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    Ganesh Chaturthi: घंटाघर... श्रद्धानंद पार्क से घर-घर गणपति बप्पा, जानें कानपुर में कैसे शुरू हुआ ये उत्सव

    कानपुर में गणेश उत्सव की शुरुआत लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के अनुयायियों ने 1921 में की थी। महाराष्ट्र मंडल कानपुर ने 1924 में विधिवत स्थापना की और खलासी लाइन में गणेश उत्सव का आयोजन शुरू किया। मंडल शिक्षा के क्षेत्र में भी योगदान दे रहा है। 2024 में शताब्दी समारोह का आयोजन हुआ और अब 27 अगस्त से 6 सितंबर 2025 तक 102वां गणेशोत्सव मनाया जाएगा जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे।

    By Jagran News Edited By: Anurag Shukla1Updated: Wed, 27 Aug 2025 05:58 PM (IST)
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    कानपुर में गणेश उत्सव की धूम है।

    जागरण संवाददाता, कानपुर। विघ्न हर गणराज गजानन... जय गणपति महाराज। जो विघ्नहर्ता हैं, गणों के राजा हैं, सबको एकजुट करते हैं। गणपति मन-मन में, जन-जन में रचे-बसे हैं। बात औद्योगिक नगरी कानपुर यानी अपने कंपू में गणेश उत्सव की है पर उससे पहले थोड़ा पीछे चलिए। यूं तो गणेश उत्सव मनाने की परंपरा लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की अगुवाई में वर्ष 1893 में महाराष्ट्र में शुरू हुई थी। वहीं से गणपति देश भर में घर-घर तक पहुंच गए। कानपुर में उन्हीं तिलक के अनुयायियों ने वर्ष 1921 में गणपति महोत्सव की नींव डाली थी। पढ़िए, महाराष्ट्र भवन सोसायटी के अध्यक्ष श्रीकांत डबली का आलेख...।

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    वायसराय लार्ड कर्जन ने "फूट डालो और राज करो" की नीति अपनाकर जब आजादी के आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश की, तो राष्ट्रीय जागरण का अभियान शुरू हुआ। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने महाराष्ट्र में सार्वजनिक गणेशोत्सव के माध्यम से समाज को संगठित किया। नाना साहेब पेशवा को अंग्रेज सरकार ने जब पेंशन देकर पूना (पुणे) से निष्कासित किया तो वह लगभग 300 महाराष्ट्रियन परिवारों के साथ बिठूर आकर बस गए। तात्या टोपे, जिनके वंशज विजय टोपे अब भी बिठूर में रहकर कुल परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। लोकमान्य तिलक के आंदोलन की प्रेरणा से पहली बार सुतरखाना घंटाघर स्थित गणेश मंदिर पर "सार्वजनिक गणेशोत्सव" का आयोजन किया।

    नगर के प्रमुख व्यवसायी ठाकुर प्रसाद व रामचरण के साथ महाराष्ट्रियन परिवारों ने उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया। कालांतर में वर्ष 1924 में महाराष्ट्र मंडल कानपुर की विधिवत स्थापना की गई। सबसे पहले शिवाला के पास श्रद्धानंद पार्क में जमीन लेकर गणेश उत्सव का आयोजन किया जाने लगा। परंतु जगह की कमी होने की वजह से वर्ष 1947 में खलासी लाइन में महाराष्ट्र मंडल की नींव पड़ी। इसके विशालकाय परिसर में गणेश उत्सव का आयोजन लगातार हो रहा है। पहले श्री गणेश मूर्ति महाराष्ट्र मंडल पूना से मंगाता रहा था, लेकिन अब यह मूर्ति ग्वालियर से मंगाई जाती है।

    महाराष्ट्र मंडल में शोभायात्रा, पूजन अनुष्ठान के साथ ही राष्ट्रभक्ति पैदा करने वाले कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते रहे हैं, जो अब तक बरकरार हैं। शास्त्रीय संगीत संध्या, मराठी नाटक, विविध गुण दर्शन इत्यादि कार्यक्रमों संग विशाल महाप्रसाद का भी आयोजन होता है। गणेश जी का प्रिय "मोदक" प्रसाद के रूप में दिया जाता है। महाराष्ट्र मंडल ने शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 1956 में "बाल मंदिर महाराष्ट्र मंडल स्कूल" स्थापित हुआ, जो यूपी बोर्ड से मान्यता प्राप्त है। अब भी सुचारु रूप संचालित है।

    1924 में स्थापित महाराष्ट्र मंडल वर्ष 2024 में 100 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में विशाल "शताब्दी समारोह" का आयोजन भी 17 से 19 फरवरी, 2024 के बीच कर चुका है। इसमें 100 वर्षों के इतिहास के साथ ही अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित हुए थे। इस समारोह का उद्घाटन बिहार के तत्कालीन राज्यपाल राजेंद्र अर्लेकर ने किया था। अध्यक्ष गणेश करकरे व महामंत्री विजय डहाणे की देखरेख में इस साल 102वां "सार्वजनिक श्री गणेशोत्सव" 27 अगस्त से छह सितंबर 2025 तक आयोजित हो रहा है। इसमें विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। श्री गणेश जी की स्थापना के दिन भक्तिमय "अभंग वारी कार्यक्रम" प्रस्तुत किया जाएगा।

    इसके साथ ही विविध गुणदर्शन, मराठी नाटक, विशाल महाप्रसाद, कराओके गीत, सुंदर कांड व महिलाओं का हल्दी कुंकू, विशेष रूप से पूना से आए कलाकारों द्वारा अहिल्या बाई होल्कर की त्रिशताब्दी वर्ष निमित्त नाटक "देवी" का मंचन होगा। छह सितंबर 2025 को शाम चार बजे श्री की मूर्ति के विसर्जन के साथ श्री गणेश उत्सव का समापन होगा।