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    साहित्य से जुड़ाव ने कानपुर में रोके डॉ. गिरिराज किशोर के पांव, कुछ यूं साहित्यकारों ने बयां किया शोक

    सूटरगंज स्थित बहन सत्या के घर पर रहे देश भर के तमाम बड़े साहित्यकार आते रहे।

    By AbhishekEdited By: Updated: Mon, 10 Feb 2020 03:26 PM (IST)
    साहित्य से जुड़ाव ने कानपुर में रोके डॉ. गिरिराज किशोर के पांव, कुछ यूं साहित्यकारों ने बयां किया शोक

    कानपुर, जेएनएन। डॉ. गिरिराज किशोर जब कानपुर आए थे तो उनकी आयु 30 वर्ष भी नहीं थी। उस समय तक वह मुजफ्फरनगर, आगरा, प्रयागराज समेत कई जिलों में रह चुके थे लेकिन जब कानपुर आए तो यहीं के होकर रह गए। उस समय साहित्य के क्षेत्र में यहां ऋषिकेश, कामतानाथ, प्रकाश बाथम जैसे बड़े नाम थे, इसलिए गिरिराज किशोर का मन यहीं रम गया। धीरे-धीरे वह सामाजिक संगठनों में जुड़ गए, इसीलिए साल 1997 में सेवानिवृत होने के बाद भी वह कानपुर में ही रहे।

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    हरेंद्र नाथ ने लिखी जीवन पर पुस्तक

    साहित्यकारों के बीच वह इतने चर्चित थे कि पिछले वर्ष उनके जीवन पर हरेंद्र नाथ भदौरिया ने एक पुस्तक लिखी थी। इसका विमोचन राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने किया था। इस पुस्तक का नाम ङ्क्षहदी तपस्वी पद्मश्री गिरिराज किशोर व्यक्तित्व और कृतित्व है। 1970 के करीब डॉ. गिरिराज किशोर के करीब आने वाले हरेंद्र सिंह के मुताबिक कानपुर के साहित्यकारों से जुड़ाव ने ही उनके कदम यहां रोक लिए थे। सूटरगंज में उनकी बहन सत्या गुप्ता का घर है जहां वे अंत तक रहे, यहीं साहित्यकारों का जमावड़ा लगता था।

    सामाजिक रूप से भी थे वह सक्रिय

    सामाजिक रूप से भी वह बहुत सक्रिय थे। वह कानपुर नागरिक मंच, गांधी शांति प्रतिष्ठान, गांधी विचार मंच, लोक सेवक मंडल, उत्तर प्रदेश खादी ग्र्रामोद्योग महासंघ, प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े हुए थे। वह 11 अक्टूबर 2019 को गांधी विचार केंद्र के कार्यक्रम में आखिरी बार शामिल हुए थे। 20 अक्टूबर घर में फिसलने से फ्रैक्चर के कारण वे किसी कार्यक्रम में शामिल न हो सके।

    मुंशी प्रेमचंद्र के पुत्र को कराया भोजन

    हरेंद्र सिंह के मुताबिक मुंशी प्रेमचंद्र के पुत्र अमृत राय कानपुर में मर्चेंट चैंबर में एक कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि आए थे। वह आइआइटी गेस्ट हाउस में रुके थे। उस समय डॉ. गिरिराज आइआइटी में ही रहते थे। अमृत राय के लिए भोजन की तलाश हुई लेकिन भोजन नहीं मिला। सामने ही डॉ. गिरिराज का घर था। उनसे यह समस्या बताई तो उन्होंने तुरंत उन्हें अपने घर भोजन पर बुला लिया।

