Kanpur News: डिजिटल इंडिया में बुजुर्गों की पांच बाधाएं, IIT Kanpur ने बताया समाधान
डिजिटल इंडिया में प्रौढ़ आबादी के लिए चुनौतियां हैं। हेल्प एज इंडिया के अनुसार 66 प्रतिशत बुजुर्ग डिजिटल इंडिया को एक डरावना सपना मानते हैं। आइआइटी कानपुर के विशेषज्ञों ने साइबर सुरक्षा का पाठ पढ़ाने और स्थानीय भाषाओं के उपयोग का सुझाव दिया है। युवा पीढ़ी को धैर्यपूर्वक सिखाने और बुजुर्गों के अनुकूल सुविधाओं का उपयोग करने की सलाह दी जाती है।

अखिलेश तिवारी, जागरण, कानपुर। डिजिटल इंडिया में जहां वस्तुओं की खरीदारी से लेकर रेल और बस के टिकट बुकिंग तक में डिजिटल एप का प्रयोग बड़ा है वही भारत की प्रौढ हो चुकी आबादी को इसके साथ खासी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। देश में बुजुर्गों के लिए काम करने वाली संस्था हेल्प एज इंडिया ने अपने सर्वे में बताया है कि 66 प्रतिशत बुजुर्गों के लिए डिजिटल इंडिया एक डरावना सपना है जिसके साथ वह सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे हैं।
आइआइटी कानपुर के साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों ने इसके पांच कारण और उनके समाधान बताए हैं जिसके अनुसार बुजुर्गाें को डिजिटल इंडिया का हिस्सा बनाने के लिए साइबर सुरक्षा का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए और डिजिटल एप पर स्थानीय भाषा, बड़े अक्षरों का प्रयोग अनिवार्य किया जाना चाहिए।
आज के डिजिटल युग में, खरीदारी और बिल भुगतान से लेकर डाक्टर के अपाइंटमेंट बुक करने तक, सब कुछ बस एक क्लिक की दूरी पर है। जहां युवा पीढ़ी इन बदलावों के साथ तेज़ी से तालमेल बिठा लेती है, वहीं भारत में कई वरिष्ठ नागरिक इसके साथ तालमेल बिठाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हेल्पएज इंडिया ने देश के दस शहरों में 5,798 लोगों से बात की है। इसमें युवा (18-30 वर्ष की आयु) और वरिष्ठ नागरिक (60 वर्ष और अधिक आयु) दोनों शामिल रहे हैं।
आइआइटी कानपुर में स्थित साइबर सुरक्षा केंद्र सी3आइ हब के विशेषज्ञों ने इसके कारण और समाधान रेखांकित करते हुए एक जागरूकता पुस्तिका तैयार की है। हिंदी , अंग्रेजी और बांग्ला भाषा में उपलब्ध पुस्तिका से वरिष्ठ नागरिकों को जागरूक करने की कोशिश भी की जा रही है। सी3आइ हब के कंटेट क्रिएटर व रिसर्चर दीपायन घोष बताते हैं कि साइबर सुरक्षा तकनीक के बारे में वरिष्ठ नागरिकों को पर्याप्त जानकारी देने के अपेक्षित परिणाम भी मिले हैं। कई ऐसे परिवार हैं जहां बुजुर्गों ने नई पीढ़ी की मदद से डिजिटल उपकरणों का प्रयोग करना सीख लिया है।
गलतियां करने का डर: कई बुज़ुर्गों को गलत बटन दबाने, कोई चीज़ टूटने, आनलाइन पैसे गंवाने या धोखाधड़ी का शिकार होने की चिंता रहती है।
प्रशिक्षण का अभाव: युवा पीढ़ी के विपरीत, ज्यादातर बुजुर्ग स्मार्टफोन या कंप्यूटर इस्तेमाल करते हुए बड़े नहीं हुए। उन्हें कभी औपचारिक रूप से इनका इस्तेमाल करना नहीं सिखाया गया।
जटिल डिज़ाइन: कई ऐप और वेबसाइट को ऐसे उपयोगकर्ताओं को ध्यान में रखकर डिज़ाइन किया गया है जो तकनीक से परिचित हैं। इसमें बुजुर्गों के लिए, छोटे अक्षर, प्रयोग की जटिलता और अव्यवस्थित इंटरफेस बहुत परेशान करते हैं।
याददाश्त और दृष्टि संबंधी चुनौतियां: उम्र से जुड़ी याददाश्त में कमी और दृष्टि संबंधी समस्याओं के कारण पासवर्ड याद रखना या स्क्रीन पर छोटे अक्षर पढ़ना मुश्किल हो जाता है।
भाषा संबंधी बाधाएं: ज्यादातर ऐप अंग्रेजी में होते हैं। कई बुज़ुर्ग—खासकर ग्रामीण या अर्ध-शहरी इलाकों में—क्षेत्रीय भाषाओं में ज्यादा सहज होते हैं, जिससे एक और बाधा पैदा होती है।
युवा लोग क्या सोचते हैं?
