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डिकोडिंग इंडियन बाबूडम में है भारतीय ब्यूरोक्रेसी को समझने के सूत्र, कैसे संभाली जाती है लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की बागडोर

लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की बागडोर आइएएस आइपीएस अधिकारियों के हाथों में रहती है इसे ही भारतीय ब्यूरोक्रेसी कहा जाता है। डिकोडिंग इंडियन बाबूडम एक ऐसी पुस्तक है जिससे इस व्यवस्था को आसानी से समझा जा सकता है ।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Sun, 05 Jun 2022 03:59 PM (IST)Updated: Sun, 05 Jun 2022 03:59 PM (IST)
पुस्तक डिकोडिंग इंडियन बाबूडम की समीक्षा ।

पुस्तक : डिकोडिंग इंडियन बाबूडम

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लेखक : अश्विनी श्रीवास्तव

प्रकाशक : वितस्ता प्रकाशन

मूल्य : 495 रुपये

समीक्षा : अजय कुमार राय

पिछले दिनों सिविल सेवा परीक्षा के नतीजे घोषित हुए तो सफल अभ्यर्थियों के नाम और उनके बारे में जानने की दिलचस्पी हर किसी में नजर आई। दरअसल लोगों में यह उत्सुकता इसीलिए होती है कि आगे चलकर हमारे देश की लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की बागडोर इन्हीं शीर्ष नौकरशाहों यानी आइएएस, आइपीएस अधिकारियों के हाथों में आती है। अगर आपको भारतीय ब्यूरोक्रेसी के बारे में जानना हो तो अश्विनी श्रीवास्तव की पुस्तक 'डिकोडिंग इंडियन बाबूडम' आपकी मदद कर सकती है। लेखक पत्रकार हैैं और उन्होंने नौकरशाह और नौकरशाही के प्रति आम जन के मन में उठ रही हर जिज्ञासा को शांत करने का प्रयास किया है।

यह किताब सरल अंग्रेजी में लिखी गई है। आरंभिक कुछ अध्यायों में लेखक ने बताया है कि आइएएस अधिकारियों को भारतीय शासन व्यवस्था की जान क्यों कहा जाता है, भारतीय ब्यूरोक्रेसी कैसे काम करती है, किन परिस्थितियों में क्यों कोई अधिकारी भ्रष्ट हो जाता है और शक्ति का दुरुपयोग करने लगता है। आगे नौकरशाही के बारे में आम जन द्वारा आमतौर पर पूछे जाने वाले प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैैं, जैसे कि लालफीताशाही की समस्या का निदान क्या है, क्या इसका निजीकरण किया जाना चाहिए, युवाओं में सिविल सेवा के प्रति इतना आकर्षण क्यों है, आइएएस को सुपर सर्विस क्यों कहा जाता है आदि।

एक अध्याय में लेखक ने आइएएस अधिकारियों के कुछ ऐसे कार्यों का जिक्र किया है, जो देश और समाज में व्यापक सामाजिक-आर्थिक बदलाव के वाहक बने हैैं। अंत में नौकरशाही के जरिये सुशासन के लिए 15 सूत्र दिए हैैं। जैसे-सैन्य अधिकारियों को सिविल सेवा में प्रतिनियुक्ति पर नियुक्त किया जाए, नौकरशाहों की तरह नीचे के कर्मचारियों की भी नियमित ट्रेनिंग हो, अधिकारियों को नवाचार के लिए प्रोत्साहित किया जाए, भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन के लिए अभियान चले, बाहर से विषय के विशेषज्ञों को नियुक्ति हो, ग्रामीण इलाकों में माडल आफिस बने, भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ त्वरित और कठोर कार्रवाई हो, सरकारी कामों को सौ प्रतिशत डिजिटल मोड में किया जाए, न्यूनतम कार्यकाल की नीति लागू हो आदि। हालांकि लेखक का भी मानना है कि भारतीय ब्यूरोक्रेसी नए भारत की आकांक्षाओं की पूर्ति तभी कर पाएगी, जब तमाम आयोगों द्वारा समय-समय पर सुझाए गए प्रशासनिक सुधार को लागू कर लिया जाएगा। कुल मिलाकर प्रशासनिक सेवाओं में दिलचस्पी रखने वालों के लिए यह पुस्तक जरूर पढऩी चाहिए।


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