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    फल-सब्जियों को कई दिन तक सुरक्षित रखेगा हाईटेक कोल्ड स्टोरेज, फसल कटने के बाद कई फीसद रुकेगा नुकसान

    By Abhishek VermaEdited By:
    Updated: Mon, 30 May 2022 04:38 PM (IST)

    पुणे स्थित प्याज एवं लहसुन अनुसंधान निदेशालय की ओर से हाईटेक कोल्ड स्टोरेज का निर्माण किया गया है। यह ऐसी तकनीक होगी जिसके जरिए फसल के लिए जरूरी तापमा ...और पढ़ें

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    सीएसए में आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में निदेशालय के निदेशक ने दी जानकारी।

    कानपुर, जागरण संवाददाता। महाराष्ट्र के पुणे स्थित प्याज एवं लहसुन अनुसंधान निदेशालय के विज्ञानियों ने एक एेसा कोल्ड स्टोरेज विकसित किया है, जो फल व सब्जियों के मुताबिक तापमान, आर्द्रता व हवा को नियंत्रित कर कई दिन तक संरक्षित रखेगा। इस कोल्ड स्टोरेज में एक साथ विभिन्न फसलें रखी जा सकेंगीं। जल्द ही इस कोल्ड स्टोरेज की तकनीक ट्रांसफर करके देश भर में निर्माण शुरू कराया जाएगा, ताकि फसल कटने के बाद होने वाले 40 से 50 फीसद नुकसान को रोका जा सके...। सीएसए विश्वविद्यालय में एएसएम फाउंडेशन की ओर से जलवायु परिवर्तन एवं उद्यान फसलों के विकास पर आधारित राष्ट्रीय कार्यशाला में निदेशालय के निदेशक डा. मेजर सिंह ने यह जानकारी दी।

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    कार्यशाला के दूसरे दिन करीब 60 विज्ञानी व शोधार्थियों ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए। विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन से फसलों को बचाने के बारे में व्याख्यान दिए। डा. मेजर सिंह ने बताया कि देश में पैदा हो रहे प्याज का 45 से 50 फीसद हिस्सा संरक्षण के अभाव में बर्बाद हो जाता है और इससे हर वर्ष 10 हजार करोड़ का नुकसान हो रहा है। इसे रोकने के लिए उन्होंने टीम के साथ मिलकर खास कोल्ड स्टोरेज तैयार किया है। इसे क्षमता के अनुसार छोटा या बड़ा किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि प्याज को कई दिन तक सुरक्षित रखने के लिए 25 से 27 डिग्री तापमान 60 फीसद से कम आर्द्रता व तेज हवा की जरूरत होती है। इसी तरह सेब के लिए शून्य डिग्री तापमान की, केले के लिए 15 डिग्री तापमान की जरूरत होती है। बैंगन, टमाटर आदि उद्यान सब्जियों के लिए भी अलग-अलग तापमान की जरूरत होती है। उनके कोल्ड स्टोरेज में बनाए गए विभिन्न सेक्शन में प्याज, लहसुन, सेब, अंजीर, आलू, बैंगन आदि फसलों के हिसाब से अलग-अलग तापमान, आर्द्रता व हवा को नियंत्रित किया जा सकता है। 

    इससे उद्यान फसलें लंबे समय तक खाने योग्य होंगी और फसलों की बर्बादी रुकेगी। इस कोल्ड स्टोरेज में शून्य से लेकर 40 डिग्री तक तापमान को नियंत्रित किया जा सकेगा। इसकी लागत भी आम कोल्ड स्टोरेज के बराबर है। टीम अब गांवों के लिए छोटे कोल्ड स्टोरेज बना रही है। प्रोटोटाइप विकसित होते ही उसे पेटेंट कराया जाएगा। यही नहीं, संस्थान की ओर से प्याज की नौ व लहसुन की दो नई प्रजातियां भी विकसित की गई हैं, जिनमें बंपर पैदावार होती है। हरियाणा के डायरेक्टर जनरल हार्टिकल्चर डा. अर्जुन सिंह ने बताया कि किसानों को फसलों की नई प्रजातियों, ड्रिप सिंचाई, संरक्षित खेती, कौशल प्रशिक्षण देने की जरूरत है।

    जैविक खेती से जलवायु परिवर्तन में भी लहलहाएंगी फसलें

    लखनऊ के रहमानखेड़ा स्थित केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के प्रधान विज्ञानी डा. आरए राम ने बताया कि फसलों को जलवायु परिवर्तन से बचाने के लिए किसानों को जैविक व प्राकृतिक खेती करनी चाहिए। उन्होंने बताया कि जैविक खेती से मिट्टी में पोषक तत्वों जिंक, कापर, बोरान, आयरन, मोलिबेडनम, मृदा कार्बन आदि की मात्रा संतुलित रहती है। यही नहीं बरसात का पानी भी फसलों की जड़ों के माध्यम से संरक्षित होता है और जलवायु परिवर्तन का फसलें खुद डटकर सामना करती हैं। वहीं रसायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल होने से मिट्टी वर्षा जल को नहीं सोख पाती है। पोषक तत्व असंतुलित होने लगते हैं और भूमि बंजर होने लगती है। उन्होंने किसानों को जैविक विधि से एक साथ तीन-चार फसलें लेने और मेड़ पर पेड़ लगाने की भी सलाह दी, ताकि ग्रीन हाउस गैसों में कमी आए। उन्होंने बताया कि प्रदेश में 25 फीसदी जंगल जरूरी है, लेकिन केवल पांच से छह प्रतिशत है।

    मलिहाबाद में इस बार कम हो रहा आम, किसान परेशान

    डा. आरए राम ने यह भी बताया कि इस वर्ष जलवायु परिवर्तन की वजह से लखनऊ के मलिहाबाद में आम की पैदावार कम होने की आशंका है। करीब 25 फीसद तक कमी आ सकती है। जो फसल तैयार हो रही है, उसके स्वाद, फलों के आकार, गूदे व रंग आदि में अंतर है। रसायनिक कीटनाशकों के ज्यादा प्रयोग से नए रोग आ रहे हैं। पिछले दो वर्ष से फल भेदी कीट ज्यादा आ रहे हैं। इनका उपचार कराने की कोशिश की जा रही है। किसान रसायन का इस्तेमाल करते हैं तो मित्र कीट भी नष्ट हो जाते हैं और फसल में भी रसायन का प्रभाव हो सकता है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में आम की 1100 प्रजातियां हैं, जिसमें से अरुणिमा और अंबिका प्रजाति तीन वर्ष पूर्व विकसित हुई थी। इस प्रजाति के आम बैंगनी और लाल रंग के होते हैं। विदेश में काफी मांग है।