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    #Good News: कोरोना संक्रमण की गंभीरता पता करने में सीआरपी-एनएलआर जांच सस्ती और कारगर

    देश भर के विशेषज्ञों की राय में सीआरपी-एनएलआर जांचों से मरीज की स्थिति का पता आसानी से लग जाता है । बेवजह संक्रमितों की महंगी जांचें कराने से पीडि़त स्वजन पर आर्थिक बोझ ज्यादा पड़ रहा है ।

    By Abhishek AgnihotriEdited By: Updated: Sun, 16 May 2021 03:32 PM (IST)
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    संक्रमितों को महंगी जांच से मिलेगी राहत।

    कानपुर, [ऋषि दीक्षित]। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के कहर से आमजन बेहाल हैं। लोग मानसिक दबाव के साथ आर्थिक बोझ से टूट रहे हैं। उनकी समस्या देख केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सेंटर फॉर डिजास्टर कंट्रोल मैनेजमेंट के डिजास्टर मैनेजमेंट सेल ने राहत के हाथ बढ़ाए हैैं। देशभर के नामचीन विशेषज्ञों को वेबिनार के जरिए एक मंच पर लाकर कोरोना संक्रमितों की खून से जुड़ी विभिन्न जांचों पर चर्चा कराई जा रही है। इसमें मंथन कर विशेषज्ञ चिकित्सकों को संक्रमितों की बेवजह महंगी जांचें न कराने का आह्वïान कर रहे हैैं। बताया जा रहा है कि संक्रमण की गंभीरता पता करने में सी-रिएक्टिव प्रोटीन (सीआरपी) और न्यूट्रोफिल-लिंफोसाइट रेशियो (एनएलआर) जांचें सस्ती व कारगर जांचें हैं।

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    महंगे ब्लड टेस्ट की जरूरत नहीं

    अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स दिल्ली) के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया, स्वास्थ्य सचिव लव अग्रवाल, एम्स दिल्ली के डॉ.मनीष तनेजा, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के माइक्रो बायोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रो.डॉ. विकास मिश्रा समेत देश भर के विशेषज्ञ एवं माइक्रो बायोलॉजिस्ट ने जांचों को लेकर हुए शोध पर चर्चा की। कहा गया कि देश भर से लगातार शिकायतें मिल रही हैं कि कोरोना संक्रमण की गंभीरता का पता लगाने के लिए डॉक्टर खून के कई महंगे टेस्ट करा रहे हैं, जिनकी कोई जरूरत नहीं है। संक्रमितों के स्वजन को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। संक्रमण की गंभीरता को लेकर सुझाव भी दिए गए।

    शोध में सामने आईं कई बातें

    वेबिनार में शामिल रहे जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के डॉ.विकास मिश्र ने बताया कि कोरोना को लेकर अब तक हुए शोध में पता चला है कि देश में 80 फीसद मरीजों में मामूली लक्षण (माइल्ड सिम्टम्स) और 15 फीसद में मध्यम लक्षण (माड्रेट सिम्टम्स) होते हैं। महज पांच फीसद में ही गंभीर लक्षण (सीवियर सिम्टम्स) होते हैं, जिनमें साइटो कॉइन स्टॉर्म बनने से प्रतिरोधक क्षमता ही शरीर की दुश्मन बन जाती है। वहीं, कई बार संक्रमण के बाद भी पता नहीं चलता है। इसलिए डॉक्टर संक्रमित की एलडीएच, सिरम फेरेटिन, डी-डाइमर, इंटर ल्यूकिन-6 (आइएल-6) आदि महंगी जांचें कराते हैं। विशेषज्ञों का सुझाव है कि पैथालॉजिकल, रेडियोलॉजिकल एवं क्लीनिकल लक्षण के आधार पर ही संक्रमित का इलाज करें।

    उन्होंने बताया कि विशेषज्ञों का कहना है कि शरीर में इंफ्लामेशन (सूजन) का पता लगाने के लिए कारगर एवं सस्ती जांच सीआरपी है, जिसका रिजल्ट दो घंटे में आ जाता है। यह अच्छा बायोमार्कर है। इसके साथ कंप्लीट ब्लड काउंट (सीबीसी) के टीएलसी का न्यूट्रोफिल-लिंफोसाइट अनुपात (एनएलआर) देखना भी जरूरी है। सीआरपी की शुरूआती जांच आइएल-6 के बराबर ही होती है।

    इस पर ध्यान जरूरी

    -संक्रमित को भर्ती करें तो सीआरपी एवं एनएलआर की जांच जरूर कराएं।

    -अगर एनएलआर तीन से कम आए तो मरीज स्वत: ठीक हो जाएगा।

    -एनएलआर जांच में तीन से अधिक होने पर मरीज की स्थिति गंभीर बताता है।

    -पांच से अधिक सीआरपी आने पर मध्यम स्थिति है, संक्रमित की निगरानी जरूरी।

    -10 से अधिक सीआरपी आने पर गंभीर स्थिति है, संक्रमित हाईरिस्क में है।

    ऐसे करें निगरानी

    -मध्यम लक्षण में हर 72 घंटे में सीआरपी जांच कराएं।

    -गंभीर लक्षण में हर 48 घंटे में सीआरपी जांच जरूर कराएं।

    -स्टेरॉयड थेरेपी में भी हर 48 घंटे में सीआरपी जांच कराते रहें।

    -अचानक तबीयत गड़बड़ाने पर भी 48 घंटे में सीआरपी जांच कराएं।

    ये बरतें सावधानी

    -ऑक्सीजन का लेवल लगातार गिर रहा हो। ऐसे में आइएल-6 जांच कराना जरूरी है। इससे फेफड़े की स्थिति का पता चलता है। आइएल-6 बढऩे पर वेंटिलेटर की जरूरत होती है।

    ये है कीमत जांच

    कीमत - (रुपये)

    सीबीसी : 250

    सीआरपी : 250