लाखों रुपये की लागत से बने स्वास्थ्य उपकेंद्र सुरक्षित जच्चा बच्चा व परिवार नियोजन योजनाओं को मुंह चिढ़ा रहे
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत बने 43 स्वास्थ्य उपकेंद्र अनदेखी का शिकार उपकेंद्रों में नहीं रहती एएनएम बंधते मवेशी खड़ी झाडिय़ां हवा में स्वास्थ्य सेवाएंइसके बाद भी एएनएम रात में मिलना तो दूर दिन में भी नजर नहीं आती।
कानपुर, जेएनएन। केंद्र और प्रदेश सरकार भले ही स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने का दावा कर रही हों, लेकिन बिधनू ब्लाक में आकर तमाम दावे हवा हवाई होते नजर आ रहे है। यहां राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत बनाए गए 43 स्वास्थ्य उपकेंद्र अनदेखी का शिकार होकर खंडहर में तब्दील हो रहे हैं। इन उपकेंद्रों को एएनएम का इंतजार बना रहता है। जबकि इन उपकेंद्रों में चैबीस घंटे स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने के लिए एएनएम आवास भी बनाए गए थे। इसके बाद भी एएनएम रात में मिलना तो दूर दिन में भी नजर नहीं आती। नतीजा लाखों रुपये की लागत से बने ताला बंद स्वास्थ्य उपकेंद्र सुरक्षित जच्चा बच्चा व परिवार नियोजन जैसी योजनाओं को मुंह चिढ़ा रहा हैं।
बिधनू विकास खंड के 59 ग्राम पंचायतों के 43 गांवों में केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) जो अब राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत 6 -10 लाख रुपये की लागत से स्वास्थ्य उपकेंद्रों का निर्माण कराया गया था। उद्देश्य था कि ग्रामीणों को चौबीस घंटे समय पर टीकाकरण, प्रसव, एवं अन्य प्राथमिक चिकित्सा सेवा उपलब्ध हो सके। साथ ही गांव में बीमारी से बचाव के लिए समय समय पर दवा का छिड़काव हो सके और कुओं में क्लोरीन डाली जाए। जिसके लिए इन उपकेंद्रों में एनएम और सहायिका को नियुक्त किया गया था। सरकारी निर्देश है कि इन उपकेंद्रों पर एएनएम दिन में ड्यूटी के साथ ही साथ रात में भी विश्राम करें, ताकि हर समय जरूरतमंदों को चिकित्सा सुविधा मुहैया हो सके। हालत यह है कि यहां रात्रि विश्राम की बात दूर, दिन में ही ताला बंद रहता है, जिससे मरीजों को भटकना पड़ता है। अनदेखी के शिकार कुछ उपकेंद्रों में मवेशी बांधे जा रहे हैं, कुछ में झाड़ी खड़ी होने से जंगल में तब्दील हो चुके हैं। ऐसी स्थित में ग्रामीण प्रसूताओं और जच्चा बच्चा को 15 से 20 किलोमीटर दूर स्थित सीएचसी का या फिर नॄसगहोम का सहारा लेना पड़ता है।
वेतन 50 हजार ड्यूटी 12 दिन
43 उपकेंद्रों में नियुक्त एएनएम का वेतन 35 हजार से 50 हजार प्रति माह है, जिस पर उन्हेंं उपकेन्द्र के क्लीनिक पर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने केलिए प्रति दिन उपलब्ध होना होता है। साथ ही रात्रि विश्राम का भी निर्देश है। इसके उलट एएनएम केवल सप्ताह में तीन दिन टीकाकरण के लिए काम पर होती है, जिसके बाद वह नजर नहीं आती। टीकाकरण भी उपकेंद्र पर न होकर कभी अशाबहू या प्राधान के घर होता। इस रवैये से 43 एएनएम सरकार से प्रति माह करीब 21.50 लाख रुपया 12 दिन काम करके ले रहीं हैं।
तीन करोड़ रुपये की लागत से तैयार उपकेंद्र निष्प्रयोज्य
स्वास्थ्य विभाग ने हर गांवों में सुरक्षित जच्चा बच्चा व अन्य स्वस्थ्य सेवाओं के उद्देश्य से सात लाख प्रति उपकेंद्र के हिसाब से लगभग तीन करोड़ रुपये खर्च कर 43 स्वास्थ्य उपकेंद्र बनाये थे। जिनकी विभाग देखरेख तो कर नहीं पाया और सभी उपकेंद्र खंडहर में तब्दील होने लगे। इसके बाद भी बीते पांच वर्षों में घुरुआखेड़ा, कोरियां, हरबसपुर, पलरा गांव में 10 लाख रुपये प्रति उपकेन्द्र की लागत से चार नए उपकेंद्रों को बनाकर तैयार करा दिया। ऐसे में स्वास्थ्य योजनाओं के नाम पर सरकार के पैसे का दुरुपयोग होता नजर आ रहा है।
अधिकांश उपकेंद्र गांव के बाहर बने हुए है। जिसकी वजह से एएनएम उपकेंद्र में रुकने से कतराती हैं। अधिकांश एएनएम हर रोज दिन में उपकेंद्र में। पहुंचती हैं। शेष न खुलने वाले उपकेंद्रों की जांच की जाएगी।
- एसपी यादव, चिकित्साधीक्षक बिधनू
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