Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Aamir Khan की PK Film की कहानी जैसे हैं इस नेता के विचार, सात बार रह चुके हैं विधायक Kanpur News

    पूर्व विधायक भगवती सिंह विशारद के एक झोले में पूरा मंदिर समाया है।

    By AbhishekEdited By: Updated: Mon, 25 Nov 2019 04:28 PM (IST)
    Aamir Khan की PK Film की कहानी जैसे हैं इस नेता के विचार, सात बार रह चुके हैं विधायक Kanpur News

    कानपुर, [जागरण स्पेशल]। मंदिर-मस्जिद को लेकर अपने देश में तमाम विवाद हैं। मगर, ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जो यह मानते हैं कि ईश्वर मंदिर मस्जिद में नहीं कर्म, संस्कार और मन में रहते हैं। ऐसा ही एक नाम है, उन्नाव की भगवंतनगर विधानसभा सीट से सात बार विधायक रहे भगवती सिंह विशारद का। उनके विचार बिल्कुल आमिर खान की फिल्म पीके की कहानी जैसे हैं, वह मानते हैं मंदिरों में भटकने से भगवान नहीं मिलते। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कभी नहीं रही कार, किराये के मकान में गुजारा जीवन

    आज भी विशारद जी जैसे रहते हैं, वह राजनीतिज्ञों के लिए एक सबक है। कानपुर के धनकुïट्टी मोहल्ले में किराए के मकान में रहने वाले विशारद जी ने जीवन भर पैदल व साइकिल पर घूम कर समाजसेवा की। उनके पास कभी कार नहीं रही। जिस घर में वह रहते हैं, उसे उनके पिता लक्ष्मण सिंह ने वर्ष 1939 में किराए पर लिया था। बेहद छोटे इस मकान में पांच बेटों व एक बेटी के साथ उन्होंने जीवन भर गुजर बसर किया।

    आज उनके साथ बड़े बेटे रघुवीर की पत्नी कमला, उनके पौत्र अनुराग, पौत्र वधू सुनीता, पर पौत्र अभिषेक और तीसरे नंबर के पुत्र नरेश सिंह, उनकी पत्नी चंदा रहते हैं। रघुवीर गांव में रहते हैं। आंगन के ठीक बगल में खाली पड़े बरामदे में विशारद जी तख्त पड़ा हुआ है। उनके पौत्र अनुराग बताते हैं, जब तक बाबा विधायक रहे, हाथ में एक थैला रखते थे। उसमें लेटर पैड और मुहर होती थी। किसी ने भी समस्या बताई तो खुद लिखकर मुहर लगाते और विभाग में दे आते थे।

    झोले में बसता है मंदिर

    ...दास कबीर जतन से ओढ़ी, ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया... कबीर दास की इन पंक्तियों को अपने राजनीतिक जीवन में उतारने वाले 98 वर्षीय पूर्व विधायक भगवती सिंह विशारद जी की सादगी और राजनैतिक संस्कार की चर्चा तो हमेशा होती है। बहुत कम लोग ही जानते हैं कि उनका पूरा मंदिर कभी छोटी सी टोकरी तो कभी एक झोले में बसता है। स्नान के बाद हर रोज झोले में रखे भगवान को बाहर निकालकर एक कुर्सी पर रखते हैं, पूजा करते हैं, फिर भगवान को झोले में रख देते हैं। वह कहते हैं, 'यही मेरा मंदिर है। भगवान मंदिर में नहीं दिल में बसते हैं, कर्म अच्छे होंगे तो वह खुद आपके पास आएंगे। मंदिरों में भटकने से भगवान नहीं मिलते।

    स्वतंत्रता आंदोलन में भी की भागीदारी

    23 सितंबर 1921 को उन्नाव के झगरपुर गांव में जन्मे भगवती सिंह विशारद के पिता लक्ष्मण सिंह अंग्रेज अफसर के यहां मजदूर थे। जूते पॉलिश करने से मना करने पर अंग्रेज अफसर ने उन्हें पेड़ से बांधकर पीटा गया तो 12 साल के भगवती के मन में अंग्रेजों के प्रति गुस्सा भर गया था। वह आजादी की लड़ाई में कूद गए। आजादी के बाद जीवनयापन के लिए वह कानपुर के जनरलगंज बाजार में कपड़े की दुकान में काम करने लगे। कर्मचारी हित में आवाज उठाकर राजनैतिक जीवन की शुरूआत की।

    1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से भगवंतनगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और जीते। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी खत्म हुई तो कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्होंने कई चुनाव लड़े। कई जीते तो कुछ हारे भी और सात बार विधायक रहे। राजनीति में शुचिता कम होते देख वर्ष 1991 से चुनाव लडऩा छोड़ दिया।