..तो बचेगा पानी और बढ़ेगा दाना
धरती की कोख से सूखते जा रहे जल को बचाने की मुहिम में धरतीपुत्र अहम भूमिका निभा सकते हैं। जरूरत सिर्फ किसानों को ठंडे दिमाग से सोचने की है। वह पारंपरिक सिंचाई के तौर-तरीकों को छोड़कर नई प्रणाली को अपना लें तो न सिर्फ सिंचाई का आधा पानी बचा लेंगे बल्कि कृषि उत्पादन भी डेढ़ गुना तक बढ़ जाएगा।
जागरण संवाददाता, कानपुर : धरती की कोख से सूखते जा रहे जल को बचाने की मुहिम में धरतीपुत्र अहम भूमिका निभा सकते हैं। जरूरत सिर्फ किसानों को ठंडे दिमाग से सोचने की है। वह पारंपरिक सिंचाई के तौर-तरीकों को छोड़कर नई प्रणाली को अपना लें तो न सिर्फ सिंचाई का आधा पानी बचा लेंगे बल्कि कृषि उत्पादन भी डेढ़ गुना तक बढ़ जाएगा।
देश की अधिकांश आबादी गांवों में रहती है। जल संरक्षण की दिशा में वहां से अच्छे परिणाम हासिल किए जा सकते हैं। अव्वल तो तालाब, पोखरों को बचाने की जरूरत है। इसके अलावा सिंचाई भी एक बड़ा मुद्दा है। किसान परेशान हैं कि सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता। पानी मिलता है तो उन्हें आबपासी (जल मूल्य) का बोझ भी उठाना पड़ता है। इन सारी स्थिति से किसान बच सकते हैं। जरूरत है कि वे खेतों की सिंचाई के लिए आधुनिक तकनीक के उपकरणों का इस्तेमाल करें।
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सिंचाई की इन विधियों से मिलेगा लाभ
- ड्रिप सिंचाई : इस तकनीक में खेत में तीन से चार इंच का पीवीसी पाइप डाला जाता है। फसल के मुताबिक निर्धारित फासले पर पाइप में छेद होते हैं। उनसे बूंद-बूंद पानी रिसकर पौधे की जड़ में पहुंचता है। इससे पचास से साठ फीसद तक पानी की बचत होती है और उत्पादन बढ़ जाता है। यह तकनीक औद्यानिक और औषधीय पौधों के लिए इस्तेमाल की जाती है।
- स्प्रिंकलर : इसमें तीन तरह के स्प्रिंकलर फसल के हिसाब से इस्तेमाल होते हैं। पोर्टेबल, माइक्रो और मिनी स्प्रिंकलर
पोर्टेबल स्प्रिंकलर- यह उपकरण बरसात की तरह खेत की सिंचाई करता है। एक स्थान से चालीस फीट तक का क्षेत्र सिंचित करता है। एक स्थान के बाद उसे दूसरे स्थान पर लगाकर वहां सिंचाई की जा सकती है।
माइक्रो स्प्रिंकलर- ड्रिप की तरह इसमें भी एक मेन पाइप लाइन डाली जाती है। उसमें से जगह-जगह डेढ़ से दो इंच के छोटे-छोटे आउटलेट पाइप निकले होते हैं। इनमें छोटे फव्वारे लगे होते हैं, जिनसे सिंचाई होती है। इस उपकरण का इस्तेमाल नाजुक पत्तियों वाली फसल के लिए मुफीद है।
मिनी स्प्रिंकलर- मिनी स्प्रिंकलर में भी छोटे फव्वारे होते हैं। इससे फसल को जरूरत का ही पानी मिलता है। इसका इस्तेमाल सब्जी की खेती के लिए मुख्य रूप से होता है।
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रेन गन सिस्टम : रेन गन में पानी का प्रेशर ज्यादा होता है। एक स्थान से तीस मीटर तक के क्षेत्र को सिंचित करता है। इसके फव्वारे से अन्य उपकरणों की तुलना में ज्यादा पानी निकलता है, लेकिन पारंपरिक विधि से सिंचाई में खर्च होने वाली पानी से आधा है। इसका इस्तेमाल गन्ना, मक्का और गेहूं जैसी फसलों के लिए होता है।
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80 से 90 फीसद सब्सिडी दे रही है सरकार
सिंचाई की इस विधि को बढ़ावा देने के लिए सरकार पूरा प्रयास कर रही है। उद्यान निरीक्षक हरीश चंद्र ने बताया कि इन सभी उपकरणों के समान लाभ हैं। पानी की पचास फीसद तक बचत होती है और हर फसल का उत्पादन डेढ़ गुना बढ़ जाता है। पौधे को जरूरत का ही पानी मिलता है। खरपतवार से निजात मिलती है और पौधे पानी की अधिकता से सड़ते भी नहीं हैं। इन उपकरणों की खरीद के लिए सरकार लघु सीमांत किसानों को 90 फीसद और सामान्य किसानों को 80 फीसद तक सब्सिडी दे रही है।
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