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    संघर्ष के कांटों के बीच पल्लवित किया 'हिंदी का पुष्प', कानपुर के डा.लक्ष्मीकांत ने परंपरा छोड़ पकड़ी साहित्य की राह

    By Abhishek VermaEdited By:
    Updated: Sat, 11 Jun 2022 02:16 PM (IST)

    कानपुर में रहने वाले डा. लक्ष्मीकांत पांडेय 47 साल से अहर्निश हिंदी सेवा में लगे हैं। पिताजी नामी वैद्य थे लेकिन परंपरा छोड़ लक्ष्मीकांत ने साहित्य की ...और पढ़ें

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    सबरंग के लिए : डा. लक्ष्मीकांत पांडेय, साहित्यकार। स्वयं

    कानपुर, जागरण संवाददाता। नामचीन वैद्य पिता पंडित गंगा प्रसाद ने सीख दी थी कि अपमान सहकर भी सेवा करते रहना, किसी के बहते आंसू पोछना, अपने बनाये रास्ते पर चलना और पुराने दिन न भूलना। पिता की इन्हीं बातों को आत्मसात करके उन्होंने पूर्वजों की विधा से अलग हिंदी साहित्य की सेवा का क्षेत्र चुना। पीपीएन डिग्री कालेज में हिंदी के प्राध्यापक नियुक्त हुए और फिर विभागाध्यक्ष के रूप में 2012 में सेवानिवृत्त हुए। संघर्षों के कांटों के बीच 47 वर्षों से वह हिंदी का फूल पल्लवित-पुष्पित कर रहे हैं। हिंदी साहित्य से जुड़ी कई पुस्तकें लिखने व सम्मान पाने वाली शहर की इस शख्सियत का नाम है डा. लक्ष्मीकांत पांडेय। वह 2012 से 2014 तक जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय चित्रकूट में कुलसचिव भी रहे हैं।

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    वर्तमान में नौबस्ता क्षेत्र में आवास-विकास कालोनी हंसपुरम में रह रहे डा. लक्ष्मीकांत पांडेय का कानपुर और प्रयागराज (तब इलाहाबाद) से गहरा जुड़ाव है। बचपन पुस्तकों के बीच बीता। साहित्य और आयुर्वेद के ग्रंथ उस उम्र में पढ़ लिए, जब लोग पढ़ना शुरू करते हैं। हिंदी साहित्य की सेवा की तरफ वक्त के साथ कदम बढ़ाते रहे लेकिन इस राह में कांटे भी खूब थे। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। तब गंगा पर शास्त्री पुल नहीं बना था। साइकिल से गांव से आकर नाव से दारागंज उतरते फिर यहां से विश्वविद्यालय पहुंचते। 20 किलोमीटर की दूरी के कारण गांव के अधिकांश बच्चे इंटरमीडिएट तक ही पढ़ सके। हालांकि, उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा। प्रयागराज से एमए हिंदी व पीएचडी करने के बाद वर्ष 1975 में नौकरी की तलाश में कानपुर आ गए। वह बताते हैं कि उस समय पीपीएन डिग्री कालेज साहित्यकारों का केंद्र बनने लगा था, तभी वहां प्राध्यापक हो गए। अमृतलाल नागर, मनोहरश्याम जोशी, कन्हैयालाल नंदन, अज्ञेय, कामिल बुल्के, विद्यानिवास मिश्र, डा रघुवंश, शिवानी, मन्नू भंडारी जैसे साहित्यकार कालेज आए तो मुलाकात हुई। दादा नरेशचंद्र चतुर्वेदी और गिरिराज किशोर, डा बद्री नारायण तिवारी का भी सानिध्य मिला। निकष नाम से हिंदी पत्रिका की योजना बनी जो अब नवनिकष के रूप में मासिक प्रकाशन के 15 वर्ष पूरे कर रही है। डा. लक्ष्मीकांत बताते हैं कि उनके निर्देशन में 30 छात्रों ने छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय (सीएसजेएमवि) कानपुर से पीएचडी की उपाधि ली। लगभग 50 छात्रों को लघु शोध के लिए निर्देशित किया।

    अब तक प्रकाशित प्रमुख पुस्तकें

    प्रेमचंद साहित्य संदर्भ, भाषा विज्ञान और हिंदी भाषा ग्रंथम, हिंदी गद्य का विकास ग्रंथम, हिंदी काव्य का विकास, साहित्यचिंतन की नई दिशायें, हिंदी पत्रकारिता सिद्धांत एवं प्रयोग, संचार माध्यमों में हिंदी का प्रयोग, बोली विज्ञान, विनय पत्रिका भाष्य ग्रंथम, आदिकालीन काव्यधारा

    कवित्तकाव्य

    परंपरा और विकास, हिंदी का इतिहास, संघर्ष और शहादत का संपादन, प्रयोजन मूलक हिंदी, भाषाविज्ञान और हिंदीभाषा, साहित्यिक निबंध, प्रेमचंद की 51 श्रेष्ठ चिंतन प्रकाशन, भारतीय एवं पाश्चात्य काव्यशास्त्र, सामान्य हिंदी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय: व्यक्ति और विचार, भारतीय साहित्य। साथ ही श्रीमद्भगवतगीता और श्रीदुर्गासप्तशती का हिंदी में अनुवाद किया।

    ये मिल चुके सम्मान

    2012 : अभयदेव स्मारक सम्मान कालीकट केरल।

    2016 : विद्यासागर सम्मान विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ भागलपुर।

    2014 : मानस संगम कानपुर की ओर से कानपुर गौरव सम्मान।

    2016 : महाराजकृष्ण जैन सम्मान पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी शिलांग।

    2017 : राष्ट्रीय साहित्य गौरव सम्मान दिल्ली।

    2019 : साहित्यश्री सम्मान, भारतेंदु समिति, कोटा राजस्थान।

    2020 : साहित्य संगम सम्मान पटना बिहार

    2020 : ज्ञानवती अवस्थी स्मृति सम्मान मानस मंच कानपुर।

    2022 : दैनिक जागरण की ओर से विमर्श कार्यक्रम के दौरान सम्मानित।