Move to Jagran APP

दुनिया को भारत बताएगा, कितनी तेजी से ब्रह्मांड को निगल रहा कृष्ण छिद्र यानी Black Hole

आइआइटी ने इसरो को भेजी रिपोर्ट जल्द ही सटीक आंकड़े सामने होंगे।

By Edited By: Published: Tue, 28 Jan 2020 01:54 AM (IST)Updated: Tue, 28 Jan 2020 09:39 AM (IST)
दुनिया को भारत बताएगा, कितनी तेजी से ब्रह्मांड को निगल रहा कृष्ण छिद्र यानी Black Hole
दुनिया को भारत बताएगा, कितनी तेजी से ब्रह्मांड को निगल रहा कृष्ण छिद्र यानी Black Hole

कानपुर, [विक्सन सिक्रोडिय़ा]। कृष्ण छिद्र यानी ब्लैक होल के राज अपनी मु_ी में करने की कोशिश में आगे बढ़ चुका भारत जल्द ही दुनिया को यह भी बताएगा कि ब्लैक होल कितनी तेजी से ब्रह्मांड को निगल रहा है। ब्लैक होल ब्रह्मांड को निगल रहा है, यह तथ्य अंतरिक्ष विज्ञान स्थापित कर चुका है, लेकिन किस गति से, यह सबसे पहले भारत दुनिया को बताने जा रहा है। स्वदेशी सेटेलाइट एस्ट्रोसेट के जरिये देश के वैज्ञानिकों ने यह क्षमता अर्जित कर ली है। अब केवल अर्जित आंकड़ों की गणना शेष है, जिसके लिए विशेष मॉडल विकसित किया जा रहा है। प्रोजेक्ट से जुड़े आइआइटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने अहम जानकारी साझा करते हुए इसे भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान की बड़ी उपलब्धि करार दिया है।

loksabha election banner

आइआइटी की टीम ने तैयार किया मॉडल

ब्लैक होल के रहस्य से पर्दा उठाने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गनाइजेशन, इसरो) ने 2015 में एस्ट्रोसेट उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित किया गया था। इस प्रोजेक्ट में कानपुर स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, आइआइटी), टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआइएफआर) और इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनामी एंड एस्ट्रोफिजिक्स की टीमें भी इसरो के साथ जुड़ी हुई हैं। आइआइटी कानपुर के एस्ट्रोफिजिक्स विभाग की टीम ने इस दिशा में एक और उन्नत गणितीय मॉडल तैयार किया है, जिसे परिमार्जित किया जा रहा है।

सेटेलाइट से जोड़ा गया था उपकरण

कानपुर आइआइटी के प्रोफेसर जेएस यादव का बनाया हुआ और टीआइएफआर में विकसित एक्स-रे डिटेक्टर सॉफ्ट एक्स-रे टेलीस्कोप व लार्ज एरिया एक्स-रे प्रोपर्शनल काउंटर नामक विशेष उपकरण एस्ट्रोसेट सेटेलाइट में जोड़ा गया था। यही दोनों उपकरण ब्लैक होल संबंधी डेटा भेज रहे हैं। ब्लैक होल से निकलने वाली ऊर्जा से उत्सर्जित पराबैंगनी किरण, एक्स किरण और गामा किरण संबंधी आकड़े इनमें अहम हैं। इसरो ने इन आकड़ों के अध्ययन की जिम्मेदारी आइआइटी कानपुर के एस्ट्रोफिजिक्स विभाग के प्रो. पंकज जैन को दी है।

ब्लैक होल में तेजी से समा रहे द्रव्यमान

आकड़ों के अध्ययन से पता चला है कि ब्लैक होल में तेजी से समा रहे द्रव्यमान के कारण बनी डिस्क से निकलने वाली ऊर्जा एक्स किरण की प्रकृति बदलने की कारक है। इसके पीछे ब्लैक होल में द्रव्यमान के समाने से हो रही आतरिक अभिवृद्धि की त्रिच्या और अभिवृद्धि की दर का संबंध प्रमुख कारण है। प्रो. जैन ने बताया कि सेटेलाइट से इस संबंध में प्राप्त तमाम सूचनाओं-आकड़ों की गणना अब तक सामान्य गणितीय मॉडल से की जा रही थी, लेकिन अब सटीक गणना के लिए एक अन्य उन्नत गणितीय मॉडल विकसित किया जा रहा है। ब्लैक होल के क्षेत्र में वषरें से अध्ययन करने वाले द इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स पुणे के प्रो. रंजीव मिश्रा व पीएचडी स्कॉलर दिव्या रावत ने भी इस अध्ययन में अहम योगदान दिया है।

ऐसे पता चलेगा ब्लैक होल का सच 

ब्रह्मांड में घूम रहे सूर्य से दस गुना बड़े ब्लैक होल जीआरएस1915+105 से उत्सर्जित एक्स किरणों के अध्ययन से पता चला है कि वह ब्लैक होल के इर्द-गिर्द बनी डिस्क के आतरिक क्षेत्र से उत्पन्न हो रही हैं। एक निश्चित समय अंतराल में इसके उत्सर्जन, तीव्रता और व्यवहार में बदलाव हो रहा है। इस बदलाव की गति द्रव्यमान के ब्लैक होल में समा जाने की गति के सापेक्ष है। हम इसकी सटीक गणना करने में जुटे हैं। प्राथमिक रिपोर्ट इसरो को भेजी जा रही है। भारत दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया है, जिसने यह क्षमता अर्जित की है। अभी तक किसी देश ने ऐसा परीक्षण नहीं किया है। जल्द ही सटीक आंकड़े सामने होंगे। -प्रो. पंकज जैन, आइआइटी कानपुर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.