यूपी में शतरंज के लिए क्या कह रहे हैं इंटरनेशनल मास्टर दिनेश सिंह, यहां पढ़िए- उनका खास इंटरव्यू
भारतीय शतरंज में ख्याति हासिल कर चुके इंटरनेशनल मास्टर (आइएम) दिनेश शर्मा का यूपी से खास नाता है। वह कई बार राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय और एशियन शतरंज अपनी छाप छोड़ चुके हैं और चर्चा में रहे हैं। यूपी में शतरंज की स्थिति पर उन्होंने खुशी जाहिर की है।

कानपुर, जागरण संवाददाता। उप्र से भारतीय शतरंज में ख्याति हासिल करने वाले इकलौते इंटरनेशनल मास्टर (आइएम) दिनेश शर्मा कई बार राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय और एशियन शतरंज में दिमागी चालों से चर्चा में रहे हैं। आइएम दिनेश शर्मा का मानना है कि जब अभिभावक शतरंज खेल की अहमियत से परिचित होंगे तब ही देश में शतरंज का कद बढ़ेगा। भारतीय शतरंज फेडरेशन की ओर से स्कूल इन शतरंज को बढ़ावा और अधिक प्रतियोगिताएं कराये जाने की तैयारी पर उन्होंने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि भारत और भारतीयों में शतरंज का क्रेज तेजी से बढ़ रहा है। इसका सर्वाधिक प्रभाव उप्र में देखने को मिल रहा है। पेश है जागरण संवाददाता अंकुश शुक्ल की आइएम दिनेश शर्मा से बातचीत के मुख्य अंश...।
- उप्र और शहर से आप शतरंज का सबसे चर्चित नाम हैं, अपनी उपलब्धियों के बारे में बताएं?
मुझे शतरंज खेल ने बहुत कुछ दिया है। नाम, शोहरत और पहचान सबकुछ इसी खेल का दिया है। वर्ष 2000 में अंडर-25 राष्ट्रीय विजेता, 2018 में बिट््स और दो बार एशियन शतरंज के साथ कई अंतरराष्ट्रीय शतरंज में जीत हासिल की। आज भी शतरंज के लिए लगा रहता हूं।
- दक्षिणी राज्यों की तुलना में उप्र में शतरंज की क्या स्थिति है। इसे कैसे सुधारा जा सकता है?
बात अगर दक्षिणी राज्यों की करें तो वहां पर शतरंज के दर्जनों इंटरनेशनल और ग्रैंड मास्टर्स हैं इसका एकमात्र कारण है अधिक से अधिक प्रतियोगिताओं का होना। जब प्रतियोगिताएं अधिक होंगी तब अधिक खिलाडिय़ों को मंच मिलेगा। उप्र में शतरंज का स्तर तेजी से बदल रहा है। अधिक प्रतियोगिताएं मिल रहीं हैं और बेहतर खिलाड़ी निकल रहे हैं।
- शतरंज को बिना दर्शक का खेल कहा जाता है। क्या इसे चुनौती मानते हैं?
यह सच है कि शतरंज बिना दर्शकों का खेल है और एक खिलाड़ी के लिए बिना दर्शकों का खेल चुनौती होता है। खेल के दौरान दर्शकों का उत्साह खिलाडिय़ों को बेहतर करने के लिए प्रेरित करता है। बच्चों के विकास के लिए अभिभावकों को शतरंज को बढ़ावा देने के बारे में सोचना चाहिए।
- फेडरेशन की स्कूल इन शतरंज योजना कितनी कारगर साबित होगी भारत में शतरंज के विकास के लिए?
अखिल भारतीय शतरंज फेडरेशन के अध्यक्ष डा. संजय कपूर की पहल से शुरू हुई स्कूल इन शतरंज योजना भविष्य के लिए बेहतर खिलाड़ी तैयार करने की मुहिम है। इससे छोटे-छोटे शहरों से बेहतर खिलाड़ी खोजने में आसानी होगी।
- बतौर इंटरनेशनल मास्टर आप किन बातों का सुझाव फेडरेशन को देना चाहते हैं। जो शतरंज को प्रमोट करने में कारगर हो?
फेडरेशन उप्र के साथ पूरे भारत में बढ़ावा देने की दिशा में तेजी से काम कर रहा है। सबसे पहले फेडरेशन को खिलाडिय़ों की संख्या को बढ़ाने पर जोर देना चाहिए। इसके लिए छोटे-छोटे टूर्नामेंटों की संख्या में वृद्धि के साथ कोचिंग कैंप लगाने पर काम बड़े स्तर पर करना चाहिए। तब शतरंज जन-जन तक पहुंचेगा।
- विश्व में भारतीय शतरंज को आप कहां देखते हैं?
निश्चित रूप से भारतीय शतरंज अपने उत्थान के दौर में चल रहा है। हमारे पास हर आयुवर्ग के वल्र्ड चैंपियन खिलाड़ी हैं। इसके साथ ही हाल में युवा ग्रैंड मास्टर प्रगनानंद ने विश्व के नंबर एक खिलाड़ी कार्लसन को पराजित कर भारतीय हुनर से दुनिया को परिचित कराया है। जो भारतीय शतरंज के भविष्य की नींव है।
- आपको उम्मीद है कि उप्र और शहर से आगामी दिनों में ग्रैंड मास्टर्स, इंटरनेशनल मास्टर्स और लिटिल मास्टर्स निकलेंगे?
जरूर, उप्र और खासतौर पर शहर में प्रतिभा की कमी नहीं हैं। पूरी उम्मीद है कि जल्द ही ग्रैंड मास्टर्स, इंटरनेशनल मास्टर्स और लिटिल मास्टर्स यहां से निकलेंगे। इसके लिए फेडरेशन की ओर से लगातार प्रयास कर उन्हें मंच दिया जा रहा है।
- कोरोना के दौरान हुई राष्ट्रीय स्तर की शतरंज प्रतियोगिताओं में शहर के खिलाडिय़ों का दबदबा रहा है। क्या उनका प्रदर्शन आगे भी कायम रहेगा?
निश्चित रूप से वर्चुअल शतरंज में शहर के कई जूनियर खिलाडिय़ों ने प्रतिभा का प्रदर्शन किया। इसका लाभ उन्हें और शहर में शतरंज खेल को जरूर मिलेगा। कोरोना के दौरान सिर्फ शतरंज खेल ही प्रभावी रहा। पूरी उम्मीद है कि इन खिलाडिय़ों का शानदार प्रदर्शन आगे भी जारी रहेगा।
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