कूलर की ठंडी हवा भी घातक, कबूतर, तोता और मोर फैलाते हैं फेफड़े की गंभीर बीमारी आइएलडी
जीएसवीएम मेडिकल कालेज के सभागार में आयोजित इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के कालेज आफ जनरल प्रैक्टिसनर्स के 39वें रिफ्रेशर कोर्स में लखनऊ के केजीएमयू से आए डाक्टर ने फेफड़े की बीमारी आइएलडी के लक्षण व कारण समेत कई अहम जानकारियां दीं।

कानपुर, जागरण संवाददाता। तोते की चोंच जैसी अंगुलियां लगना और एक्सरे की जांच में फेफड़ों के निचले हिस्से में धब्बे दिखाई पड़ना फेफड़े की गंभीर बीमारी का संकेत है। यह फेफड़े की गंभीर बीमारी आइएलडी (इंटरस्टीशियल लंग डिजीज) हो सकती है। हालांकि इसके लक्षण टीबी और अस्थमा से भी मिलते जुलते हैं। इसलिए डाक्टर भी चूक कर बैठते हैं, जिससे समय से इलाज शुरू नहीं हो पाता है। यह अहम जानकारी जीएसवीएम मेडिकल कालेज आडिटोरियम में आयोजित इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) के कालेज आफ जनरल प्रैक्टिसनर्स (सीजीपी) के 39वें रिफ्रेशर कोर्स में लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभागाध्यक्ष प्रो. सूर्यकांत त्रिपाठी ने दी।
उन्होंने कहा कि पांच वर्ष पहले इंडियन चेस्ट सोसायटी ने एक सर्वे कराया था, उसमें पाया कि आइएलडी के 67 प्रतिशत मरीज टीबी की दवाएं छह माह तक खाने के बाद इलाज के लिए पहुंचते हैं। इस वजह से उनका जीवन लंबा नहीं चलता है। आइएलडी फेफड़े की गंभीर बीमारी है, इसलिए डाक्टर इलाज में कोई प्रयोग और लापरवाही न करें। इसके लक्षणों को गंभीरता से पहचानें और उसके अनुरूप इलाज करें। समझ में न आए तो फेफड़ा रोग विशेषज्ञ के पास तत्काल भेजें।
फाइब्रोसिस का मुख्य कारण हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनिया है। इसकी वजह से लंग्स फाइब्रोसिस होती है, जिसे आइएलडी कहते हैं। मरीज को सांस फूलने के साथ सूखी खांसी आती है, उसका वजन भी घटने लगता है। इसलिए शुरुआत में पता नहीं चल पाता। अंतिम स्थिति में पहुंचने पर मरीज के पैरों में सूजन आने लगती है। आक्सीजन की मात्रा कम होने से मरीज दो कदम चल नहीं पाता है। कुछ मरीजो में आर्थराइटिस की वजह से भी लंग्स फाइब्रोसिस होती है। कार्यक्रम निदेशक डा. एसके सिंह, चेयरपर्सन प्रो. सुधीर चौधरी, डा. एके मित्तल, डा. जेएस चौहान, आइएमए अध्यक्ष डा. बृजेंद्र शुक्ला, सचिव डा. देवज्योति देवराय, डा. पीयूष मिश्र, डा. शालिनी मोहन एवं डा. कुणाल सहाय मौजूद रहे।
कबूतर, तोता व मोर भी फैलाते : कबूतर, तोता व मोर झुंड में रहते हैं। उनकी बीट पंखों में फंस कर सूख जाती है। जब वह पंख फड़फड़ाते हैं तो सूखी बीट के साथ पंखों के अल्ट्राफाइन पार्टिकिल हवा में उड़ते हैं। यह सूक्ष्म और महीन कण घरों व आसपास रहने वालों के फेफड़ों में हवा के जरिये पहुंच जाते हैं। धीरे-धीरे फेफड़े में जाकर संक्रमण करते हैं, जिससे आइएलडी होता है। इसलिए घरों को चिड़ियाघर न बनाएं, अगर पक्षियों से प्यार है तो चिड़ियाघर जाकर घूम आएं।
कूलर की ठंडी हवा भी घातक : डा. त्रिपाठी ने कहा कि आइएलडी दो सौ बीमारियों का समूह है। गर्मी में घर-घर कूलर का इस्तेमाल होता है। कूलर के इस्तेमाल में सावधानी बरतें। हर सीजन में उसकी घास जरूर बदलें। कूलर की नियमित सफाई करें और उसका पानी बदलते रहें। जब सोएं तो कूलर से छह फिट की दूरी बनाकर रखें। कूलर की गंदगी में पनपने वाला फंगस हवा के जरिये फेफड़े में पहुंच कर नुकसान पहुंचाता है, जिससे भी आइएलडी होती है।
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