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    सनातन, संस्कृति और संस्कार... हरतालिका तीज, कानपुर में इसका खास महत्व

    कानपुर में हरतालिका तीज का पर्व उत्साह और श्रद्धा से मनाया गया। सुहागिन महिलाओं ने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखा और विशेष पूजा-अर्चना की। मंदिरों और पार्कों में धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए गए जिनमें भजन-कीर्तन और नृत्य शामिल थे। मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए पहली बार यह व्रत रखा था।

    By shiva awasthi Edited By: Anurag Shukla1Updated: Wed, 27 Aug 2025 05:42 PM (IST)
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    कानपुर में हरितालिका तीज के दौरान भगवान शिव और पार्वती की पूजा।

    शिवा अवस्थी, जागरण, कानपुर। हरतालिका तीज... संस्कृति, संस्कार और सनातन के गौरव का त्योहार। कानपुर के ग्रामीण क्षेत्रों से बुंदेलखंड के जिलों तक उत्साह व श्रद्धा के साथ निर्जला व्रत के साथ पति की लंबी उम्र के लिए पूजा-अर्चना करतीं महिलाएं। अपार्टमेंट, घरों से लेकर पार्कों तक धार्मिक कार्यक्रम, नृत्य व सांस्कृतिक समारोह के आयोजन। इस साल हरतालिका तीज का व्रत 26 अगस्त को हुआ। मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए सबसे पहली बार इस व्रत को रखा था, तभी से परंपरा शुरू हो गई।

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    कानपुर के उत्तर-दक्षिण के मुहल्लों में अधिकांश आबादी ग्रामीणांचल से जुड़ी है। इसमें घाटमपुर, बिधनू, नर्वल, महाराजपुर, रूमा, चौबेपुर, बिल्हौर, शिवराजपुर, सचेंडी, रायपुर क्षेत्रों के ही लोग बसे हैं। इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्र के अधिकांश गांवों में माता पार्वती व भगवान शंकर की पूजा हरतालिका तीज पर होती है। पहले घरों पर परिवार की महिलाएं एकजुट होकर पूजन करती थीं, लेकिन अब धीरे-धीरे यह स्वरूप बदला है। अपार्टमेंट, पार्कों, मुहल्लों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में आयोजन होने लगे हैं।

    केशव नगर की प्रतिमा बाजपेई बताती हैं कि उनके घर के सामने पार्क व ओंकारेश्वर महादेव मंदिर परिसर में हरतालिका तीज पर बड़ी संख्या में महिलाएं हर साल आती हैं। भजन, पूजा-अर्चना के साथ प्रसाद वितरण होता है। तीज का व्रत पति की लंबी उम्र व परिवार के सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं। इसमें भक्ति गीत गाए जाते हैं। इस दौरान नृत्य भी होता है। यह भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला हिंदुओं का महत्वपूर्ण पर्व है।

    ऐसे महिलाएं करतीं पूजा-अर्चना

    आचार्य पवन तिवारी व गृहिणी स्वाति त्रिवेदी बताती हैं कि महिलाएं केले के पत्तों व फूलों से लकड़ी की चौकी पर अस्थायी मंडप पर मिट्टी या रेत से बनी भगवान शिव व माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित करती हैं। एक शिवलिंग बनाकर उसे कंटक, बिल्वपत्र व फूलों से सजाया जाता है। इन्हें 16 वस्तुओं में हलवा, चावल की खीर, पूड़ी, घी का दीपक, धूप, फूल आदि अर्पित किया जाता है। आटा व बेसन के पकवान आभूषण के रूप में मिट्टी से निर्मित भगवान शंकर व माता पार्वती को समर्पित किए जाते हैं।

    हरतालिका तीज व्रत कथा सुनने के साथ मंत्रों का जाप कर प्रतिमाओं की आरती होती है। रात भर जागकर भक्ति गीत गाए जाते हैं। सभी अनुष्ठान पूरे करने के बाद अगली सुबह व्रत तोड़कर बड़ों का आशीर्वाद लिया जाता है। बिना अन्न-जल ग्रहण किए उपवास से आंतरिक रूप से शुद्ध होने, अनुशासन व विश्वास बनाए रखने के साथ दिव्य स्त्री ऊर्जा की प्राप्ति होती है। विवाहित महिलाएं जीवनसाथी की सलामती की कामना, प्रेम, धैर्य व शक्ति प्राप्ति के लिए व्रत करती हैं। अविवाहित महिलाएं अच्छा जीवनसाथी पाने के लिए व्रत रखती हैं।

    व्रत वाले दिन से पहले की शाम को महिलाएं आम की लकड़ी का दातून करती हैं। मिठाई व पान भी खाती हैं। सेवई का सेवन भी करती हैं। महिलाओं के अनुसार, निर्जला व्रत के कारण पूर्व संध्या पर ऐसी वस्तुओं को खाते हैं, जिनसे शरीर ठंडा रहे व प्यास कम लगे। अधिक प्यास लगने वाले खानपान सामग्री से बचते हैं।