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    जानें, गर्भावस्था के दौरान क्यों अधिक पानी पीना है जरूरी, गर्भस्थ शिशु को क्या होता फायदा

    By AbhishekEdited By:
    Updated: Mon, 18 Mar 2019 12:00 PM (IST)

    गर्भ ठहरने के बाद अत्यधिक बीपी बढऩा और यूरीन में प्रोटीन आना किडनी खराब होने का संकेत ।

    जानें, गर्भावस्था के दौरान क्यों अधिक पानी पीना है जरूरी, गर्भस्थ शिशु को क्या होता फायदा

    कानपुर, जागरण संवाददाता। गर्भावस्था के दौरान पहले तीन माह लगातार उल्टियां आने से शरीर में पानी की कमी (डिहाइड्रेशन) हो जाती है। लगातार ऐसी स्थिति में किडनी खराब भी हो सकती हैं इसलिए उल्टियां आएं तो पानी पीते रहना चाहिए। यह जानकारी लखनऊ के संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआइ) के नेफरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अमित गुप्ता ने दी। रविवार को वह होटल रॉयल क्लिफ में आहूजा मेडिकल मैटरनिटी सेंटर के राष्ट्रीय अधिवेशन एएमएमसीकॉन-2019 में संबोधित कर रहे थे।
    उन्होंने कहा कि गर्भ ठहरने के बाद अत्यधिक बीपी बढऩा और पेशाब (यूरीन) में प्रोटीन आना किडनी खराब होने का संकेत है। गर्भावस्था में क्रिएटिनिन अगर क्रिएटनिन 1.1 से अधिक और पैरों में सूजन है तो यह गुर्दे की समस्या का संकेत है। कई बार लेबर रूम में सफाई न होने से संक्रमण से किडनी खराब हो सकती है। सम्मेलन में पटना मेडिकल कॉलेज की डॉ. आभा रानी सिन्हा, एसजीपीजीआइ की डॉ. सुभा फडके, डॉ. प्रवीर राय, आरएमएल की डॉ. यशोधरा प्रदीप, मेट्रो रेस्पेरेटरी सेंटर के डॉ. दीपक तलवार ने आधुनिक इलाज के बारे में बताया। इससे पहले जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज की प्राचार्य प्रो. आरती लालचंदानी एवं आइएमए अध्यक्ष डॉ. अर्चना भदौरिया ने उद्घाटन किया।
    इस सम्मेलन को मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा चार क्रेडिट ऑवर प्रदान किए गए हैं। सम्मेलन में डॉ. मीरा अग्निहोत्री, प्रो. किरन पांडेय, कॉग्स की अध्यक्ष डॉ. नीलम मिश्रा, डॉ. मनीष अग्रवाल, डॉ. डीके सिन्हा, आयोजन समिति के अध्यक्ष डॉ. इंद्रजीत सिंह आहूजा एवं सचिव डॉ. रमीत कौर आहूजा मौजूद रहीं।
    बार-बार गर्भपात यानी थायराइड की समस्या
    प्रयागराज के एमएलएन मेडिकल कॉलेज की मेडिसिन की विभागाध्यक्ष प्रो. सरिता बजाज कहा कि 20 फीसद महिलाओं में थायराइड की समस्या होती है। थायराइड की चार स्थितियां, हाइपो थायरायडिच्म (थायराइड की कमी), हाइपर थायरायडिच्म (थायराइड की अधिकता), घेघा और थायराइड नाड्यूल (गले में गांठें) बनने लगती हैं। 80 फीसद महिलाओं में थायराइड की कमी से गर्भ नहीं ठहरता है। ऐसे में टी-3, टी-4 और टीएसएच जांच करानी चाहिए। टीएसएच बढऩे पर टीपीयू एंटीबॉडी टेस्ट कराएं। टीपीयू एंटीबॉडी निगेटिव होने पर टीएसएच 4 एमआइयू प्रति लीटर से कम रखें। टीपीयू एंटीबॉडी टेस्ट पॉजिटिव आने पर टीएसएच को 2.5 एमआइयू से नीचे रखें, यह हाई रिस्क स्थिति है। इसका इलाज और मॉनीटङ्क्षरग जरूरी है।
    बच्चेदानी में रक्त प्रवाह से बीपी की समस्या 
    बड़ौदा से आए पुरुष गायनकोलॉजिस्ट डॉ. पंकज देसाई ने कहा कि गर्भवती के बढ़े ब्लड प्रेशर के कारण ब्रेन हेमरेज, आंख की रोशनी पर असर, किडनी खराब होना और झटके आ सकते हैं। ऑक्सीजन की कमी से शिशु की गर्भ में मौत हो सकती है। अब कलर डाप्लर से बच्चेदानी में रक्त के प्रभाव से बीपी बढऩे की वजह गर्भ के दूसरे और तीसरे माह में ही पता चल जाती है। इससे 90 फीसद में 3-4 माह में नियंत्रित कर लेते हैं।
    प्रदूषण से प्रतिरोधक क्षमता पर असर
    दिल्ली के बीएलके हास्पिटल के क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ डॉ. राजेश पांडेय ने कहा कि पर्यावरण प्रदूषण से कार्बन एवं हैवी मेटल फेफड़ों में जमा होते हैं। इससे दमा, सीओपीडी, सांस संबंधी बीमारियां होने लगती हैं। ऐसे में एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल शरीर में मित्र बैक्टीरिया खत्म कर देता है। इसी तरह प्रोबॉयोक्सि का भी हिसाब से ही इस्तेमाल करना चाहिए। 

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