    साहित्यकारों ने जताया शोक

    • पहला गिरमिटिया गिरिराज जी के शोधपरक लेखन की मिसाल है। उनका व्यक्तित्व भी उनके लेखन के समान ही बड़ा था। उनका जाना एक त्रासदी से कम नहीं, खासकर कानपुर के लिए जहां के वे मान थे। -योगेंद्र मोहन गुप्त, चेयरमैन जागरण समूह
    • गिरिराज जी का जाना मेरी निजी क्षति है। 50 बरसों का साथ था। खुशकिस्मत मानता हूं कि उनकी रहनुमाई और उनका स्नेह बराबर मिलता रहा। उनसे बहुत कुछ सीखा। वे बहुत बड़ा व्यक्तित्व थे। इस शहर की शान थे। -डॉ. राजेंद्र राव, साहित्यकार
    • साहित्य के प्रति समर्पित साहसी, मूल्यपरक लेखक को आज हमने खो दिया। वे सोशलिस्ट गांधीवादी विचारों से ओत-प्रोत लेखक थे। उनका जाना एक नस्ल का खत्म होना है। -डॉ. प्रेम कुमार, कथाकार
    • गिरिराज किशोर जी ने हिंदी साहित्य एवं भाषा की निष्पृह सेवा की है। उनके कथा साहित्य पर कई विश्वविद्यालयों में शोध हुए हैं और पाठ्यक्रम में पढ़ाए जा रहे हैं। उन्होंने कई ङ्क्षहदी भाषी प्रदेशों में हिंदी विकास का काम किया। -डॉ. सुरेश अवस्थी, साहित्यकार
    • वह हमारे सरपरस्त थे, उनके जाने से एक बड़ा सूनापन आया है। हमारे जैसे युवा कथाकारों को उन्होंने बहुत सहारा दिया। किसी भी कहानी को लिखने से पहले उनसे चर्चा करता था। -राजकुमार सिंह, कथाकार।
    • वह कानपुर में ऐसी धुरी थे जिसने सभी विचार के लोगों को आपस में जोड़ रखा था। कानपुर ने आज बहुत कुछ खो दिया है। वह बड़े लेखक ही नहीं बड़े इंसान भी थे। -डॉ. खान अहमद फारुक, उर्दू प्रोफेसर, हलीम मुस्लिम कॉलेज
    • कानपुर का नाम लेते ही कुछ लोगों का नाम जेहन में आता है, उसमें से एक नाम आज अनुपस्थित हो गया। ऐसे समय में जब लोग साहस के साथ बात नहीं कह सकते, उनकी कमी बहुत खलेगी। -वीरू सोनकर, साहित्यकार।
    • हम अनाथ सा महसूस कर रहे हैं। साहित्य के क्षेत्र में देश का इतना बड़ा नाम होने के बाद भी वह बिल्कुल आम आदमी की तरह रहते थे। हम उनकी अनुमति से कार्यक्रम करते थे। -सुरेश गुप्ता, संयोजक, कानपुर नागरिक मंच
    • वे चौराहों पर मेरे नाटक देखने आते थे। अंत में मेरी मुट्ठी में रुपये देकर चले जाते थे। मेरे कविता चित्र उनके ही आशीर्वाद से नई विधा बन गए। उन्होंने वास्तव में गांधी को जिया है। -संजीबा, रंगकर्मी।
    • वह शहर के सिरमौर थे। उनका उपन्यास पहला गिरमिटिया एक उपन्यास ही नहीं शोधपत्र भी है। वह जुझारू और आत्मसम्मान वाली शख्सियत थे। उनकी कमी पूरी नहीं हो सकती। -डॉ. कमल मुसद्दी, कवयित्री
    • हम लोग गिरिराज जी से बेहद जुड़े रहे। हमारे लिए बड़े शान की बात थी कि हम उनके शहर में रहते हैं। अब वे हमारे दिलों में रहेंगे, आज कानपुर के साहित्यकार अनाथ हो गए। -संध्या त्रिपाठी, कहानीकार
    • मैं आज बहुत उदास हूं, कुछ कहने को नहीं है। गिरिराज जी कानपुर के काबा थे। देश का कोई बड़ा साहित्यकार यहां आता था तो उनके यहां रुकता था या उनसे मिलकर ही जाता था। -अमरीक सिंह दीप, साहित्यकार
    • कानपुर में रहते हुए कभी यह नहीं लगा कि साहित्य के लिहाज से कमतर किसी शहर में रहता हूं। आज गिरिराज जी के निधन से हमारा अभिमान छिन गया। वह लेखक ही नहीं बड़े व्यक्ति भी थे। -डॉ. पंकज चतुर्वेदी, साहित्यकार
    • वह बहुत बड़े साहित्यकार थे, इसलिए साहित्य का तो नुकसान हुआ ही, हम लोगों के वे मार्गदर्शक थे। कहीं भी हम उनकी आड़ में खड़े हो जाया करते थे। हमें उन पर नाज था। -अनीता मिश्रा, लेखिका