डाई का अपशिष्ट अब भूजल को नहीं करेगा दूषित, चमड़ा-टेक्सटाइल उद्योगों के लिए वरदान बनेगा 'जैविक फिल्टर'
कानपुर में, एचबीटीयू के वैज्ञानिकों ने एक बायोडिग्रेडेबल फिल्टर विकसित किया है जो कपड़ा और चमड़ा उद्योगों से निकलने वाले गंदे पानी से मेथिलीन ब्लू और ...और पढ़ें

अखिलेश तिवारी, कानपुर। गंदे पानी से मेथिलीन ब्लू व कांगो रेड डाई हटाने में सक्षम बायोडिग्रेडेबल फिल्टर अब टेक्सटाइल व चमड़ा उद्योग के लिए वरदान बनेगा। विनाइल अल्कोहल व स्टार्च से तैयार फिल्म से बनाया गया फिल्टर स्वयं ही खत्म हो जाएगा, जिससे इसे नष्ट करने के लिए कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं करना पड़ेगा।
चमड़ा व टेक्सटाइल उद्योग में बड़े पैमाने पर रंगाई के लिए रासायनिक डाई का प्रयोग किया जाता है। धुलाई के दौरान यह रसायन पानी में घुलकर जमीन व भूजल से लेकर सतही जल को भी दूषित करता है, इस समस्या से अब निजात मिलने की दिशा में कदम बढ़ेंगे। इस फिल्टर को हरकोर्ट बटलर टेक्निकल यूनिवर्सिटी (एचबीटीयू) के विज्ञानियों ने तैयार किया है।
पहले प्लास्टिक कचरे से प्राप्त कार्बन नैनोट्यूब्स को पर्यावरण-अनुकूल पालिमर यानी पाली विनाइल अल्कोहल व स्टार्च के साथ मिला कर क्रासलिंक्ड नैनोकंपोजिट (एक-दूसरे से जुड़े और मजबूती से थामे एक टिकाऊ सामग्री) बायोडिग्रेडेबल फिल्में तैयार कीं, फिर उनसे फिल्टर बनाया गया। फिल्म आधारित फिल्टर 100 प्रतिशत बायोडिग्रेडेबल है। इसका 15 से 20 बार तक उपयोग किया जा सकता है और गंदगी की स्थिति पर निर्भर करेगा।

एचबीटीयू के प्रो. अश्वनी कुमार राठौर व प्रो. दीपक श्रीवास्तव के निर्देशन में डा. पारुल द्विवेदी ने इस अनुसंधान को तीन साल में पूरा किया है। शोध रिपोर्ट को अंतरराष्ट्रीय साइंस जर्नल एप्लाइड पालीमर ने प्रकाशित भी किया है। पारुल के अनुसार, इस फिल्म का का प्रयोग औद्योगिक कचरे के शुद्धीकरण के लिए किया गया है।
इन फिल्मों ने 96.43 प्रतिशत मेथिलीन ब्लू तथा 88.08 प्रतिशत कांगो रेड डाई को सफलतापूर्वक हटाया है। ये दोनों डाई टेक्सटाइल व चमड़ा उद्योगों में व्यापक रूप से उपयोग की जाती हैं। यह डाई कैंसरजनित होने के कारण पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य दोनों के लिए अत्यंत घातक हैं।
डा. पारुल ने बताया कि शोध में उपयोग की गई सभी सामग्री कम लागत वाली, नवीकरणीय व प्लास्टिक कचरे से ली गई हैं। इससे प्लास्टिक कचरे का भी सतत समाधान हो सकेगा और पर्यावरण सुरक्षा भी होगी। हरित रसायन (ग्रीन केमिस्ट्री), वेस्ट टू वेल्थ प्रौद्योगिकी व स्वच्छ जल समाधान का संगम कराने वाली यह तकनीक वैश्विक पर्यावरणीय चुनौतियों के समाधान के लिए प्रभावशाली, स्वदेशी व नवोन्मेषी योगदान देने वाली सिद्ध होगी।
ऐसे तैयार की फिल्म
प्लास्टिक कचरे से प्राप्त कार्बन नैनोट्यूब्स को पर्यावरण अनुकूल पालिमर पाली विनाइल अल्कोहल (पीवीए) और स्टार्च के साथ संयोजित किया गया। इससे नई फिल्म विकसित की गई।
यह फिल्म गंदे पानी से कैटायनिक (धनायनिक) एवं एनायनिक (ऋणायनिक) दोनों प्रकार की डाई हटाने में सक्षम मिली। फिल्म का प्रयोग कर फिल्टर तैयार किया गया, जो शत-प्रतिशत बायोडिग्रेडेबल होने के साथ ही कई बार उपयोग के बाद पानी में स्वयं घुलकर समाप्त हो जाता है।
यह होता बायोडिग्रेडेबल
बायोडिग्रेडेबल अर्थात जैवनिम्नीकरणीय या स्वाभाविक रूप से सड़नशील। इसका अर्थ है कि कोई वस्तु या पदार्थ बैक्टीरिया, कवक जैसे सूक्ष्मजीवों द्वारा प्राकृतिक रूप से छोटे-छोटे हिस्सों में टूटकर पर्यावरण में वापस मिल सकता है, जिससे प्रदूषण नहीं होता। यह प्रक्रिया प्राकृतिक होती है, जैसे केले के छिलके का गलना व इसमें कार्बन डाइआक्साइड, पानी व कार्बनिक पदार्थ बनते हैं, जो मिट्टी को समृद्ध कर सकते हैं।
यह फिल्टर उच्च डाई हटाने की क्षमता, उत्कृष्ट फ्लक्स (शुद्धता) प्रदर्शन व बायोडिग्रेडेबल सामग्री का दुर्लभ व अत्यंत प्रभावी संयोजन है। यह उपलब्धि सतत जल-शोधन तकनीक के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगी।
-एके राठौर, प्रोफेसर एचबीटीयू केमिकल इंजीनियरिंग विभाग

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