गुरु के एक थप्पड़ ने बना दिया मशहूर गायक, अभिजीत ने बयां किए वो यादगार पल
कानपुर के सेठ आनंदराम जयपुरिया स्कूल में स्व. प्रशांत चटर्जी की श्रद्धांजलि सभा में शिरकत करने पहुंचे गायक अभिजीत भट्टाचार्य पुरानी यादें ताजा करते हुए भावुक हो गए। उन्होंने युवाओं को गायकी के लिए खास मंत्र भी दिया।

कानपुर, जागरण संवाददाता। एक कलाकार का स्वाभिमान व आत्मसम्मान क्या होता है, ये गुरु प्रशांत चटर्जी की संगत से सीखने को मिला। वर्ष 1979 में प्रशांत दादा के एक थप्पड़ ने उन्हें मुंबई ही नहीं बल्कि संगीत के क्षेत्र में शीर्ष तक पहुंचाया। भावुक होते हुए ये बातें मशहूर पाश्र्व गायक अभिजीत भट्टाचार्य ने कहीं। वह यहां सेठ आनंदराम जयपुरिया स्कूल कैंट के सभागार में पूर्व छात्रों की ओर से संगीत गुरु स्व. प्रशांत चटर्जी की स्मृति में आयोजित श्रद्धांजलि व प्रार्थना सभा में शिकरत करने पहुंचे थे।
अभिजीत ने बताया कि करियर के शुरुआती दिनों में गुरु प्रशांत चटर्जी के साथ आर्केस्ट्रा ग्रुप में जाकर गाने गाता था। कानपुर में होने वाली रामलीला के मंच पर पहला गाना मेरे नैना सावन भादो, फिर भी मेरा मन प्यासा, गाकर सराहना बटोरी थी। स्कूल के संदीप महेंद्रा ने बताया कि प्रशांत चटर्जी की देन थी कि स्कूल में 100 पीस छात्र आर्केस्ट्रा समूह बना। हर्षिता चटर्जी, उप प्रधानाचार्य मधुश्री भौमिक, संजय अवस्थी, संतोष रहे।
वर्तमान समय का संगीत केमिकल मिश्रित : अभिजीत ने कहा, इस दौर का युवा बिना सीखे ही गायक बनना चाहता है। उसे इस मानसिकता को बदलना होगा। कड़ी मेहनत करनी होगी, उसके बाद ही मुकाम हासिल हो पाएगा। वर्तमान समय में संगीत अब एक क्लास तक ही सीमित रह गया है। संगीत केमिकल हो गया है, जिसमें अब संगीत की खुशबू नहीं रह गई है। मुझे खुशी है कि मैं इस प्रतिस्पर्धा में शामिल नहीं हूं। बोले, तीन साल बाद कानपुर आना हुआ है। जब कानपुर आता हूं तो यहां अच्छा लगता है। कानपुर की पहचान झकरकटी, काहूकोठी, बड़ा चौराहा, घंटाघर, परेड जैसे नामों से है, इसलिए इन नामों को न बदलने की इच्छा जताई। उन्होंने कहा कि वह दुनिया के जिस कोने में जाते हैं, कानपुर व अपने गुरु प्रशांत चटर्जी का जिक्र करना नहीं भूलते हैं।
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