चलो चलें जगन्नाथ मंदिर... मॉनसून से पहले टपकने वाली बूंदें दे देतीं है मौसम की सटीक जानकारी
गर्मी की छुट्टियों में लोग अक्सर घूमने जाते हैं। दैनिक जागरण ने गर्मी की छुट्टियां पड़ोस में पर्यटन नाम से एक श्रृंखला शुरू की है। इस कड़ी में आज हम आपको कानपुर के पास घाटमपुर में भगवान जगन्नाथ के प्राचीन मंदिर के बारे में बताएँगे। यह मंदिर मानसून के बारे में भी जानकारी देता है। मंदिर तक कैसे पहुंचे और किन बातों का ध्यान रखें यह भी बताया गया है।
गर्मी की छुट्टियां आते ही हर किसी का मन सुकून भरी जगहों पर घूमने का करता है। रोज के काम से ब्रेक लेकर खुद को तरोताजा करने का यह अच्छा मौका होता है। लोग अब दूरदराज की जगहों की बजाय अपने आस-पास के स्थलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। यह न केवल यात्रा के खर्च को कम करता है, बल्कि स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को भी समझने का अवसर प्रदान करता है।
ऐसे में दैनिक जागरण गर्मी की छुट्टियां, पड़ोस में पर्यटन कालम की शुरुआत कर रहा है। इसमें आपको अपने पड़ोस की ऐसी जगहों की जानकारी होगी, जहां अपनी छुट्टियों को यादगार बना सकते हैं। इस कड़ी में चलिए आज आपको लेकर चलते हैं घाटमपुर स्थित भगवान जगन्नाथ के प्राचीन मंदिर की यात्रा पर। पढ़िए, अंकुश शुक्ल की रिपोर्ट...
शहर और उससे सटे ग्रामीण क्षेत्रों में बने पौराणिक और प्राचीन स्थलों गर्मियों की छुट्टियों में स्कूली छात्र-छात्राओं के साथ युवा पीढ़ी के लिए उपयोगी साबित हो रहे हैं। ऐतिहासिक और धार्मिक विरासत को देखने के लिए देश-विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटकों के साथ शहर के युवा भी पहुंच रहे हैं। इसी कड़ी में आइए आपको घाटमपुर स्थित भगवान जगन्नाथ के प्राचीन मंदिर का भ्रमण कराते हैं।
मानसून आने के एक पखवारे पहले ही बूंदों से संकेत देने वाला ग्राम बेहटा का जगन्नाथ मंदिर अब तक अबूझ पहेली बना हुआ है। विशेष धार्मिक, ऐतिहासिक और भौगोलिक तथ्यों से परिपूर्ण यह मंदिर 21वीं सदी के विज्ञान के लिए बड़ी चुनौती है।
मंदिर के विषय में नहीं है विशेष जानकारी
मंदिर के निर्माण के विषय में आज तक कोई सटीक जानकारी नहीं मिल सकी है। यह मंदिर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। यह मंदिर जगन्नाथ जी के ओड़िशा शैली के मंदिरों से भिन्न है। यहां मंदिर एक बौद्ध मठ की बनावट का है। यह माना जाता है कि इस मंदिर का जीर्णोद्धार 11वीं सदी में हुआ है।
मंदिर के बाहर मोर का निशान और चक्र बना है, जिससे ये अंदाजा लगाया जाता है कि चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन के कार्यकाल में ये बना होगा।
पर्यटन अधिकारी डा. अर्जिता ओझा ने बताया कि मंदिर के गुंबद पर लगे पत्थर में मानसून आने से पहले बूदें आ जाती हैं। बूंदों के आकार से उस वर्ष के मानसून का अनुमान लगाया जाता है। पुराने समय में किसान मंदिर की टपकती बूदों के आधार पर ही किसानी करते थे।
ऐसे पहुंचें मंदिर तक
- यह मंदिर नौबस्ता से 29 किमी और भीतरंगाव से चार किमी दूर स्थित है।
- नौबस्ता से रमईपुर और वहां से साढ़ पहुंचने के बाद साढ़-घाटमपुर मार्ग पर स्थित बेहटा गांव में बना हुआ है।
- मंदिर तक जाने के लिए लोकल और परिवहन विभाग के वाहन की सेवा मिलती है।
इन बातों का रखें विशेष ध्यान
- स्थानीय नियमों का पालन करें।
- स्वच्छता बनाए रखें। कूड़ा-कचरा इधर-उधर न फेंके, बल्कि डस्टबिन का इस्तेमाल करें।
- प्रकृति के साथ उचित व्यवहार करें। किसी भी पेड़, पौधे या जीव को नुकसान न पहुंचाएं।
- पर्यावरण के अनुकूल व्यवहार करें। पर्यटन स्थलों पर प्लास्टिक का उपयोग कम से कम करें।
- जीवों को नुकसान न पहुंचाएं।
- संस्कृति का सम्मान करें। स्थानीय लोगों के व्यवहार और रहन-सहन का सम्मान करें।
- किसी भी तरह से उनकी संस्कृति को नुकसान पहुंचाने से बचें।
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