावादी ने छीन ली थी। कमला यहां से दो बार जीतीं, लेकिन 1989 के चुनाव में जनता दल की लहर में यह सीट कांग्रेस को गंवानी पड़ी थी।

    सन् 1991 की राम मंदिर आंदोलन की लहर में यहां भाजपा का कमल खिला। राकेश सोनकर विधायक बने और लगातार तीन बार जीते। 1993 में जब सपा और बसपा का गठबंधन हुआ तब भी भाजपा की जीत हुई। तमाम कोशिशों के बाद भी भाजपा से यह सीट विरोधी नहीं छीन सके, लेकिन 2002 में भाजपा ने राकेश सोनकर का टिकट काट दिया था। केसी सोनकर भाजपा से मैदान में उतरे मगर, हार का सामना करना पड़ा। फिर भाजपा इस सीट पर कभी नहीं जीती।

    कांग्रेस के खाते में 2002 में कांग्रेस के संजीव दरियावादी विधायक बने। 2007 में भी वे जीते। 2012 में परिसीमन बदला और यह सीट सामान्य हुई तो कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी हो गई। यहां से सपा के हाजी इरफान सोलंकी पहली बार जीते और फिर 2017 में भी उन्हें जीत मिली।

    कौन कब जीता

    1974 : कांग्रेस के शिवलाल

    1977 : जनता पार्टी के मोती राम

    1980 : कांग्रेस की कमला दरियावादी

    1985 : कांग्रेस की कमला दरियावादी

    1989 : जनता दल के शिव कुमार बेरिया

    1991 : भाजपा के राकेश सोनकर

    1993 : भाजपा के राकेश सोनकर

    1996 : भाजपा के राकेश सोनकर

    2002 : कांग्रेस के संजीव दरियावादी

    2007 : कांग्रेस के संजीव दरियावादी

    2012 : सपा के इरफान सोलंकी

    2017 : सपा के इरफान सोलंकी

    2022: सपा के इरफान सोलंकी

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