दिलचस्प बात यह है कि सर्वेक्षण में युवा उत्तरदाताओं से यह भी पूछा गया कि वे अपने बुज़ुर्गों के तकनीक के साथ रिश्ते को कैसे देखते हैं। कई लोगों का मानना है कि उनके माता-पिता या दादा-दादी सीखने में रुचि नहीं रखते। लेकिन यह धारणा अक्सर गलत होती है। वास्तव में, कई वरिष्ठ नागरिक सीखने के लिए उत्सुक होते हैं—बस उन्हें यह नहीं पता होता कि शुरुआत कहां से करें। दो पीढ़ियों के व्यवहार में इस अंतर की वजह से वरिष्ठ नागरिक खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं। सर्वे में वरिष्ठ नागरिकों ने बताया कि धीरे-धीरे डिजिटल उपकरणों को अपना रहे हैं। 73 प्रतिशत वरिष्ठ नागरिकों ने कहा कि तकनीक उन्हें परिवार के सदस्यों और दोस्तों - रिश्तेदारों से जुड़े रहने में मदद करती है। वाटसअप व जूम ने उन्हें दूर रहने वाले प्रियजनों से वीडियो काल करने के लिए प्रेरित किया।
आइआइटी ने सुझाए समाधान
धैर्यपूर्वक सिखाएं: संदेश भेजने, मौसम की जानकारी लेने या बुनियादी ऐप्स का इस्तेमाल करने का तरीका दिखाने के लिए समय निकालें। धीरे-धीरे आगे बढ़ें, चरणों को दोहराएं और जल्दबाज़ी करने से बचें।
क्षेत्रीय भाषाओं में डिजिटल एप तैयार करें: ऐप्स और फोन सेटिंग्स को उनकी पसंदीदा भाषा—हिंदी, बंगाली, तमिल, पंजाबी, मराठी आदि में बदलें।
बुज़ुर्गों के अनुकूल सुविधाओं का इस्तेमाल करें: फ़ोन को बड़े अक्षरों वाले , सरल इंटरफेस और वन-टच बटन वाले सेट अप से लैस करें। कुछ स्मार्टफोन "सीनियर मोड" भी देते हैं।
डिजिटल साक्षरता कार्यशालाओं को प्रोत्साहित करें: गैर-सरकारी संगठन फोन के इस्तेमाल और आनलाइन सुरक्षित रहने के बारे में वरिष्ठ नागरिकों के लिए निश्शुल्क कार्यशालाएं आयोजित करें।
दयालु और प्रोत्साहित करने वाला बनें: अगर कोई बुज़ुर्ग पिछले हफ्ते आपने उन्हें जो सिखाया था, वह भूल जाता है, तो नाराज न हों। शांत रहें और उनका आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए सकारात्मक प्रोत्साहन का इस्तेमाल करें।
वरिष्ठ नागरिकों को डिजिटल इंडिया से दूर रखने के नुकसान : बैंकिंग, पेंशन सेवाएं और बिल भुगतान की सुविधा से वंचित रहेंगे। डिजिटल उपकरणों के बिना वरिष्ठ नागरिक अपने परिवार और दोस्तों से अलग -थलग हो सकते हैं। आनलाइन खतरों से अनजान वरिष्ठ नागरिक साइबर धोखाधड़ी के प्रमुख लक्ष्य हैं। इसलिए उन्हें साइबर सुरक्षा के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए।
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